16 साल के लड़के ने बनाया दृष्टिहीनों को पढ़ने में मदद करने वाला उपकरण. तस्वीर: प्रतीकात्मक
नई दिल्ली:
एक स्कूली छात्र ने दृष्टिहीनों के लिए एक ऐसा उपकरण बनाया है जो उनको न केवल पढ़ने में मदद करेगा बल्कि सड़क पर चलने के दौरान आसपास की आवाजों को एक ध्वनि में तब्दील कर किसी चीज की तस्वीर उनके दिमाग में बना देगा. गुड़गांव के एक निजी स्कूल में 12वीं कक्षा में पढ़ने वाले 16 वर्षीय गुरसिमरन सिंह ने 'आईस्क्राइब' नाम का चश्मे जैसा एक उपकरण बनाया है . दृष्टिहीन व्यक्ति कुछ सामग्री पढ़ना चाहेगा तो उसे यह चश्मा ऑडियो के रूप में उसे सुना देगा. इस उपकरण के लिए नीति आयोग ने उसे आर्थिक अनुदान भी दिया है और वह अगले महीने 'प्रुडेनशियल स्पिरिट ऑफ कम्युनिटी अवॉर्ड ग्लोबल सेरेमॅनी' के लिए अमेरिका जाएगा.
सिंह ने से कहा, 'मैंने चश्मे जैसा एक उपकरण बनाया है जिसका नाम 'आईस्क्राइब' है. यह दृष्टिहीन लोगों की पढ़ने में मदद करेगा. चाहे लिखे हुए शब्द किसी भी भाषा में क्यों न हों.' उन्होंने कहा, 'उपकरण में एक कैमरा और माइक्रो प्रोसेसर लगा हुआ है जो बटन दबाने पर शब्दों की फोटो लेता है और उसमें लगा प्रोसेसर शब्दों को ऑडियो में तब्दील कर देता है. यह ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन तकनीक के जरिए काम करता है, यानी जो भी आप पढ़ना चाहते हैं वह ऑडियो के रूप में आपको सुनाई देगा.' इस उपकरण के लिए सिंह को हाल ही में 'सातवां वाषिर्क प्रामेरिका स्पिरिट ऑफ कम्युनिटी अवॉर्ड' मिला है जिसमें उसे 50,000 रूपये दिए गए हैं.
सिंह ने कहा कि इसकी खासियत यह भी है कि यह आसपास की सभी आवाजों को एक ध्वनि में तब्दील कर देता है जिससे व्यक्ति अपने मस्तिष्क में किसी चीज की तस्वीर बना सकता है.
उन्होंने बताया, 'इस चश्मे में एक माइक्रो प्रोसेसर लगा हुआ है जो वैज्ञानिक सिद्धांत 'बाइनोरल बीट' के अनुसार आसपास की विभिन्न आवाजों को एक ध्वनि में तब्दील कर देगा. उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति अगर सड़क पर चल रहा है और पीछे से कोई गाड़ी आ रही है तो यह बता देगा कि गाड़ी कितनी तेजी से आ रही है और कितनी दूर है. इससे व्यक्ति अपने दिमाग में एक तस्वीर बना सकता है.' सिंह ने कहा कि उन्होंने यह उपकरण पिछले साल बनाया था और नीति आयोग ने इसके लिए आर्थिक अनुदान दिया है.
सिंह ने कहा कि नीति आयोग के अटल नवोन्मेष मिशन के तहत अटल टिकरिंग लैब के अंतर्गत पांच साल में इसे और अधिक उन्नत बनाने के लिए 20 लाख रूपये का अनुदान मिला है. इसको बनाने के लिए सिंह ने इंटरनेट की मदद ली और इस बारे में वहां पर सारी सामग्री पढ़ी.
उन्होंने कहा कि गुड़गांव में ही घर के पास दृष्टिहीनों के एक स्कूल में इसका सैंपल साइज लिया और यह पता लगाना चाहा कि यह कितना बड़ा होना चाहिए और इसकी कितनी गोलाई होनी चाहिए . वहां पर 150 बच्चों पर इसका परीक्षण किया गया .
सिंह के अनुसार, शुरू में उन्होंने सोचा था कि एक पेन ऐसा बनाया जाए जो शब्दों को डिजिटाइज करे. फिर बाद में चश्मे का विचार आया और इस पर काम करके उन्होंने इसको विकसित किया.
सिंह ने कहा कि वह पांच मई को अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन में सामुदायिक सेवा पर केंद्रित 'प्रुडेनशियल स्पिरिट ऑफ कम्युनिटी अवॉर्ड ग्लोबल सेरेमॅनी' में हिस्सा लेने जाएंगे. वह वाशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. इस कार्यक्रम में 20 अलग अलग देशों के लोग हिस्सा लेंगे.
उन्होंने कहा कि इस उपकरण को पेटेंट कराने की प्रक्रिया लंबित है. उनका मकसद इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना है.
