
किसी महिला के लिए बूढ़ा होने का दावा करना आसान नहीं होता। वह भी तब जब कोई खुद को 40 वर्ष का महसूस करती हो, उसके लिए खुद को 70 वर्ष का मान लेना मुश्किल होता है। यही नहीं युवाओं की इतनी कद्र है कि कई बार बूढ़े होना शर्मनाक लग सकता है. लोग रट्टू तोते की तरह कहते हैं, ‘‘मैं उम्रदराज हो रहा हूं लेकिन बूढ़ा नहीं हो रहा'' (अर्थात्, ‘‘बूढ़ा होना कितना भयानक है!'')
मैंने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया दिवस पुरस्कार समारोह में एक अधेड़ मेजबान से भी कुछ ऐसी ही बात सुनी. कुछ दुकानों पर काम करने वाले कुछ लोग ऐसे होते हैं जो किसी बूढ़े व्यक्ति को देखते ही पूछते हैं, ‘‘मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं, यंग लेडी/यंग मैन?'' (यानी ‘‘मैं देख रहा हूं कि आप बूढ़े हो गए हैं फिर भी मैं आपको यंग कहकर आपका मजाक उड़ाने से बाज नहीं आऊंगा'').
बूढ़े होना काफी खराब है, लेकिन यह अक्सर लिंगभेद के कारण और भी जटिल हो जाता है. एक लड़के को अगर यह कहा जाए कि वह लड़कियों की तरह खेल रहा है तो यह उसके लिए अपमानजनक हो सकता है. इसी तरह अगर किसी बूढ़े होते पुरूष को बुजुर्ग महिला जैसा कह दिया जाए तो यह उसे और भी बुरा महसूस करा सकता है क्योंकि बूढ़ी औरत होने का मतलब है चिंतित, आश्रित, बेकार और बोझ होना.
बूढ़ी महिलाओं को इस तरह से खारिज किया जाता है कि उनका होना या न होना एक बराबर हो जाता है क्योंकि उन्हें समाज के किसी काम का नहीं माना जाता है.
अधेड़ उम्र से ही महिलाओं में किसी की तवज्जो न मिलने की भावना का अनुभव होता है: दुकानों में अनदेखा किया जाना, रेस्तरां में नज़रअंदाज़ किया जाना। लोगों का ऐसी नजरों से देखना जैसे बड़ी उम्र की महिला का कोई वजूद ही नहीं है.
बेशक इस तरह के व्यवहार को नज़रअंदाज़ करना मुक्तिदायक हो सकता है. किसी का सिर्फ उसके रूप की वजह से तो मूल्यांकन नहीं किया जाना चाहिए, और मैं जीवन की अच्छी चीजों का जितना संभव हो, उतना बेहतरीन इस्तेमाल करने की कोशिश करती हूं। फिर भी, मैं चाहूंगी के मुझे इस तरह से उपेक्षित नहीं किया जाए.
जब जेन फिशर और मैंने बेबी बूम समय (जन्म 1946 से 1964) की महिलाओं से बात की, तो हमने पाया कि वे चाहती हैं कि उनके साथ सम्मान का व्यवहार किया जाए, जो अपने आप में कोई बड़ी बात नहीं लगती। उन्होंने कहा कि सम्मान से हमारी मुराद तमाम हानिकारक रूढ़िवाद को तोड़ देने से है.
आयु से जुड़ी रूढ़ियाँ आयु-आधारित भेदभाव को बढ़ावा देती हैं. 60 वर्ष से अधिक आयु के 2000 से अधिक लोगों के एक ऑस्ट्रेलियाई सर्वेक्षण में पाया गया कि आयुवाद का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, जिससे अवसाद और चिंता बढ़ जाती है.
चुनौतीपूर्ण रूढ़ियाँ
पिछली पीढ़ी की महिलाओं के साथ मेरे हाल के साक्षात्कार, जिन्हें द साइलेंट जेनरेशन (1946 से पहले जन्म) का नाम दिया गया है, इन रूढ़ियों को चुनौती देते हैं. अपनी उम्र के सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक से गुजर रही यह महिलाएं भरपूर जीवन जी रही हैं और अपने समुदायों और व्यापक समाज में योगदान दे रही हैं.
