
- भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ नीति और रूस के साथ संबंधों के कारण गंभीर विश्वास संकट उत्पन्न हो गया है.
- प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका के दबाव के बावजूद राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करते हुए कड़ा रुख अपनाया है.
- ट्रंप ने भारत के प्रति कई बार आलोचना की और पीएम मोदी को यूक्रेन युद्ध में उदासीन बताते हुए अपमानित किया.
भारत और अमेरिका के बीच रिश्ते इन दिनों गंभीर दौर में हैं और अगर कहा जाए कि दोनों देशों के बीच अविश्वास की एक गहरी खाई आ गई है तो गलत नहीं होगा. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की तरफ से भारत पर लगाए गए टैरिफ के बाद भारत ने रूस और चीन के साथ अपनी करीबी को बढ़ाया. विदेशी मामलों के जानकार और रोज हो रहे घटनाक्रमों पर नजर रखने वाले लोगों की राय अलग-अलग है लेकिन काफी लोग इस बात से सहमत हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत का जो रुख है, उसने खुद ट्रंप का भी हैरान कर दिया है. इजरायल के अखबार जेरूशलम पोस्ट में जकी शालोम ने एक आर्टिकल लिखा है जिसमें उन्होंने अपने देश के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को पीएम मोदी से सीख लेने की बात कही है. आखिर शलोम ने ऐसा क्यों कहा, आइए आपको बताते हैं.
टैरिफ और ट्रंप की नाराजगी
शलोम ने अपने आर्टिकल जिसका टाइटल है, 'What Israel can learn from Modi : National honor as strategic asset' में लिखा है कि हाल के कुछ महीनों में अमेरिका-भारत के रिश्ते गंभीर विश्वास संकट में फंस गए हैं. टैरिफ नीति से लेकर रूस के साथ भारत के खास संबंधों के अलावा पाकिस्तान के साथ मई में हुए भारत के संघर्ष के लिए अमेरिकी प्रशासन का विवादित नजरिया इसके लिए जिम्मेदार है. ट्रंप ने बार-बार भारत की ओर से अमेरिकी आयात पर लगाए जाने वाले हाई टैरिफ को लेकर अपनी नाराजगी जताई है. वह अक्सर कहते आए हैं कि भारत दुनिया में सबसे ज्यादा टैरिफ लगाता है.
शलोम के अनुसार यह सिर्फ एक पहलू था. भारत और रूस के रिश्ते काफी करीबी हैं और भारत, रूस के तेल का सबसे बड़ा खरीददार है. वहीं ट्रंप ने भारत और रूस को 'डेड इकॉनमी' बताया. ट्रंप ने तो यहां तक कह दिया के पीएम मोदी को यूक्रेन में मारे गए लोगों की कोई परवाह नहीं है. शलोम ने लिखा है कि यह एक ऐसा बयान था जो न सिर्फ पीएम मोदी का अपमान करने वाला था बल्कि इसके जरिये एक शक्ति के तौर पर भारत को नीचा दिखाने की कोशिश की गई थी.
राष्ट्रीय सम्मान और मोदी की प्रतिक्रिया
पाकिस्तान के साथ मई में छिड़े संघर्ष में, ट्रंप ने खुद को एक तटस्थ मध्यस्थ के रूप में स्थापित करने की कोशिश की. उनका दावा था कि उन्होंने भारत और पाकिस्तान को प्रतिबंधों की धमकी दी और युद्ध रुकवाया. हालांकि पाकिस्तान ने उनकी मध्यस्थता की तारीफ की और उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार देने का प्रस्ताव रख दिया. लेकिन दूसरी ओर भारत था जिसने अमेरिका की भूमिका को इनकार कर दिया. यह घटना बताने के लिए काफी थी कि नई दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच अविश्वास कैसे बढ़ रहा है. शलोम की मानें तो मोदी की तीखी प्रतिक्रिया न सिर्फ आर्थिक और सैन्य तनाव से उपजी थी, बल्कि उसके लिए व्यक्तिगत और राष्ट्रीय सम्मान भी जिम्मेदार थे. उन्होंने राष्ट्रपति ट्रंप के चार फोन कॉल अस्वीकार कर दिए. इस संदर्भ में इजरायल कुछ महत्वपूर्ण सीख सकता है.
माफी मांगते नेतन्याहू और कमजोर होता इजरायल
शलोम ने 25 अगस्त की एक घटना का जिक्र किया है जो खान यूनिस में हुई थी जिसमें नासिर अस्पताल पर एक इजराइली गोला गिरा था. इस घटना में पत्रकारों समेत करीब 20 लोगों की मौत हो गई थी. कुछ ही घंटों के अंदर आईडीएफ प्रवक्ता, चीफ ऑफ स्टाफ और प्रधानमंत्री ने तुरंत प्रतिक्रिया दी. आईडीएफ ने 'निर्दोष नागरिकों' को नुकसान पहुंचाने के लिए अंग्रेजी में माफी मांगी. चीफ ऑफ स्टाफ ने घोषणा की कि तुरंत जांच की जाएगी. वहीं प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने इस घटना को एक 'दुखद घटना' बताया.
शलोम के मुताबिक इन तीनों बयानों से साफ था कि न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को संतुष्ट करने की इच्छा थी बल्कि घटना के परिणामों को लेकर चिंता और शायद 'घबराहट' भी थी. उनका मानना है कि नेताओं ने नागरिकों की हत्या का जिम्मेदारी लेने का संदेश दिया जो कि एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है. बाद में पता लगा कि पीड़ितों में से कई हमास के थे. पूरी जानकारी का इंतजार करने के बजाय, इजरायल ने जिम्मेदारी स्वीकार करने का जो मैसेज दिया वह उसकी कूटनीतिक और कानूनी स्थिति को कमजोर करता है.
भारत से सबक ले इजरायल
शलेाम ने लिखा है कि यहीं पर हमें पीएम मोदी के उदाहरण पर वापस लौटना चाहिए. ट्रंप के असाधारण 'मौखिक' हमलों का सामना करते हुए, मोदी ने माफी नहीं मांगी बल्कि राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा करते हुए जोरदार जवाब देने का विकल्प चुना. हो सकता है कि उनका नजरिया कठोर है और एक साफ संदेश दे गया कि भारत गुलाम या दोयम दर्जे वाला व्यवहार स्वीकार नहीं करेगा. लेकिन इसके इजरायल ने खान यूनिस घटना के दौरान भले ही बहुत ज्यादा पारदर्शिता और चिंता दिखाई और थोड़े समय को नुकसान को कम कर लिया लेकिन लंबे समय के लिए रणनीतिक हितों को संभावित रूप से नुकसान पहुंचा सकता है.
शलोम ने लिखा है कि भारत से हम सीख सकते हैं कि राष्ट्रीय सम्मान कोई लग्जरी नहीं है बल्कि एक दूरगामी रणनीतिक संपत्ति है. अगर इजरायल अपनी प्रतिष्ठा और सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहता है तो उसे दुनिया के सामने दृढ़ता के साथ पेश आना होगा. इसका अर्थ यही है कि भले ही अंतरराष्ट्रीय दबाव कितना ही क्यों न हो लेकिन माफी मांगने में जल्दबाजी न की जाए.
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