Oyo Rooms के इस 21 साल के टॉप बॉस की जिन्दगी की फिल्मी कहानी

Oyo Rooms के इस 21 साल के टॉप बॉस की जिन्दगी की फिल्मी कहानी

ओयो रुम्स के टॉप बॉस रितेश अग्रवाल

नई दिल्ली:

रितेश अग्रवाल जब यह कहते हैं कि उनकी जिन्दगी किसी फिल्म की पटकथा जैसी है तो कुछ गलत कहते नहीं लगते! 21 साल के रितेश आजकल अपने मल्टी-मिलियन डॉलर के स्टार्ट अप Oyo Rooms (ओयो रुम्स) के टॉप बॉस हैं। हाल ही में उन्हें 100 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानी 636 करोड़ रुपए की फंडिग मिली है। लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती, बात दरअसल कुछ और है।

कॉलेज ड्रॉप-आउट हैं रितेश...

इस समय हम सॉफ्टबैंक जापान की ओर से रितेश अग्रवाल को मिली इस बड़ी फंडिग की नहीं, किसी और कहानी की बात कर रहे हैं। रितेश कभी इंजिनियरिंग के एग्जाम देने का सपना सजाते लेकिन कॉलेज की पढ़ाई अधूरी छोड़कर उस नए सपने को पूरा करने में लग गए। किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा जिसने कभी स्कूल से ज्यादा पढ़ाई न की हो, चलाया जाने वाला सबसे अधिक वैल्यूएबल स्टार्टअप है ओयो रूम्स।

कभी बेचते थे सिम कार्ड...

एक जमाने में उन्होंने सिम कार्ड भी बेचे। उन्हें डर था कि कहीं आंत्रप्रन्योर बनने के उनके संघर्षों के बारे में पता चलने पर उनके परिवार वाले उन्हें वापस ओडिशा वापस न बुला लें। कोटा में वह कर तो आईआईटी के एग्जाम्स की तैयारी रहे थे लेकिन हर वीकेंड वह दिल्ली आ जाते थे ताकि अपने सपने को मूर्त रूप दे सकें।

18 साल की उम्र में शुरू किया..

18 साल की उम्र में रितेश ने 2011 में उन्होंने Oraval Stays नाम का होटेल रेंटल स्टार्टअप शुरू किया था जो आज की तारीख में ओयो रूम्स का रूप पा चुका है और इसी नाम से मशहूर है। जब हम उनसे मिले, वे नंगे पैर थे। बोले, जूतों से बंदिश लगती है। साथ में था उनका मशहूर बैकपैक, जो सालों से उनकी जरूरी चीजों का पिटारा बनकर उनके साथ है। क्योंकि, उन्हें नहीं पता होता कि उनकी रात सीढ़ियों के ईर्द गिर्द गुजरेगी या कहीं और...।

आलोचना के शिकार भी..

रितेश अग्रवाल की कहानी में सबुकछ हरा ही हरा नहीं है। उन पर उनके काम करने  के तरीकों को लेकर हमेशा आलोचना होती है। एक सहसंस्थापक को बाहर निकाल देना और सैलरीज़ न चुकाना। इस पर रितेश कहते हैं कि वह इन सब पर बात करके इन मुद्दों को हवा नहीं देना चाहते।

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असोचैम के मुताबिक, 2020 तक भारत में आंत्रप्रन्योर और नए आइडिया और तरीके विकसित करने वाले इनोवेटर्स ही अगला बिलेनियर्स क्लब बनाएंगे। यही लोग होंगे जो भारत में आंत्रप्रन्योरशिप का रास्ता बुलंद करेंगे।