
- पीएम मोदी की यूके यात्रा के दौरान भारत और ब्रिटेन के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट पर साइन होने वाले हैं.
- भारत को ब्रिटेन से निर्यात पर करीब नब्बे प्रतिशत टैरिफ छूट मिलेगी, जिससे व्यापार में वृद्धि की उम्मीद है.
- ब्रिटेन ने स्कॉच व्हिस्की के लिए टैरिफ घटाकर पच्चीस प्रतिशत कर दिया है, जो विवाद का मुख्य कारण है.
भारत और ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर होने की संभावना के बीच, उद्योग जगत निराश है और समान अवसर चाहता है. भारत सरकार के कैबिनेट ने इस समझौते को अपनी सहमति दे दी है क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने ब्रिटिश समकक्ष सर कीर स्टारमर के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए ब्रिटेन जा रहे हैं. इस समझौते, जिसे औपचारिक तौर पर एक व्यापक आर्थिक और व्यापार समझौता कहा जाता है, को अब ब्रिटिश संसद की मंजूरी मिलनी है. माना जा रहा है कि इसमें कई महीने लग सकते हैं.
सबसे महत्वपूर्ण व्यापार समझौता
स्काई न्यूज के अनुसार ब्रिटेन के लिए, यूरोपियन यूनियन छोड़ने के बाद से यह सबसे बड़ा और आर्थिक तौर पर सबसे महत्वपूर्ण द्विपक्षीय व्यापार समझौता है. सरकार का कहना है कि इस समझौते से लंबी अवधि में अर्थव्यवस्था में 4.8 अरब पाउंड और वेतन में हर साल 2.2 अरब पाउंड का इजाफा होने की उम्मीद है.
ब्रिटेन, भारत में छठा सबसे बड़ा निवेशक है, जिसका कुल निवेश लगभग 36 अरब डॉलर है. देश में कम से कम 1,000 भारतीय कंपनियां काम कर रही हैं. इनमें 1,00,000 से ज्यादा लोग काम करते हैं और कुल निवेश 2 अरब डॉलर का है. ऐसे समय में जब देश अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के टैरिफ उथल-पुथल के अशांत प्रभावों से निपटने की कोशिश कर रहे हैं, यह समझौता दोनों देशों के लिए एक बड़ी आर्थिक वृद्धि के रूप में सामने आया है.
इस समझौते में क्या है
कानून बनने के बाद, इस समझौते से भारत को ब्रिटेन से होने वाले निर्यात पर 90 फीसदी टैरिफ कम हो जाएगा. इनमें व्हिस्की, कार, सौंदर्य प्रसाधन, सैल्मन, भेड़ का मांस, चिकित्सा उपकरण, इलेक्ट्रॉनिक मशीनरी, कोल्ड ड्र्रिंक, चॉकलेट और बिस्कुट शामिल हैं. भारत को अपनी 99 प्रतिशत टैरिफ लाइनों पर जीरो टैरिफ एग्रीमेंट मिलेगा, जो व्यापार मूल्य का करीब 100 प्रतिशत कवर करे. इनमें कपड़े, जूते और खाद्य उत्पाद, जिनमें फ्रोजन प्रॉन्स भी होंगे, शामिल हैं. वस्त्र और परिधान पर जीरो टैरिफ के साथ, भारतीय निर्यात को बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों के समान लाभ मिलेगा.
स्कॉच-व्हिस्की सबसे बड़ा विवाद
इस ट्रेड एग्रीमेंट में स्कॉच व्हिस्की विवाद का एक बड़ा विषय रही है. ब्रिटेन ने कड़ा मोलभाव किया है और स्कॉच की मैच्योरिटी के मसले को बरकरार रखते हुए टैरिफ को 150 फीसदी से घटाकर 75 फीसदी कर दिया है. स्कॉच के तौर पर क्लासीफाइड होने के लिए व्हिस्की को कम से कम तीन साल तक मैच्योर होने की जरूरत होती है. इस प्रक्रिया के दौरान, थोड़ी मात्रा - जिसे 'एंजेल्स शेयर' कहा जाता है, जलवायु और लकड़ी के पीपों के कारण वाष्पित हो जाती है.
टैरिफ का न होना सबसे बड़ी बाधा
इंडियन एल्कोहलिक बेवरेजेस कंपनीज कन्फेडरेशन (सीआईएबीसी) के महानिदेशक, जो भारतीय उत्पादकों का प्रतिनिधित्व करते हैं, अनंत एस अय्यर ने स्काई न्यूज को बताया, 'भारत की जलवायु उष्णकटिबंधीय है और यहां मैच्यैारिटी प्रॉसेस बहुत तेज है. स्कॉटलैंड में वाष्पीकरण की वजह से नुकसान करीब 2 फीसदी प्रति वर्ष है. जबकि भारत में यह करीब 10 से 15 फीसदी प्रति वर्ष है. यह इस बात पर निर्भर करता है कि आपकी डिस्टिलरी कहां स्थित है.' उन्होंने आगे कहा, 'तो, एक साल पुरानी मैच्योर्ड भारतीय व्हिस्की करीब तीन साल पुरानी स्कॉच व्हिस्की के बराबर हो सकती है. यह नॉन-टैरिफ हमें बहुत बड़ा झटका दे रहा है.'
भारत सबसे बड़ा बाजार
भारतीय मैन्युफैक्चरर्स तीन साल की मैच्यौरिटी अवधि में अपनी एक तिहाई मात्रा खो देते हैं जिससे यह उनके लिए अव्यावहारिक हो जाता है. अय्यर कहते हैं हालांकि मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) हमारी मिक्स्ड व्हिस्की की कॉस्ट में बचत लाता है लेकिन यह यूके में स्कॉच ब्रांड्स की भरमार के सस्ते उत्पादों के लिए दरवाजे भी खोल देगा. भारत मात्रा के हिसाब से दुनिया का सबसे बड़ा व्हिस्की बाजार है, और स्कॉच का इसमें केवल 3 फीसदी हिस्सा है. स्कॉच व्हिस्की एसोसिएशन जो 90 से ज्यादा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करता है, के अनुसार, भारत मात्रा के हिसाब से इसका सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, जहां 2024 में 192 मिलियन से अधिक बोतलों का निर्यात किया गया.
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