सिंह ने कहा कि वह अब एक ऐसे उपकरण पर काम कर रहे हैं जो बोलने में अक्षम लोगों की मदद कर सके. उनकी योजना एक ऐसा उपकरण बनाने की है जो लिपसिंग को ऑडियो में तब्दील कर दे.
सिंह के पिता प्रीतपाल सिंह दक्षिण दिल्ली नगर निगम में काम करते हैं . वह अपने बेटे की कामयाबी से खासे खुश हैं, अपने बेटे की हर तरह से मदद करते हैं और उसे प्रेरित करते हैं.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
सिंह ने से कहा, 'मैंने चश्मे जैसा एक उपकरण बनाया है जिसका नाम 'आईस्क्राइब' है. यह दृष्टिहीन लोगों की पढ़ने में मदद करेगा. चाहे लिखे हुए शब्द किसी भी भाषा में क्यों न हों.' उन्होंने कहा, 'उपकरण में एक कैमरा और माइक्रो प्रोसेसर लगा हुआ है जो बटन दबाने पर शब्दों की फोटो लेता है और उसमें लगा प्रोसेसर शब्दों को ऑडियो में तब्दील कर देता है. यह ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन तकनीक के जरिए काम करता है, यानी जो भी आप पढ़ना चाहते हैं वह ऑडियो के रूप में आपको सुनाई देगा.' इस उपकरण के लिए सिंह को हाल ही में 'सातवां वाषिर्क प्रामेरिका स्पिरिट ऑफ कम्युनिटी अवॉर्ड' मिला है जिसमें उसे 50,000 रूपये दिए गए हैं.
सिंह ने कहा कि इसकी खासियत यह भी है कि यह आसपास की सभी आवाजों को एक ध्वनि में तब्दील कर देता है जिससे व्यक्ति अपने मस्तिष्क में किसी चीज की तस्वीर बना सकता है.
उन्होंने बताया, 'इस चश्मे में एक माइक्रो प्रोसेसर लगा हुआ है जो वैज्ञानिक सिद्धांत 'बाइनोरल बीट' के अनुसार आसपास की विभिन्न आवाजों को एक ध्वनि में तब्दील कर देगा. उदाहरण के तौर पर कोई व्यक्ति अगर सड़क पर चल रहा है और पीछे से कोई गाड़ी आ रही है तो यह बता देगा कि गाड़ी कितनी तेजी से आ रही है और कितनी दूर है. इससे व्यक्ति अपने दिमाग में एक तस्वीर बना सकता है.' सिंह ने कहा कि उन्होंने यह उपकरण पिछले साल बनाया था और नीति आयोग ने इसके लिए आर्थिक अनुदान दिया है.
सिंह ने कहा कि नीति आयोग के अटल नवोन्मेष मिशन के तहत अटल टिकरिंग लैब के अंतर्गत पांच साल में इसे और अधिक उन्नत बनाने के लिए 20 लाख रूपये का अनुदान मिला है. इसको बनाने के लिए सिंह ने इंटरनेट की मदद ली और इस बारे में वहां पर सारी सामग्री पढ़ी.
उन्होंने कहा कि गुड़गांव में ही घर के पास दृष्टिहीनों के एक स्कूल में इसका सैंपल साइज लिया और यह पता लगाना चाहा कि यह कितना बड़ा होना चाहिए और इसकी कितनी गोलाई होनी चाहिए . वहां पर 150 बच्चों पर इसका परीक्षण किया गया .
सिंह के अनुसार, शुरू में उन्होंने सोचा था कि एक पेन ऐसा बनाया जाए जो शब्दों को डिजिटाइज करे. फिर बाद में चश्मे का विचार आया और इस पर काम करके उन्होंने इसको विकसित किया.
सिंह ने कहा कि वह पांच मई को अमेरिकी राजधानी वाशिंगटन में सामुदायिक सेवा पर केंद्रित 'प्रुडेनशियल स्पिरिट ऑफ कम्युनिटी अवॉर्ड ग्लोबल सेरेमॅनी' में हिस्सा लेने जाएंगे. वह वाशिंगटन में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे. इस कार्यक्रम में 20 अलग अलग देशों के लोग हिस्सा लेंगे.
उन्होंने कहा कि इस उपकरण को पेटेंट कराने की प्रक्रिया लंबित है. उनका मकसद इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना है.
सिंह ने कहा कि वह अब एक ऐसे उपकरण पर काम कर रहे हैं जो बोलने में अक्षम लोगों की मदद कर सके. उनकी योजना एक ऐसा उपकरण बनाने की है जो लिपसिंग को ऑडियो में तब्दील कर दे.
सिंह के पिता प्रीतपाल सिंह दक्षिण दिल्ली नगर निगम में काम करते हैं . वह अपने बेटे की कामयाबी से खासे खुश हैं, अपने बेटे की हर तरह से मदद करते हैं और उसे प्रेरित करते हैं.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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