धर्मशाला:
भारत को अपना दूसरा घर मान चुके तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा के मन में पिछले 53 सालों में दाल रोटी के लिये प्यार पैदा हो चुका है और वह धर्मनिरपेक्षता के गुणों को ग्रहण कर चुके हैं।
अपने देश से 1959 में भरत आये तिब्बती धर्मगुरु का कहना है कि भारत आने के बाद जो सबसे बड़ी चीज उन्होंने सीखी वह थी ‘पाखंडी न बनने की कला’।
नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि जब 1951 से 1959 तक वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे तो और सदस्यों की तरह उनमें भी पाखंड की कला प्रखर होने लगी पर यह तभी खत्म हुई जब वह भारत पहुंचे।
उनका कहना है कि भारत आने और लंबे समय तक यहां रहने के बाद उन्होंने भारत के धर्म और संस्कृति से काफी कुछ सीखा है पर जिस चीज को वह सबसे ज्यादा प्रमुख तौर पर गिनाते हैं वह है उत्तरी भारत के मुख्य भोजन ‘दाल रोटी’ के लिये उनकी पसंद।
दलाई लामा ने बताया, ‘‘भारत में 50 साल तक रहने के बाद अब दाल रोटी मेरा पसंदीदा भोजन हो गयी है। जब भी मुझे मौका मिलता है तो मैं इस भारतीय व्यजंन का जायका लेता हूं।’’ उन्होंने कहा कि हाल ही में वह बिहार गये थे जहां उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कहा था कि वास्तव में बिहार ही बौद्ध धर्म की जन्मस्थली है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से ही तिब्बतियों की चिंताओं के प्रति सहानुभूति रखता आया है।
दलाई लामा ने कहा, ‘‘भारत में हिंदू, इस्लाम, सिख, बौद्ध सभी धर्म अहिंसा का पाठ पढ़ाते है और धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं। मैंने भी विभिन्न धर्मगुरुओं से विमर्श कर इन गुणों को आत्मसात किया है।’’ उन्होंने भारत की धर्मनिरपेक्षता की भी प्रंशसा की और इसे भारतीय संस्कृति का मुख्य सार बताया।
यह कहते हुए कि तिब्बतियों को मौजूदा संसार की गति के साथ कदम से कदम मिलाने के लिये आगे बढ़ना होगा ,दलाई लामा ने अपने शिष्यों को वैज्ञानिक प्रगति से रूबरू होने और वैज्ञानिकों से संपर्क बनाने के लिये प्रोत्साहित किया।
अपने देश से 1959 में भरत आये तिब्बती धर्मगुरु का कहना है कि भारत आने के बाद जो सबसे बड़ी चीज उन्होंने सीखी वह थी ‘पाखंडी न बनने की कला’।
नोबेल पुरस्कार विजेता ने कहा कि जब 1951 से 1959 तक वह चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सक्रिय सदस्य रहे तो और सदस्यों की तरह उनमें भी पाखंड की कला प्रखर होने लगी पर यह तभी खत्म हुई जब वह भारत पहुंचे।
उनका कहना है कि भारत आने और लंबे समय तक यहां रहने के बाद उन्होंने भारत के धर्म और संस्कृति से काफी कुछ सीखा है पर जिस चीज को वह सबसे ज्यादा प्रमुख तौर पर गिनाते हैं वह है उत्तरी भारत के मुख्य भोजन ‘दाल रोटी’ के लिये उनकी पसंद।
दलाई लामा ने बताया, ‘‘भारत में 50 साल तक रहने के बाद अब दाल रोटी मेरा पसंदीदा भोजन हो गयी है। जब भी मुझे मौका मिलता है तो मैं इस भारतीय व्यजंन का जायका लेता हूं।’’ उन्होंने कहा कि हाल ही में वह बिहार गये थे जहां उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कहा था कि वास्तव में बिहार ही बौद्ध धर्म की जन्मस्थली है। उन्होंने कहा कि भारत हमेशा से ही तिब्बतियों की चिंताओं के प्रति सहानुभूति रखता आया है।
दलाई लामा ने कहा, ‘‘भारत में हिंदू, इस्लाम, सिख, बौद्ध सभी धर्म अहिंसा का पाठ पढ़ाते है और धर्मनिरपेक्षता का पालन करते हैं। मैंने भी विभिन्न धर्मगुरुओं से विमर्श कर इन गुणों को आत्मसात किया है।’’ उन्होंने भारत की धर्मनिरपेक्षता की भी प्रंशसा की और इसे भारतीय संस्कृति का मुख्य सार बताया।
यह कहते हुए कि तिब्बतियों को मौजूदा संसार की गति के साथ कदम से कदम मिलाने के लिये आगे बढ़ना होगा ,दलाई लामा ने अपने शिष्यों को वैज्ञानिक प्रगति से रूबरू होने और वैज्ञानिकों से संपर्क बनाने के लिये प्रोत्साहित किया।
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