मिग डैन ऐसी ही एक महिला हैं, जिन्होंने अपनी उम्र के अस्सी के दशक की शुरुआत में डाक्टरेट की उपाधि हासिल की। उनकी थीसिस ने कला सिद्धांत और अभ्यास के माध्यम से स्मृति और आघात का पता लगाया। उनके काम की प्रदर्शनी लुभावनी है.
ओलिव ट्रेवर ओएएम ने अपने पांच बच्चों के बड़े होने पर पौधों के प्रति अपने प्यार को विकसित किया और अस्सी के दशक में उन्हें ब्रोमेलियाड्स में विश्व विशेषज्ञ के रूप में पहचाना गया.
लेस्टर जोन्स एक शैक्षिक कोचिंग व्यवसाय चलाती हैं, जो सीखने की कठिनाइयों वाले लोगों में विशेषज्ञता रखता है। वह अपने नब्बे के दशक में है.
जैकलीन ड्वायर एएनयू की सबसे उम्रदराज़ सफल पोस्टग्रेजुएट छात्रा थी, जब वह 90 साल की उम्र में मास्टर ऑफ़ आर्ट्स बनी; उनके शोध के बारे में एक किताब तब प्रकाशित हुई थी जब वह 92 वर्ष की थीं.
एक घुमंतू कार्यकर्ता के रूप में एक कठिन युवावस्था के बाद, रेली जॉर्ज ने टाइपसेटिंग में अपना व्यवसाय पाया। जब उसे काम से हटा दिया गया, तो एक नियोक्ता जो वृद्ध लोगों को महत्व देता था, ने सत्तर के दशक में जॉर्ज को एक विशेषज्ञ कॉल-सेंटर संचालक के रूप में लिया.
पर्यावरण वैज्ञानिक और जलवायु प्रचारक डॉ. शेरोन पफ्यूएलर 80 के दशक तक पहुंचते-पहुंचते इस बात का उदाहरण पेश कर रही हैं कि हम सभी को कैसे जीना चाहिए.
एक टीवी मेकअप कलाकार के रूप में और प्रबंधकीय भूमिकाओं में काम करने के साथ-साथ स्वैच्छिक काम करने के बाद, 76 साल की रॉबिना रोगन एक टीम में शामिल हो गईं, जिसने एक नाव बनाई और उसे पोर्ट फिलिप बे के चारों ओर घुमाया. अपने अस्सी के दशक में, वह अभी भी नौकायन कर रही हैं.
डा. मिरियम रोज़ अनगुनमेर बॉमन एएम 2021 में सीनियर ऑस्ट्रेलियन ऑफ द ईयर थीं; उनका जीवन स्वदेशी युवाओं का समर्थन करने और स्वदेशी और गैर-स्वदेशी संस्कृतियों और लोगों को एकजुट करने वाले पुलों को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है.
ये तो कुछ उदाहरण भर हैं
इन महिलाओं की जीवन गाथाओं से पता चलता है कि उन्होंने लचीलापन और दृढ़ संकल्प प्रदर्शित करते हुए कठिनाई और दुःख को सहन किया। लेकिन व्यक्तिगत गुण बड़ी उम्र में जीवन को बेहतर बनाने में पूरी तरह से जिम्मेदार नहीं हो सकते हैं। महिलाओं को सिर्फ व्यायाम करने, अधिक सब्जियां खाने, बहुत सारी पहेलियाँ बुझाने और स्थानीय ऑप शॉप पर स्वयंसेवा करने के लिए कहना ही पर्याप्त नहीं है.
एक सामाजिक जिम्मेदारी महिलाओं में गुण हो सकते हैं जो उन्हें उत्पादक और संतोषजनक जीवन जीने में मदद करते हैं, लेकिन वे अपनी क्षमता को केवल एक ऐसे वातावरण में प्राप्त कर सकती हैं जो उन्हें बाधित करने के बजाय सक्षम बनाता है.
परिवेश में अन्य लोग (परिवार, दोस्त, काम करने वाले, समुदाय), वातावरण और सामाजिक नीतियां शामिल हैं। महिलाओं का बुढ़ापा अच्छा गुजरे यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है, जिसे हर किसी को उठाना है - न केवल इसलिए कि यह करना सही है बल्कि इसलिए कि इससे हम सभी को लाभ होगा.
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