SCO summit in Pakistan: भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) जल्द ही पाकिस्तान की यात्रा पर जाने वाले हैं. उनकी इस यात्रा को लेकर देश में राजनीति शुरू हो गई है. कई राजनीतिक दलों खासतौर पर कश्मीर के राजनीतिक दलों से प्रतिक्रिया आना लाज़मी है. यहां के दलों ने कश्मीर का राग और पाकिस्तान (SCO in Pakistan) से बातचीत के अपने पुराने रुख को एक बार फिर जाहिर किया है. यहां यह साफ करना जरूरी है कि भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान की यात्रा पर कश्मीर के मुद्दे पर बातचीत करने के लिए नहीं जा रहे हैं. वे पाकिस्तान में आयोजित हो रही एससीओ की बैठक के लिए जा रहे हैं. एससीओ यानी शंघाई कोपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (Shanghai cooperation organisation ) की बैठक के लिए जा रहे हैं. पाकिस्तान ने इस बैठक के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया था.
प्रधानमंत्री जाते रहे हैं सम्मेलन में
उल्लेखनीय है कि एससीओ में भारत, चीन, रूस, पाकिस्तान, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान सदस्य हैं. यह संगठन एक प्रभावशाली आर्थिक और सुरक्षा समूह है, जो सबसे बड़े अंतरक्षेत्रीय अंतरराष्ट्रीय संगठनों में से एक के तौर पर जाना जाता है. इस शिखर सम्मेलन में अमूमन भारत की ओर से प्रधानमंत्री हिस्सा लेते रहे हैं, लेकिन इस बार विदेश मंत्री एस जयशंकर जा रहे हैं.
क्यों पाकिस्तान जा रहे हैं एस जयशंकर
ऐसे में यह सवाल सभी के मन में आ रहा है कि आखिर ये एससीओ क्या है जिसकी बैठक के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान जा रहे हैं.
कश्मीर में आतंकवाद के मुद्दे को लेकर भारत पाकिस्तान से साफ कह चुका है कि वार्ता और आतंकवाद को पाकिस्तान का समर्थन साथ-साथ नहीं चल सकता है. भारत हमेशा से कश्मीर में आतंकवाद और अलगाववादी लोगों को पाकिस्तान के समर्थन के विरोध में रहा है. भारत का स्पष्ट कहना है कि पाकिस्तान से आतंकवाद को समर्थन दिया जा रहा है जिसकी वजह से यहां पर निर्दोष लोगों की हत्या हो रही है. भारत ने 2019 में कश्मीर से 370 को समाप्त कर दिया है जिसके बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है.
कब बना एससीओ
एससीओ क्या है, सबसे पहले इसे विस्तार से समझ लेते हैं. 1996 में 'संघाई 5' संगठन को बनाया गया था. इसमें सबसे पहले चीन, रूस, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान और तजाकिस्तान शामिल थे. 1991 में यूएसएसआर के विघटन के बाद से 15 आजाद देशों का जन्म हुआ. इन देशों में धार्मिक और नस्लवादी समर्थक समूहों का जोर देखने को मिला.
इसके बाद 15 जून 2001 को संघाई में एससीओ को बनाया गया.
रूस और चीन में किस बात को लेकर अनबन
पहले के पांच सदस्यों के अलावा इसमें उजबेकिस्तान को भी छठे सदस्य के रूप में शामिल किया गया. बाद में बेलारूस भी शामिल किया गया. बाद में इसके 9 सदस्य हो गए जिसमें भारत, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, तजाकिस्तान और उजबेकिस्तान का नाम भी शामिल है. इसमें अफगानिस्तान और मंगोलिया को ऑबजर्वर के रूप में शामिल किया गया है. यहां भी उल्लेख करना आवश्यक हो जाता है कि 2017 में रूस ने भारत से अपनी नजदीकी के चलते संगठन में भारत की एंट्री करवाई तो चीन ने पाकिस्तान को अपना मित्र बताते हुए संगठन का सदस्य बनाया.
भारत और पाकिस्तान हुए एससीओ में शामिल
ऐसा क्यों हुआ, इसे भी समझना चाहिए. पिछले कुछ सालों में चीन ने आर्थिक शक्ति के रूप में अपने को विश्व मंच पर स्थापित किया है. ऐसे में चीन रूस के सामने अपने को एक महाशक्ति के रूप में प्रस्तुत करने में कामयाब रहा है. चीन ने कई देशों में निवेश कर अपनी अलग पहचान भी बनाई है.
एससीओ की बढ़ने की वजह
एससीओ संगठन के बढ़ने की एक बड़ी वजह यह भी रही कि दुनिया जहां पहले बाइपोलर थी वहीं, अब कई शक्तियां महाशक्तियों के रूप में दुनिया के सामने उभरी है. खासतौर पर चीन और रूस ने अमेरिका के आर्थिक और सैन्य ताकत को चुनौती दी है.
एससीओ का महत्व
एससीओ कुछ उन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में से एक है जो एशियाई देशों के सुरक्षा मामलों में डील करता है. चीन और रूस ने पश्चिम के देशों से अलग अपने को अलग ताकतवर देश के रूप में इस संस्था के जरिए स्थापित करने की कोशिश की. यहां एक बार फिर यह जरूरी हो जाता है कि हम ब्रिक्स की बात करें. इस समूह के जरिए भारत, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजिल भी अमेरिकी असर के विपरीत अपने को विश्व मंच पर प्रस्तुत करते हैं.
भारत के लिए एससीओ का महत्व
इस संगठन के जरिए भारत के सामने एशिया के देशों से अपने संबंध मजबूत करने का मौका मिलता है. इससे भविष्य की रणनीति और भारत की जरूरतों पर खासा प्रभाव पड़ता है. भारत में वर्तमान ड्रग्स और आतंकवाद की सबसे बड़ी समस्या है. इन देशों के साथ मिलकर भारत अपनी दोनों चुनौतियों पर काबू पा सकता है. इन देशों से इंटेलिजेंस सूचना का आदान प्रदान एक रास्ता हो सकता है.
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