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This Article is From Aug 22, 2019

Janmashtami 2019: जब श्री कृष्ण ने लिया मामा कंस से बदला, ये थे उनके 5 सबसे बड़े शत्रु

Janmashtami 2019: कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी (Krishna Janmashtami 2019) इस बार दो दिन पड़ रही है. हिन्‍दू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि आठवें दिन मनाई जाती है.

Janmashtami 2019: जब श्री कृष्ण ने लिया मामा कंस से बदला, ये थे उनके 5 सबसे बड़े शत्रु
ये थे श्री कृष्ण के 5 सबसे बड़े शत्रु.

Janmashtami 2019: कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी (Krishna Janmashtami 2019) इस बार दो दिन पड़ रही है. हिन्‍दू पंचांग के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि यानी कि आठवें दिन मनाई जाती है. ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी हर साल अगस्‍त या सितंबर महीने में आती है. तिथि के हिसाब से जन्‍माष्‍टमी 23 अगस्‍त को मनाई जाएगी. वहीं, रोहिणी नक्षत्र को प्रधानता देने वाले लोग 24 अगस्‍त को जन्‍माष्‍टमी मना सकते हैं. इस मौके हम आपको बताएंगे कि वे कौन हैं, जो श्री कृष्ण (Lord Krishna) के शत्रु हैं. भगवान कृष्ण ने यूं तो कई असुरों का वध किया जिनमें ताड़का, पूतना, शकटासुर, कालिया, नरकासुर शामिल हैं. इन असुरों से कृष्‍ण की शत्रुता नहीं थी, लेकिन उनके दुश्‍मनों ने उन्‍हें भेजा. वहीं, कुछ ऐसे लोग भी थे, जो कृष्ण से सीधे-सीधे शत्रुता रखते थे. इन शत्रुओं में श्रीकृष्ण का मामा कंस भी शामिल था. यहां पर हम आपमो श्रीकृष्‍ण के पांच बड़े शत्रुओं के बारे में बता रहे हैं:

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मामा कंस
भगवान कृष्ण का मामा कंस था. कंस अपनी बहन देवकी से बहुत स्नेह रखता था, लेकिन एक दिन आकाशवाणी सुनाई पड़ी- 'जिसे तू चाहता है, उस देवकी का आठवां बालक तुझे मार डालेगा.' जिसके बाद कंस ने एक-एक करके देवकी के 7 बेटों को जन्म लेते ही मार डाला. कृष्ण के जन्म लेते ही माया के प्रभाव से सभी संतरी सो गए और जेल के दरवाजे अपने आप खुलते गए. वसुदेव मथुरा की जेल से शिशु कृष्ण को लेकर नंद के घर पहुंच गए. बाद में कंस ने कई चालें चलीं. कई असुरों को भेजा लेकिन सभी मारे गए. इसके बाद कंस ने एक समारोह रखा जहां, कृष्ण और बलराम को बुलाया गया. वहां कृष्ण ने उस समारोह में कंस को बालों से पकड़कर उसकी गद्दी से खींचकर उसे भूमि पर पटक दिया और इसके बाद उसका वध कर दिया.

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जरासंध
कंस का ससुर था जरासंध. कंस के वध के बाद भगवान श्रीकृष्ण को सबसे ज्यादा यदि किसी ने परेशान किया तो वह था जरासंध. वह बृहद्रथ नाम के राजा का पुत्र था. श्रीकृष्ण ने जरासंध का वध करने की योजना बनाई. योजना के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण, भीम और अर्जुन ब्राह्मण के वेष में जरासंध के पास पहुंच गए और उसे कुश्ती के लिए ललकारा. लेकिन जरासंध समझ गया कि ये ब्राह्मण नहीं हैं. तब श्रीकृष्ण ने अपना वास्तविक परिचय दिया. कुछ सोचकर अंत में जरासंध ने भीम से कुश्ती लड़ने का निश्चय किया.

