80 से लेकर 100 तक बनाए जाएंगे नई पीढ़ी के सुपर बॉम्बर
वॉशिंगटन:
अमेरिकी एयर फोर्स नई पीढ़ी की लंबी दूरी के बॉम्बर बनाने के लिए अरबों डॉलर का ठेका किसे देने देने जा रही है, इसकी घोषणा जल्द ही कर देगी। ये बॉम्बर पुराने और मौजूदा कोल्ड वॉर मशीनों की जगह लेंगे। लॉन्ग रेंज स्ट्राइक बॉम्बर (एलआरएसबी) प्रोग्राम के तहत, अगले कुछ हफ्तों में इस कॉन्ट्रेक्ट को लेकर अपनी निर्णय देगी। यह या तो नॉर्थरोप ग्रूमेन को मिलेगा या फिर बोइंग और लॉकहीड मार्टिन की टीम को मिलेगा।
इसके प्रोग्राम के तहत, 80 से लेकर 100 तक रणनीतिक बॉम्बर बनाए जाने हैं जो अमेरिका के B-52s और B-1s के जहाजी बेड़ों की जगह लेंगे। इस बारे में लगभग सबकुछ तय किया जा चुका है और प्रत्येक विमान की लागत बचाने के लिए इसे 550 मिलियन डॉलर प्रति इकाई पर फिक्स किया गया है जोकि 2010 में डॉलर की कीमत के मुताबिक है। इंडस्ट्री के जानकार कहते हैं कि मौजूदा मशीनों से ये बॉम्बर एकदम अलग तरह के होंगे।
यह सुपरसोनिक स्पीड से नहीं उड़ेगा... लेकिन कई तरह से होगा सक्षम
ये केवल बमों (न्यूक्लियर बम या अन्य प्रकार के बम) को यहां से वहां लेकर नहीं जाएंगे बल्कि हाई ऐल्टिट्यूड पर इंटेलिजेंस गेदरिंग मशीन की तरह ही काम करेंगे। ये सेंसर्स से लैस होंगे और खास सूचनाओं के लिए सर्विलांस उपकरण के तौर पर काम करेंगे। विमानपत्तन विश्लेषक रिचर्ड अबोलफिया ने कहा कि इन्हें रडार पर पकड़ पाना मुश्किल होगा। ये इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल्स को भी ढक कर रखेगा और बाहर नहीं जाने देगा। इसमें पावरफुल जैमर्स लगे होंगे जिससे प्लेन को टारगेट कर पाना दुश्मन के लिए बेहद मुश्किल होगा।
अबोलफिया के मुताबिक, यह सुपरसोनिक स्पीड से नहीं उड़ेगा क्योंकि ऐसा होने पर इसमें काफी फ्यूल खर्च होगा और इसकी रेंज कम हो जाएगी। इसके साथ ही ऐसा करने पर इसे 'स्पॉट' कर पाना भी आसान हो सकता है।
ये न शोर करते हैं और न ही रडार पर आसानी से पकड़े जाते हैं...
अबोलफिया के मुताबिक, ये न तो बहुत ज्यादा शोर करते हैं और न ही इन्हें रडार पर आसानी से पकड़ा जा सकता है। जितना ऊपर जाना चाहो जा सकते हैं और हां, इसमें यह भी सिस्टम है कि यदि कोई आप पर हमला करता है तो यह इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम के जरिए ये उसे 'जाम' तक कर सकते हैं। वैसे अमेरिका के पास पहले से ही B-2 स्टील्थ बॉम्बर का बेड़ा है। ये भी लगभग गायब ही रहते हैं, जब रडार की पकड़ में आने की बात की जाए तो।
इसके प्रोग्राम के तहत, 80 से लेकर 100 तक रणनीतिक बॉम्बर बनाए जाने हैं जो अमेरिका के B-52s और B-1s के जहाजी बेड़ों की जगह लेंगे। इस बारे में लगभग सबकुछ तय किया जा चुका है और प्रत्येक विमान की लागत बचाने के लिए इसे 550 मिलियन डॉलर प्रति इकाई पर फिक्स किया गया है जोकि 2010 में डॉलर की कीमत के मुताबिक है। इंडस्ट्री के जानकार कहते हैं कि मौजूदा मशीनों से ये बॉम्बर एकदम अलग तरह के होंगे।
यह सुपरसोनिक स्पीड से नहीं उड़ेगा... लेकिन कई तरह से होगा सक्षम
ये केवल बमों (न्यूक्लियर बम या अन्य प्रकार के बम) को यहां से वहां लेकर नहीं जाएंगे बल्कि हाई ऐल्टिट्यूड पर इंटेलिजेंस गेदरिंग मशीन की तरह ही काम करेंगे। ये सेंसर्स से लैस होंगे और खास सूचनाओं के लिए सर्विलांस उपकरण के तौर पर काम करेंगे। विमानपत्तन विश्लेषक रिचर्ड अबोलफिया ने कहा कि इन्हें रडार पर पकड़ पाना मुश्किल होगा। ये इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल्स को भी ढक कर रखेगा और बाहर नहीं जाने देगा। इसमें पावरफुल जैमर्स लगे होंगे जिससे प्लेन को टारगेट कर पाना दुश्मन के लिए बेहद मुश्किल होगा।
अबोलफिया के मुताबिक, यह सुपरसोनिक स्पीड से नहीं उड़ेगा क्योंकि ऐसा होने पर इसमें काफी फ्यूल खर्च होगा और इसकी रेंज कम हो जाएगी। इसके साथ ही ऐसा करने पर इसे 'स्पॉट' कर पाना भी आसान हो सकता है।
ये न शोर करते हैं और न ही रडार पर आसानी से पकड़े जाते हैं...
अबोलफिया के मुताबिक, ये न तो बहुत ज्यादा शोर करते हैं और न ही इन्हें रडार पर आसानी से पकड़ा जा सकता है। जितना ऊपर जाना चाहो जा सकते हैं और हां, इसमें यह भी सिस्टम है कि यदि कोई आप पर हमला करता है तो यह इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम के जरिए ये उसे 'जाम' तक कर सकते हैं। वैसे अमेरिका के पास पहले से ही B-2 स्टील्थ बॉम्बर का बेड़ा है। ये भी लगभग गायब ही रहते हैं, जब रडार की पकड़ में आने की बात की जाए तो।
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