जामताड़ा में काजू की इतनी बड़ी पैदावार चंद साल की मेहनत के बाद शुरू हुई है.
जामताड़ा:
काजू खाने या खिलाने की बात आते ही आमतौर पर लोग जेब टटोलने लगते हैं. ऐसे में कोई कहे कि काजू की कीमत आलू-प्याज से भी कम है तो आप शायद ही विश्वास करेंगे. यानी अगर आप दिल्ली में 800 रुपए किलो काजू खरीदते हैं तो यहां से 12 सौ किलोमीटर दूर झारखंड में काजू बेहद सस्ते हैं. जामताड़ा जिले में काजू 10 से 20 रुपये प्रति किलो बिकते हैं. जामताड़ा के नाला में करीब 49 एकड़ इलाके में काजू के बागान हैं. बागान में काम करने वाले बच्चे और महिलाएं काजू को बेहद सस्ते दाम में बेच देते हैं. काजू की फसल में फायदा होने के चलते इलाके के काफी लोगों का रुझान इस ओर हो रहा है. ये बागान जामताड़ा ब्लॉक मुख्यालय से चार किलोमीटर की दूरी हैं.
बागान बनने के पीछे है दिलचस्प कहानी
सबसे दिलचस्प बात यह है कि जामताड़ा में काजू की इतनी बड़ी पैदावार चंद साल की मेहनत के बाद शुरू हुई है. इलाके के लोग बताते हैं जामताड़ा के पूर्व उपायुक्त कृपानंद झा को काजू खाना बेहद पसंद था. इसी वजह वह चाहते थे कि जामताड़ा में काजू के बागान बन जाए तो वे ताजी और सस्ती काजू खा सकेंगे.
इसी वजह से कृपानंद झा ने ओडिशा में काजू की खेती करने वालों से मिले. उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से जामताड़ा की भौगोलिक स्थिति का पता किया. इसके बाद यहां काजू की बागवानी शुरू कराई. देखते ही देखते चंद साल में यहां काजू की बड़े पैमाने पर खेती होने लगी.
कृपानंद झा के यहां से जाने के बाद निमाई चन्द्र घोष एंड कंपनी को केवल तीन लाख रुपए भुगतान पर तीन साल के लिए बागान की निगरानी का जिम्मा सौंपा गया. एक अनुमान के मुताबिक बागान में हर साल हजारों क्विंटल काजू फलते हैं. देखरेख के अभाव में स्थानीय लोग और यहां से गुजरने वाले काजू तोड़कर ले जाते हैं.
काजू की बागवानी में जुटे लोगों ने कई बार राज्य सरकार से फसल की सुरक्षा की गुहार लगाई, पर खास ध्यान नहीं दिया गया. पिछले साल सरकार ने नाला इलाके में 100 हेक्टेयर भूमि पर काजू के पौधे लगाए जाने की बात कही थी. पौधारोपण की सभी प्रकार की तैयारी विभाग ने पूरी कर ली है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत काजू पौधा लगाने की जिम्मेदारी जिला कृषि विभाग को दी गई, लेकिन अभी तक इसपर काम नहीं शुरू हो सका है.
सरकार ने इलाके के किसानों की हालत सुधारने के लिए यहां काजू की बागवानी बढ़ाने और उन्हें उचित दाम दिलाने का वादा कर रही है.
बागान बनने के पीछे है दिलचस्प कहानी
सबसे दिलचस्प बात यह है कि जामताड़ा में काजू की इतनी बड़ी पैदावार चंद साल की मेहनत के बाद शुरू हुई है. इलाके के लोग बताते हैं जामताड़ा के पूर्व उपायुक्त कृपानंद झा को काजू खाना बेहद पसंद था. इसी वजह वह चाहते थे कि जामताड़ा में काजू के बागान बन जाए तो वे ताजी और सस्ती काजू खा सकेंगे.
इसी वजह से कृपानंद झा ने ओडिशा में काजू की खेती करने वालों से मिले. उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों से जामताड़ा की भौगोलिक स्थिति का पता किया. इसके बाद यहां काजू की बागवानी शुरू कराई. देखते ही देखते चंद साल में यहां काजू की बड़े पैमाने पर खेती होने लगी.
कृपानंद झा के यहां से जाने के बाद निमाई चन्द्र घोष एंड कंपनी को केवल तीन लाख रुपए भुगतान पर तीन साल के लिए बागान की निगरानी का जिम्मा सौंपा गया. एक अनुमान के मुताबिक बागान में हर साल हजारों क्विंटल काजू फलते हैं. देखरेख के अभाव में स्थानीय लोग और यहां से गुजरने वाले काजू तोड़कर ले जाते हैं.
काजू की बागवानी में जुटे लोगों ने कई बार राज्य सरकार से फसल की सुरक्षा की गुहार लगाई, पर खास ध्यान नहीं दिया गया. पिछले साल सरकार ने नाला इलाके में 100 हेक्टेयर भूमि पर काजू के पौधे लगाए जाने की बात कही थी. पौधारोपण की सभी प्रकार की तैयारी विभाग ने पूरी कर ली है। राष्ट्रीय बागवानी मिशन के तहत काजू पौधा लगाने की जिम्मेदारी जिला कृषि विभाग को दी गई, लेकिन अभी तक इसपर काम नहीं शुरू हो सका है.
सरकार ने इलाके के किसानों की हालत सुधारने के लिए यहां काजू की बागवानी बढ़ाने और उन्हें उचित दाम दिलाने का वादा कर रही है.