डॉ एपीजे अब्दुल कलाम की फाइल तस्वीर
नई दिल्ली:
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का सबसे प्रिय सपना पायलट बनना था, लेकिन वह अपने सपने के बहुत करीब पहुंचकर चूक गए थे। भारतीय वायुसेना में तब केवल आठ जगहें खाली थीं और कलाम को चयन में नौंवा स्थान मिला था।
कलाम ने अपनी नई किताब 'माई जर्नी : ट्रांसफोर्मिंग ड्रीम्स इन टू एक्शंस' में यह बात कही है। रूपा पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित इस किताब में कलाम ने लिखा है कि वह पायलट बनने के लिए बहुत बेताब थे। कलाम ने मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी।
कलाम ने लिखा है, "मैं हवा में ऊची से ऊंची उड़ान के दौरान मशीन को नियंत्रित करना चाहता था, यही मेरा सबसे प्रिय सपना था।" कलाम को दो साक्षात्कारों के लिए बुलाया गया था। इनमें से एक साक्षात्कार देहरादून में भारतीय वायुसेना का और दूसरा दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (डीटीडीपी) का था।
कलाम ने लिखा कि डीटीडीपी का साक्षात्कार 'आसान' था, लेकिन वायुसेना चयन बोर्ड के साक्षात्कार के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि योग्यताओं और इंजीनियरिंग के ज्ञान के अलावा बोर्ड, उम्मीदवारों में खास तरह की 'होशियारी' देखना चाहता था। वहां आए 25 उम्मीदवारों में कलाम को नौंवा स्थान मिला, लेकिन केवल आठ जगहें खाली होने की वजह से उनका चयन नहीं हुआ।
कलाम ने कहा, मैं वायुसेना का पायलट बनने का अपना सपना पूरा करने में असफल रहा। उन्होंने लिखा है, मैं तब कुछ दूर तक चलता रहा और तब तक चलता रहा जब तक की एक टीले के किनारे नहीं पहुंच गया... इसके बाद उन्होंने ऋषिकेश जाने और एक नई राह तलाशने का फैसला किया।
डीटीडीपी में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक की अपनी नौकरी में अपना 'दिल और जान डालने वाले' कलाम ने लिखा, जब हम असफल होते हैं, तभी हमें पता चलता है कि यह संसाधन हमारे अंदर हमेशा से ही थे। हमें उनकी तलाश करनी होती है और जीवन में आगे बढ़ना होता है। इस किताब में वैज्ञानिक सलाहकार के तौर पर उनके कार्यकाल, सेवानिवृत्ति के बाद का समय और इसके बाद शिक्षण के प्रति उनका समर्पण एवं राष्ट्रपति के तौर पर उनके कार्यकाल से जुड़ी 'असंख्य चुनौतियां और सीखों' की कहानियां हैं। कलाम के वैज्ञानिक सलाहकार रहते हुए ही भारत ने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया था।
कलाम ने इस किताब में अपने जीवन की सीखें, किस्से, महत्वपूर्ण क्षण और खुद को प्रेरित करने वाले लोगों का वर्णन किया है। किताब 20 अगस्त से बुक स्टैंडों पर मिलने लगेगी। बैलिस्टिक मिसाइल प्रौद्योगिकी के विकास में दिए गए योगदान के लिए 'मिसाइल मैन' के नाम से जाने जाने वाले 82-वर्षीय कलाम की इससे पहले 1999 में 'विंग्स ऑफ फायर' नाम की आत्मकथा और उनके राजनीतिक करियर और चुनौतियों पर आधारित किताब 'टर्निंग प्वाइंट्स अ जर्नी थ्रू चैंलेजेज' वर्ष 2012 में प्रकाशित हो चुकी है।
अपनी इस नई किताब में कलाम ने उन लोगों की चर्चा की है, जिन्होंने किशोरावस्था में उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। 147 पृष्ठों वाली इस किताब में कलाम ने अपने पिता को नाव बनाते देखने के अनुभव, आठ साल की उम्र में न्यूजपेपर हॉकर के तौर पर अपने काम करने आदि के बारे में लिखा है। कलाम ने इसमें अपनी पसंदीदा किताबों, कविताओं के बारे में भी लिखा है।
अपनी किताब के अंतिम हिस्से में कलाम लिखते हैं कि उनके जीवन को "एक बच्चे को मिले प्यार...उसका संघर्ष...और ज्यादा संघर्ष...कड़वे आंसू...फिर खुशी के आंसू..और अंत में एक पूरे चांद को आकार लेते देखने जितने खूबसूरत और पूर्णता वाले जीवन" के रूप में देखा जा सकता है। कलाम ने लिखा है, "मुझे उम्मीद है कि इन कहानियों से मेरे सभी पाठकों को अपने सपनों को समझने में मदद मिलेगी और वह उन सपनों के लिए मेहनत करने के लिए जगे रहेंगे।"
