अमेरिकी एरिक बिट्जिग और विलियम मोर्नर तथा जर्मन वैज्ञानिक स्टीफन हेल ने ऐसे तरीके विकसित करने के लिए रसायन का नोबेल पुरस्कार जीता है, जिससे माइक्रोस्कोप से पहले से अधिक सूक्ष्म विवरण देखा जा सके।
तीनों वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार अतिसूक्ष्म चीजों को देखने के लिए बेहद शक्तिशाली 'फ्लोरेसेंस माइक्रोस्कोपी' का विकास करने के लिए दिया गया है।
द रॉयल स्वीडिश अकाडमी ऑफ साइंसेज ने कहा कि इन तीनों वैज्ञानिकों के कार्य ने परंपरागत ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी के अधिकतम रिजॉल्यूशन को पीछे छोड़ दिया। अकादमी ने कहा, उनके इस अभूतपूर्व कार्य ने ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी को अति सूक्ष्म रूप में ला दिया है।
बिट्जिग (54) वर्जिनिया के एशबर्न स्थित हॉवर्ड ह्यूजेस मेडिकल इंस्टीट्यूट में काम करते हैं। हेल (51) जर्मनी के गोइतीजेन स्थित मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर बायोफिजिकल केमिस्ट्री के निदेशक हैं। वहीं मोर्नर (61) कैलिफोर्निया स्थित स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं।
लंबे समय से ऑप्टिकल माइक्रोस्कोप अन्य चीजों के अलावा प्रकाश तरंगदैर्ध्य से सीमित था, इसलिए वैज्ञानिकों का मानना था कि वह 0.2 माइक्रोमीटर से बेहतर रिजॉल्यूशन नहीं प्रदान कर सकता। अकादमी ने कहा कि यद्यपि फ्लोरेसेंट अणुओं की मदद से ये तीनों वैज्ञानिक उस सीमा को तोड़ने में सफल रहे और ऑप्टिकल माइक्रोस्कोपी को एक नया आयाम प्रदान किया, जिससे कि कोशिकाओं के भीतर अणुओं की परस्पर क्रियाओं का अध्ययन संभव हो सका।
इन प्रत्येक नोबल विजेताओं ने इन तरीकों का इस्तेमाल करके जीवन के सबसे सूक्ष्म घटक का अध्ययन किया। अकादमी ने कहा कि हेल ने मस्तिष्क अंतर्ग्रथन की बेहतर समझ के लिए तंत्रिका कोशिकाओं का अध्ययन किया, मोर्नर ने ह्यूटिंग्टन बीमारी से संबंधित प्रोटीन का अध्ययन किया, जबकि बिट्जिग ने भ्रूण के भीतर कोशिका विभाजन पर नजर रखी।
पुरस्कार प्राप्त करने की जानकारी मिलने पर हेल ने कहा, मैं पूरी तरह से हैरान हूं। मोर्नर ने कहा, मैं अत्यंत उत्साहित और खुश हूं कि मुझे एरिक बिट्जिग और स्टीफन हेल के साथ इस पुरस्कार के लिए चुना गया है।
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