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This Article is From May 22, 2025

साउथ अफ्रीका में 'गोरों के नरसंहार' की असली कहानी क्या है, जानें हर एक बात

ट्रंप ने पहले पहले कार्यकाल में भी गोरे किसानों की बड़े पैमाने पर हत्या का दावा किया था. एक बार फिर उन्होंने इसी बात को सबूत के साथ दोहराया है. श्वेत किसानों की हत्या से जु़ड़ी भ्रामक जानकारी ऑनलाइन जमकर सर्कुलेट हो रही है. ट्रंप ने भी एक ऐसा ही दावे वाला वीडियो रामफोसा को दिखाया है. 

साउथ अफ्रीका में 'गोरों के नरसंहार' की असली कहानी क्या है,  जानें हर एक बात
साउथ अफ्रीका में श्वेत नरसंहार का दावा.
नई दिल्ली:

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अफ्रीका में गोरे किसानों के नरसंहार का आरोप (Genocide of Whites In South Africa) अक्सर लगाते रहे हैं. बधवार को जब ट्रंप व्हाइट हाउस में राष्ट्रपति रामफोसा से मिले तो उन्होंने एक बार फिर से गोरे किसानों के नरसंहार का आरोप लगाया. इस आरोप के साथ उन्होंने वीडियो के तौर पर कुछ सबूत भी दिखाए. हालांकि दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति ने ट्रंप के आरोप को सिरे से खारिज कर दिया. इस बीच ये सवाल हर किसी के जहन में घूम रहा है कि आखिर साउथ अफ्रीका में गोरों के नरसंहार की असली कहानी है क्या.

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इस बीच ये जानना भी जरूरी है कि दक्षिण अफ्रीका के अफ़्रीकनेर समुदाय के लोगों को अमेरिका ने शरणार्थी का दर्जा दिया है. ये एक श्वेत किसान समुदाय है, जो 17वीं शताब्दी के मध्य में साउथ अफ्रीका में जाकर बस गए थे. अमेरिका अब तक 60 लोगों को अपने देश में शरण दे चुका है. ट्रंप का आरोप है कि अफ्रीका में उनका नरसंहार हो रहा है. 

(अफ्रीका से आए शरणार्थी)

(अफ्रीका से आए शरणार्थी)

क्या है अफ्रीका में श्वेत नरसंहार की सच्चाई?

एक तरफ अमेरिकी राष्ट्रपति गोरे किसानों के नरसंहार का आरोप दक्षिण अफ्रीका पर लगा रहे हैं. BBC में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, वहां के किसी भी दल, खासकर श्वेत समुदाय का नेतृत्व करने वाले नेताओं ने अफ्रीका में नरसंहार का कोई दावा आज तक नहीं किया है. लेकिन फिर भी ऐसे दावे सालों से दक्षिणपंथी समूह करते रहे हैं. ट्रंप ने पहले पहले कार्यकाल में भी गोरे किसानों की बड़े पैमाने पर हत्या का दावा किया था. एक बार फिर उन्होंने इसी बात को सबूत के साथ दोहराया है. श्वेत किसानों की हत्या से जु़ड़ी भ्रामक जानकारी ऑनलाइन जमकर सर्कुलेट हो रही है. ट्रंप ने भी एक ऐसा ही दावे वाला वीडियो रामफोसा को दिखाया है. 

फरवरी में, एक दक्षिण अफ्रीकी न्यायाधीश ने दान दिए जाने से जुड़े विरासत के मामले में फैसला सुनाते हुए नरसंहार के विचार को पूरी तरह से काल्पनिक वास्तविकता से परे बताया था.  बता दें कि दक्षिण अफ्रीका ऐसा देश है जो नस्ल के आधार पर अपराध के आंकड़े जारी नहीं करता, लेकिन नए आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर और दिसंबर 2024 के बीच देश में 6,953 लोगों की हत्या की गई थी. मारे गए 12 लोगों पर हमला खेतों में काम करने के दौरान हुआ था. इनमें एक किसान भी शामिल था और 5 खेत में रहने वाले लोग और 4 मजदूर थे. ये सभी अश्वेत थे. मतलब इनमें से कोई भी श्वेत नहीं था. 

साउथ अफ्रीका में गोरों का इतिहास जानिए

बीबीसी ने साउथ अफ्रीकन हिस्ट्री ऑनलाइन के हवाले से कहा है कि आधुनिक अफ़्रीकनेर खास तौर पर पश्चिमी यूरोपीय लोगों के वंशज हैं. ये लोग 17वीं शताब्दी के मध्य में साउथ अफ़्रीका जाकर बस गए थे. इस समुदाय में करीब 34.8% डच, 33.7% जर्मन और 13.2% फ़्रेंच हैं. इन लोगों ने मिलकर एक ऐसा सांस्कृतिक समूह बनाया, जिसने खुद को पूरी तरह से अफ्रीकी धरती से जोड़ लिया. उनकी भाषा अफ़्रीकी और डच से काफी मिलती-जुलती है. 

कहा ये भी जाता है कि अफ्रीकनेर और अन्य श्वेत समुदाय ने जैसे ही अपनी जड़ें साउथ अफ्रीका में जमाईं, इन्होंने अश्वेतों को उनकी ही धरती को छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया. अफ़्रीकनेर को बोअर की कहा जाता है, जिसका मतलब है किसान. 

दक्षिण अफ्रीका में कब हुई रंगभेद की शुरुआत?

साल  1948 में, दक्षिण अफ़्रीका की अफ़्रीकनेर के नेतृत्व वाली सरकार ने रंगभेद और अलगाव की शुरुआत की. इससे  नस्लीय अलगाव चरम स्तर पर पहुंच गया. अश्वेतों से इनकी नफरत का अंदाजा इसी बात ये लगाया जा सकता है कि साल 1950 में अफ़्रीकन नेता हेंड्रिक वर्वर्ड ने कहा था कि अश्वेतों को शिक्षित नहीं किया जाना चाहिए. उनको ये पता हो कि उनका काम सिर्फ लकड़ी काटने और पानी खींचने का है.

साल 1994 में जब अफ्रीकी राष्ट्रीय कांग्रेस और नेल्सन मंडेला सत्ता में आए, तब पहली बार अश्वेतों को राष्ट्रव्यापी चुनाव में मतदान करने का अधिकार मिला. 
 

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