कोलकाता:
भारत के एक पूर्व गुप्तचर ने सोमवार को कहा कि लाहौर की कोट लखपत जेल में सरबजीत पर हुआ हमला सुनियोजित है और जेल अधिकारियों की मिलीभगत से इसे अंजाम दिया गया है। यह गुप्तचर दो दशकों तक पाकिस्तान की जेल में बंद रहा था।
गुप्तचर ने दावा किया कि 1977 में उसे अपदस्थ प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का कत्ल करने के लिए ब्लैंक चेक दिया गया था। उन्होंने कहा कि फांसी की सजा पाए किसी कैदी के लिए जेल अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर इस तरह का हमला करना असंभव है। भुट्टो को अपदस्थ किए जाने के बाद उस समय लाहौर जेल में ही रखा गया था।
भारतीय जासूस होने के आरोप में 1976 से लेकर 1996 तक पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में कैद काटने वाले इलाही ने कहा कि उस देश में मौत की सजा पाए कैदियों को अत्यंत कड़ी निगरानी में रखा जाता है।
पाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ समय गुजारने वाले इलाही ने कहा, ऐसे कैदियों को उनके सेल से दिन में सिर्फ आधे घंटे के लिए चहलकदमी के लिए निकाला जाता है और इस दौरान उनकी हथकड़ी लगी होती है। इसलिए फांसी की सजा पाए कैदी पर हमला करना असंभव है।
26 अप्रैल को सरबजीत पर हुए कातिलाना हमले के आरोप में पाकिस्तानी अधिकारियों ने दो कैदियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। वे दोनों भी फांसी की सजा पाए कैदी हैं। बुरी तरह जख्मी सरबजीत अभी कोमा में हैं और लाहौर के जिन्ना अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है।
इलाही ने कहा, सुरक्षा अत्यंत कड़ी रहती है। चहलकदमी करते समय कैदी की निगरानी में कई लोग मौजूद रहते हैं। एक ही समय में फांसी की सजा पाए दो कैदी नहीं निकाले जाते हैं। उन्हें बारी-बारी से बाहर निकाला जाता है। एक कैदी के सेल में बंद होने तक दूसरा प्रतीक्षा करता रहता है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी अधिकारियों का यह दावा कि मौत की सजा पाए दो कैदियों ने हमला किया गले नहीं उतरता।
गुप्तचर ने दावा किया कि 1977 में उसे अपदस्थ प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का कत्ल करने के लिए ब्लैंक चेक दिया गया था। उन्होंने कहा कि फांसी की सजा पाए किसी कैदी के लिए जेल अधिकारियों की मिलीभगत के बगैर इस तरह का हमला करना असंभव है। भुट्टो को अपदस्थ किए जाने के बाद उस समय लाहौर जेल में ही रखा गया था।
भारतीय जासूस होने के आरोप में 1976 से लेकर 1996 तक पाकिस्तान की विभिन्न जेलों में कैद काटने वाले इलाही ने कहा कि उस देश में मौत की सजा पाए कैदियों को अत्यंत कड़ी निगरानी में रखा जाता है।
पाकिस्तान के मौजूदा राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के साथ समय गुजारने वाले इलाही ने कहा, ऐसे कैदियों को उनके सेल से दिन में सिर्फ आधे घंटे के लिए चहलकदमी के लिए निकाला जाता है और इस दौरान उनकी हथकड़ी लगी होती है। इसलिए फांसी की सजा पाए कैदी पर हमला करना असंभव है।
26 अप्रैल को सरबजीत पर हुए कातिलाना हमले के आरोप में पाकिस्तानी अधिकारियों ने दो कैदियों के खिलाफ शिकायत दर्ज की है। वे दोनों भी फांसी की सजा पाए कैदी हैं। बुरी तरह जख्मी सरबजीत अभी कोमा में हैं और लाहौर के जिन्ना अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है।
इलाही ने कहा, सुरक्षा अत्यंत कड़ी रहती है। चहलकदमी करते समय कैदी की निगरानी में कई लोग मौजूद रहते हैं। एक ही समय में फांसी की सजा पाए दो कैदी नहीं निकाले जाते हैं। उन्हें बारी-बारी से बाहर निकाला जाता है। एक कैदी के सेल में बंद होने तक दूसरा प्रतीक्षा करता रहता है।
उन्होंने कहा कि पाकिस्तानी अधिकारियों का यह दावा कि मौत की सजा पाए दो कैदियों ने हमला किया गले नहीं उतरता।
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