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This Article is From Dec 18, 2016

बिहार के चनका गांव में शुरू हुआ है एक अनोखा 'रेसीडेंसी' कार्यक्रम

बिहार के चनका गांव में शुरू हुआ है एक अनोखा 'रेसीडेंसी' कार्यक्रम
पूर्णिया: आमतौर पर गांव को लेकर हम सभी के जेहन में एक ही बात घूमती है - किसान और किसानी. लेकिन, बिहार के पूर्णिया जिले से 25 किलोमीटर दूर गांव चनका इन दिनों 'रेसीडेंसी' के कारण सुर्खियों में है. इस रेसीडेंसी का नाम 'चनका रेसीडेंसी' रखा गया है. इस रेसीडेंसी की शुरुआत आस्ट्रेलिया के ला ट्रोब यूनिवर्सिटी के हिंदी के प्रोफेसर इयान वुलफोर्ड ने की और वे इस रेसीडेंसी के पहले 'राइटर गेस्ट' बने हैं.

चनका रेसीडेंसी में साहित्य, कला, संगीत, विज्ञान और समाज के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े ऐसे लोग शामिल होते हैं, जिनकी रुचि ग्रामीण परिवेश में है. चनका रेसीडेंसी शुरू करने वाले किसान और लेखक गिरींद्र नाथ झा ने बताया कि उन्होंने रेसीडेंसी प्रोग्राम को बेहद सामान्य तरीके से शुरू किया है. उन्होंने कहा 'गांव की संस्कृति की बात हम सभी करते हैं, लेकिन गांव में रहने से कतराते हैं. मेरी इच्छा है कि रेसीडेंसी में कला, साहित्य, पत्रकारिता और अन्य विषयों में रुचि रखने वाले लोग आएं और गांव-घर में वक्त गुजारें. गांव को समझे-बूझें. खेत-पथार, तलाब, कुआं, ग्राम्य गीत आदि को नजदीक से देखें.'

गिरींद्र ने बताया कि वे किसानी करते हुए एक नई शुरुआत कर रहे हैं, क्योंकि वे किसानी को इस तरह जीना चाहते हैं, जिससे आने वाली नई पीढ़ी भी गांव की तरफ मुड़े. किसानी को भी लोग पेशा समझें. किसानी से लोगों का मोहभंग न हो. रेसीडेंसी के पहले राइटर गेस्ट इयान वुलफोर्ड कहते हैं कि वे बिहार के सुदूरवर्ती गांव चनका में पिछले पांच दिनों से रह रहे हैं. ईयान बताते हैं 'मैं फणीश्वर नाथ रेणु के साहित्य पर काम कर रहा हूं. गिरींद्र से इसी कड़ी में मुलाकात भी हुई. बाद में उनकी किताब 'इश्क में माटी सोना' पढ़ा. कुछ दिन पहले पता चला कि वे रेसीडेंसी शुरू करने जा रहे हैं तो मैंने इसमें शामिल होने की इच्छा जाहिर की. यहां अच्छा लग रहा है.'
 
ian woolford
ईयान वुलफोर्ड इस रेसीडेंसी के पहले मेहमान हैं

चनका रेसीडेंसी में शामिल लोगों को गांव की आदिवासी संस्कृति, लोक संगीत, कला आदि से रू-ब-रू करवाया जाता है. बिहार में यह खुद में एक अनोखा प्रयोग है. गिरींद्र ने बताया कि वे शुरुआत में केवल एक ही गेस्ट रेसीडेंट को रखेंगे, लेकिन बाद में इसकी संख्या बढ़ाएंगे. इस रेसीडेंसी को ग्रामीण पर्यटन से जोड़कर भी देखा जा सकता है, क्योंकि इसी बहाने महानगरों में रह रहे लोग गांव को नजदीक से समझेंगे और यहां की लोक कलाओं को जान पाएंगे, जिसके लिए वे अब तक केवल इंटरनेट पर आश्रित रहे हैं.

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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