यह ख़बर 14 जनवरी, 2011 को प्रकाशित हुई थी

दक्षिण अफ्रीका में लंगूरों ने की नई खोज

खास बातें

  • लंगूरों के लिए जब पेड़ों से फल तोड़कर खाने की बात हो, तो वे फिर इधर-उधर मटरगश्ती करने में अपना समय नहीं गंवाते बल्कि उस समय उनका पूरा ध्यान अपना पेट भरने पर होता है। लंगूरों की इस आदत से दक्षिण अफ्रीका में एक नए प्रकार के संतरे की खोज हुई है।
जोहानिसबर्ग:

लंगूरों के लिए जब पेड़ों से फल तोड़कर खाने की बात हो, तो वे फिर इधर-उधर मटरगश्ती करने में अपना समय नहीं गंवाते बल्कि उस समय उनका पूरा ध्यान अपना पेट भरने पर होता है। लंगूरों की इस आदत से दक्षिण अफ्रीका में एक नए प्रकार के संतरे की खोज हुई है। दक्षिण अफ्रीकी किसान एल्विन वान डेर मर्वे ने बताया कि कई साल पहले मजदूरों ने देखा कि एक पेड़ पर लगे संतरों को लंगूर जल्द ही चट कर गए। उस समय दूसरे पेड़ों पर भी संतरे लगे थे, लेकिन लंगूरों ने सबसे पहले उस खास पेड़ के संतरों पर ही झपट्टा मारा। अगले साल भी ठीक ऐसा ही हुआ। किसान और खेत मजदूरों के लिए यह एक पहेली बन गया कि लंगूर एक खास पेड़ के संतरों को ही सबसे पहले क्यों अपना भोजन बनाते हैं। इस पर एक मजदूर ने इस रहस्य को आखिरकार सुलझा लिया। पता चला कि जिस पेड़ के संतरों पर लंगूर सेना झपट पड़ती है, दरअसल उस पेड़ के संतरे दूसरे पेड़ों पर लगे संतरों से तीन-चार सप्ताह पहले ही पक जाते हैं। मर्वे ने बताया कि बाद में परीक्षण में पता चला कि लंगूरों की पसंद के पेड़ पर लगे संतरे खाने में मीठे होते हैं और ये तेजी से पकते हैं। इस किसान ने बाद में कलम के जरिए उस पेड़ से और पेड़ तैयार किए। दक्षिण अफ्रीक की स्रिटस ग्रोअर एसोसिएशन के प्रमुख जस्टिन चाडविक ने कहा कि विशेषज्ञ प्रयोगशालाओं में लगातार संतरे की ऐसी किस्म विकसित करने में लगे हैं, जो खाने में मीठी और तेजी से पकने वाली हो।


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