कलाम ने अपनी नई किताब 'माई जर्नी : ट्रांसफोर्मिंग ड्रीम्स इन टू एक्शंस' में यह बात कही है। रूपा पब्लिकेशंस द्वारा प्रकाशित इस किताब में कलाम ने लिखा है कि वह पायलट बनने के लिए बहुत बेताब थे। कलाम ने मद्रास प्रौद्योगिकी संस्थान से एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी।
कलाम ने लिखा है, "मैं हवा में ऊची से ऊंची उड़ान के दौरान मशीन को नियंत्रित करना चाहता था, यही मेरा सबसे प्रिय सपना था।" कलाम को दो साक्षात्कारों के लिए बुलाया गया था। इनमें से एक साक्षात्कार देहरादून में भारतीय वायुसेना का और दूसरा दिल्ली में रक्षा मंत्रालय के तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (डीटीडीपी) का था।
कलाम ने लिखा कि डीटीडीपी का साक्षात्कार 'आसान' था, लेकिन वायुसेना चयन बोर्ड के साक्षात्कार के दौरान उन्हें महसूस हुआ कि योग्यताओं और इंजीनियरिंग के ज्ञान के अलावा बोर्ड, उम्मीदवारों में खास तरह की 'होशियारी' देखना चाहता था। वहां आए 25 उम्मीदवारों में कलाम को नौंवा स्थान मिला, लेकिन केवल आठ जगहें खाली होने की वजह से उनका चयन नहीं हुआ।
कलाम ने कहा, मैं वायुसेना का पायलट बनने का अपना सपना पूरा करने में असफल रहा। उन्होंने लिखा है, मैं तब कुछ दूर तक चलता रहा और तब तक चलता रहा जब तक की एक टीले के किनारे नहीं पहुंच गया... इसके बाद उन्होंने ऋषिकेश जाने और एक नई राह तलाशने का फैसला किया।
डीटीडीपी में वरिष्ठ वैज्ञानिक सहायक की अपनी नौकरी में अपना 'दिल और जान डालने वाले' कलाम ने लिखा, जब हम असफल होते हैं, तभी हमें पता चलता है कि यह संसाधन हमारे अंदर हमेशा से ही थे। हमें उनकी तलाश करनी होती है और जीवन में आगे बढ़ना होता है। इस किताब में वैज्ञानिक सलाहकार के तौर पर उनके कार्यकाल, सेवानिवृत्ति के बाद का समय और इसके बाद शिक्षण के प्रति उनका समर्पण एवं राष्ट्रपति के तौर पर उनके कार्यकाल से जुड़ी 'असंख्य चुनौतियां और सीखों' की कहानियां हैं। कलाम के वैज्ञानिक सलाहकार रहते हुए ही भारत ने अपना दूसरा परमाणु परीक्षण किया था।
कलाम ने इस किताब में अपने जीवन की सीखें, किस्से, महत्वपूर्ण क्षण और खुद को प्रेरित करने वाले लोगों का वर्णन किया है। किताब 20 अगस्त से बुक स्टैंडों पर मिलने लगेगी। बैलिस्टिक मिसाइल प्रौद्योगिकी के विकास में दिए गए योगदान के लिए 'मिसाइल मैन' के नाम से जाने जाने वाले 82-वर्षीय कलाम की इससे पहले 1999 में 'विंग्स ऑफ फायर' नाम की आत्मकथा और उनके राजनीतिक करियर और चुनौतियों पर आधारित किताब 'टर्निंग प्वाइंट्स अ जर्नी थ्रू चैंलेजेज' वर्ष 2012 में प्रकाशित हो चुकी है।
अपनी इस नई किताब में कलाम ने उन लोगों की चर्चा की है, जिन्होंने किशोरावस्था में उनके जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। 147 पृष्ठों वाली इस किताब में कलाम ने अपने पिता को नाव बनाते देखने के अनुभव, आठ साल की उम्र में न्यूजपेपर हॉकर के तौर पर अपने काम करने आदि के बारे में लिखा है। कलाम ने इसमें अपनी पसंदीदा किताबों, कविताओं के बारे में भी लिखा है।
अपनी किताब के अंतिम हिस्से में कलाम लिखते हैं कि उनके जीवन को "एक बच्चे को मिले प्यार...उसका संघर्ष...और ज्यादा संघर्ष...कड़वे आंसू...फिर खुशी के आंसू..और अंत में एक पूरे चांद को आकार लेते देखने जितने खूबसूरत और पूर्णता वाले जीवन" के रूप में देखा जा सकता है। कलाम ने लिखा है, "मुझे उम्मीद है कि इन कहानियों से मेरे सभी पाठकों को अपने सपनों को समझने में मदद मिलेगी और वह उन सपनों के लिए मेहनत करने के लिए जगे रहेंगे।"
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