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अखाड़े में राजा जरासंध और भीम का युद्ध कार्तिक कृष्ण प्रतिपदा से 13 दिन तक लगातार चलता रहा. 14वें दिन श्रीकृष्ण ने एक तिनके को बीच में से तोड़कर उसके दोनों भाग को विपरीत दिशा में फेंक दिया. भीम, श्रीकृष्ण का यह इशारा समझ गए और उन्होंने वहीं किया. उन्होंने जरासंध को दोफाड़ कर उसके एक फाड़ को दूसरे फाड़ की ओर तथा दूसरे फाड़ को पहले फाड़ की दिशा में फेंक दिया. इस तरह जरासंध का अंत हो गया, क्योंकि विपरित दिशा में फेंके जाने से दोनों टुकड़े जुड़ नहीं पाए.

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कालयवन
एक बार कालयवन की सेना ने मथुरा को घेर लिया, सने मथुरा नरेश के नाम संदेश भेजा और कालयवन को युद्ध के लिए एक दिन का समय दिया. श्रीकृष्ण ने उत्तर में भेजा कि युद्ध केवल कृष्ण और कालयवन में हो. कालयवन ने स्वीकार कर लिया. बलराम ने उनको कालयवन से युद्ध करने के लिए मना किया. जिसके बाद कृष्ण ने कालयवन को शिव द्वारा दिए वरदान के बारे में बताया. कहा कि उसे कोई भी हरा नहीं सकता. अगर कोई मार सकता है तो वो राजा मुचुकुंद हैं. युद्ध शुरू होते ही कृष्ण गुफा की ओर भागे और कालयवन पीछे-पीछे निकल गए. श्री कृष्ण छिप गए और कालयवन को एक व्यक्ति सोता दिखा, उनको लगा कि ये कृष्ण है. उसने व्यक्ति को जोर से लात मारी. जैसे ही व्यक्ति ने उठकर देखा तो कालयवन के शरीर आग लग गई और उसकी मृत्यु हो गई. 

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शिशुपाल
शिशुपाल 3 जन्मों से श्रीकृष्ण से बैर-भाव रखे हुआ था. एक यंज्ञ में सभी राजाओं को बुलाया गया. ये यज्ञ श्री कृष्ण और पांडवों ने रखा था. यज्ञ के दौरान शिशुपाल श्रीकृष्ण को अपमानित कर गाली देने लगा. ये सुनकर पांडव गुस्सा गए और उसे मारने के लिए खड़े हो गए. कृष्ण ने उन्हें शांत किया और यज्ञ करने को बोला. जिसके बाद भी शिशुपाल नहीं रुका और गालियां देने लगा. काफी देर बार तब श्रीकृष्ण ने गरजते हुए कहा, 'बस शिशुपाल! मैंने तेरे एक सौ अपशब्दों को क्षमा करने की प्रतिज्ञा की थी इसीलिए अब तक तेरे प्राण बचे रहे. अब तक सौ पूरे हो चुके हैं. शांत बैठो, इसी में तुम्हारी भलाई. है.' जिसके बाद शिशुपाल ने जैसे ही गाली दी तो श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला दिया और पलक झपकते ही शिशुपाल का सिर कटकर गिर गया.

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पौंड्रक
राजा पौंड्रक नकली चक्र, शंख, तलवार, मोर मुकुट, कौस्तुभ मणि, पीले वस्त्र पहनकर खुद को कृष्ण कहता था. बहुत समय तक श्रीकृष्ण उसकी बातों और हरकतों को नजरअंदाज करते रहे, बाद में उसकी ये सब बातें अधिक सहन नहीं हुईं. उन्होंने प्रत्युत्तर भेजा, ‘तेरा संपूर्ण विनाश करके, मैं तेरे सारे गर्व का परिहार शीघ्र ही करूंगा.' युद्ध हुआ, जिसमें पौंड्रक ने शंख, चक्र, गदा, धनुष, वनमाला, रेशमी पीतांबर, उत्तरीय वस्त्र, मूल्यवान आभूषण आदि धारण किया था एवं यह गरूड़ पर आरूढ़ था. नाटकीय ढंग से युद्धभूमि में प्रविष्ट हुए इस ‘नकली कृष्ण' को देखकर भगवान कृष्ण को अत्यंत हंसी आई. इसके बाद युद्ध हुआ और पौंड्रक का वध कर श्रीकृष्ण पुन: द्वारिका चले गए.

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