वाशिंगटन:
अमेरिका में हुए एक अध्ययन से यह इशारा मिलता है कि रोज दो कप हॉट चॉकलेट पीने से वृद्ध व्यक्तियों के मस्तिष्क का स्वास्थ्य अच्छा रह सकता है।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की शोध पत्रिका न्यूरोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन में 60 लोगों को शामिल किया गया था, जिनकी औसत उम्र 73 वर्ष थी और उन्हें डिमेंशिया नहीं था।
प्रतिभागियों ने एक महीने तक रोजाना दो कप हॉट चॉकलेट पीया। उन्होंने इसके अलावा इस अवधि में और कोई भी चॉकलेट नहीं पीया। इन लोगों की स्मरण शक्ति और सोचने समझने की क्षमता की जांच के लिए परीक्षा ली गई और अल्ट्रासाउंड से यह पता लगाया गया कि उनके मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कितना होता है।
बोस्टन के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अध्ययन लेखक फरजाने सोरोंड ने कहा, हम मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह और सोचने समझने की प्रक्रिया पर उसके असर के बारे में अधिक से अधिक जानने की कोशिश कर रहे हैं। मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को अपने-अपने काम करने के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें अधिक रक्त प्रवाह भी चाहिए होता है।"
सोरोंड ने कहा, इस संबंध को न्यूरोवास्कुलर कप्लिंग कहा जाता है और यह अल्जाइमर्स जैसे रोगों में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
अध्ययन की शुरुआत में 60 में से 18 लोगों का रक्त प्रवाह बाधित था। शोधार्थियों ने देखा कि जिन 18 लोगों को रक्त प्रवाह बाधित था उनमें अध्ययन पूरा होने पर 8.3 फीसदी सुधार हुआ। जिन लोगों का रक्त प्रवाह ठीक था, उनमें कोई सुधार नहीं हुआ।
जिन लोगों का रक्त प्रवाह ठीक नहीं था, उनकी स्मरण क्षमता की जांच में लगने वाला समय भी 167 सैकेंड से घटकर 116 सैकेंड रह गया। जिन लोगों का रक्त प्रवाह ठीक नहीं था, उनके समय में कोई बदलाव नहीं हुआ।
अध्ययन का संपादकीय लिखने वाले बाल्टीमोर के जॉन हॉपकिंस स्कूल ऑफ मेडीसीन के पॉल रोजेनबर्ग ने कहा, कोकोआ, रक्त प्रवाह और चिंतन क्षमता के ह्रास के बीच संबंध स्थापित करने के लिए और अध्ययन की जरूरत है। उन्होंने हालांकि कहा, यह एक महत्वपूर्ण पहला कदम है। इससे अगले अध्ययनों में मार्गदर्शन मिल सकता है।
अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी की शोध पत्रिका न्यूरोलॉजी में प्रकाशित इस अध्ययन में 60 लोगों को शामिल किया गया था, जिनकी औसत उम्र 73 वर्ष थी और उन्हें डिमेंशिया नहीं था।
प्रतिभागियों ने एक महीने तक रोजाना दो कप हॉट चॉकलेट पीया। उन्होंने इसके अलावा इस अवधि में और कोई भी चॉकलेट नहीं पीया। इन लोगों की स्मरण शक्ति और सोचने समझने की क्षमता की जांच के लिए परीक्षा ली गई और अल्ट्रासाउंड से यह पता लगाया गया कि उनके मस्तिष्क में रक्त प्रवाह कितना होता है।
बोस्टन के हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के अध्ययन लेखक फरजाने सोरोंड ने कहा, हम मस्तिष्क में रक्त के प्रवाह और सोचने समझने की प्रक्रिया पर उसके असर के बारे में अधिक से अधिक जानने की कोशिश कर रहे हैं। मस्तिष्क के विभिन्न हिस्सों को अपने-अपने काम करने के लिए अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है, इसलिए उन्हें अधिक रक्त प्रवाह भी चाहिए होता है।"
सोरोंड ने कहा, इस संबंध को न्यूरोवास्कुलर कप्लिंग कहा जाता है और यह अल्जाइमर्स जैसे रोगों में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
अध्ययन की शुरुआत में 60 में से 18 लोगों का रक्त प्रवाह बाधित था। शोधार्थियों ने देखा कि जिन 18 लोगों को रक्त प्रवाह बाधित था उनमें अध्ययन पूरा होने पर 8.3 फीसदी सुधार हुआ। जिन लोगों का रक्त प्रवाह ठीक था, उनमें कोई सुधार नहीं हुआ।
जिन लोगों का रक्त प्रवाह ठीक नहीं था, उनकी स्मरण क्षमता की जांच में लगने वाला समय भी 167 सैकेंड से घटकर 116 सैकेंड रह गया। जिन लोगों का रक्त प्रवाह ठीक नहीं था, उनके समय में कोई बदलाव नहीं हुआ।
अध्ययन का संपादकीय लिखने वाले बाल्टीमोर के जॉन हॉपकिंस स्कूल ऑफ मेडीसीन के पॉल रोजेनबर्ग ने कहा, कोकोआ, रक्त प्रवाह और चिंतन क्षमता के ह्रास के बीच संबंध स्थापित करने के लिए और अध्ययन की जरूरत है। उन्होंने हालांकि कहा, यह एक महत्वपूर्ण पहला कदम है। इससे अगले अध्ययनों में मार्गदर्शन मिल सकता है।
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