
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
राष्ट्रपति का चुनाव कौन जीतेगा, इस पर चीन में बहुत कुछ निर्भर है, क्योंकि वाशिंगटन की 'चीन पॉलिसी' कैंपेन का केंद्र बन गई है। रोमनी चीन के साथ रिश्तों को लेकर सख्त दिखे...
राष्ट्रपति का चुनाव कौन जीतेगा, इस पर चीन में बहुत कुछ निर्भर है, क्योंकि वाशिंगटन की 'चीन पॉलिसी' कैंपेन का केंद्र बन गई है। रोमनी चीन के साथ रिश्तों को लेकर सख्त दिखे और उसकी अंडरवैल्यूड करेंसी पर जोरदार हमला किया।
अपने बचाव में ओबामा ने कहा कि उन्हेंने भी चीन के सामान पर अतिरिक्त टैक्स लगाए हैं, यानी चीन दोनों उम्मीदवारों का 'पंचिंग बैग' है और बीजिंग में अधिकारी चीन के खिलाफ इस कैंपेन को गौर से देख रहे हैं। चीन, बराक ओबामा को दोबारा व्हाइट हाउस में देखना चाहता है, क्योंकि उन्हें डर है कि रोमनी सरकार अहंकार से भरी होगी और टकराव का खतरा ज्यादा रहेगा।
जब ओबामा 2009 में राष्ट्रपति बने, तो अमेरिकी−चीन रिश्तों को काफी बढ़ावा मिला। वह अंतराष्ट्रीय मसलों को हल करने के लिए चीन को अमेरिका का पार्टनर बनाना चाहते थे। चीन का भरोसा जीतने के लिए उसके तमाम मानवाधिकार उल्लंघनों को नजरअंदाज कर ओबामा ने चीन के सामरिक महत्व को अहमियत दी, लेकिन अब बीजिंग ओबामा से भी बहुत खुश नहीं है।
सामरिक मामलों में एशिया में चीन के बढ़ते प्रभाव को कम करने के लिए ओबामा प्रशासन ने चीन के पड़ोसियों का साथ देना शुरू किया है, जैसे वियतनाम, फिलीपींस, जापान। इन देशों के साथ समुद्री सीमा के अधिकार को लेकर चीन का टकराव है।
अमेरिका और चीन के रिश्ते बड़े उलझे हुए हैं और उसकी बारीकियों को समझना हर नए राष्ट्रपति के लिए आसान नहीं। जब ओबामा और उनके सलाहकारों को लगा कि यह नर्म रुख काम नहीं कर रहा, तो चीन की तरफ उनके तेवर कड़े हो गए। चीन के बेतहाशा इंपोर्ट पर अमेरिका के एंटी डंपिंग कानून के तहत कुछ रोक लगाई गई है, इसलिए शायद ओबामा के साथ चार साल और चीन को पसंद न हो, लेकिन ओबामा के मुकाबले रोमनी सरकार के साथ काम करना, तो उनके लिए एक भयानक सपना है।
पिछले तजुर्बे से साफ है कि वाशिंगटन में नई सरकार का मतलब है, फिर से द्विपक्षीय तनाव का दौर शुरू होना। ओबामा प्रशासन एक अपवाद था। अगर चीन को कैंपेन के दौरान मुख्य मुद्दा बनाया जाता है, तो नए राष्ट्रपति, जो अपने विरोधी पर चीन के साथ नर्म होने का आरोप लगाते हैं, उन्हें अपनी बात को सच साबित करने के लिए कुछ न कुछ हमलावर होना पड़ता है।
मिसाल के तौर पर 1993 में डेमोक्रैट बिल क्लिंटन ने चीन के साथ व्यापार के लिए दी जाने वाली सहूलियतों को बंद करने की धमकी दी। जॉर्ज बुश ने 2001 में चीन को अपना प्रतिद्वंद्वी साबित करने के लिए ताइवान को सबसे ज्यादा आधुनिक हथियार बेचे।
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव, बराक ओबामा, मिट रोमनी, चीन, US Presidential Poll, Barack Obama, Mitt Romney, China