वाशिंगटन:
अमेरिका के शीर्ष अधिकारियों ने ओबामा प्रशासन के विवादास्पद खुफिया निगरानी कार्यक्रम का यह कहते हुए बचाव किया है कि इस प्रकार के प्रयासों से कई आतंकवादी हमलों को नाकाम करने और डेविड हेडली जैसे आतंकवादियों को पकड़ने में मदद मिली जो 26/11 के मुंबई हमलों का दोषी है।
नेशनल इंटेलीजेंस के निदेशक जेम्स क्लैपर ने एनएसएनबीसी को बताया, ‘‘दूसरा उदाहरण, भारत में मुंबई विस्फोटों को अंजाम देने वालों में शामिल डेविड हेडली का है। हमने इसी प्रकार की सूचना के आधार पर डेनमार्क के एक समाचारपत्र के खिलाफ साजिश को विफल किया।’’
पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी 51 वर्षीय हेडली को अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने अक्तूबर 2009 में लश्कर ए तय्यबा आतंकवादी संगठन के लिए मुंबई हमले के लक्ष्यों की टोह लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
उसने अपना हाथ होने की बात स्वीकार कर ली थी और अमेरिकी प्रशासन के साथ वह एक सौदा करने में सफल रहा जिसके तहत उसे मौत की सजा से छूट मिल गई।
क्लैपर अमेरिकियों के फोन रिकॉर्ड तथा विदेशी नागरिकों के ईमेल पर निगरानी रखने के लिए खुफिया सरकारी कार्यक्रम के खुलासे को लेकर किए गए सवालों का जवाब दे रहे थे। उनका तर्क था कि इससे वास्तव में आतंकवादी साजिशों को नाकाम करने में मदद मिली।
शीर्ष खुफिया अधिकारी ने कहा, ‘‘यह केवल उस गंभीर बहस का प्रतीक मात्र है जो देश में सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता तथा निजता के दो ध्रुवों को लेकर चल रही है। हमारे लिए इन दोनों ध्रुवों के बीच चलने की चुनौती है। यह कोई संतुलन नहीं है। लेकिन यह संतुलन करना पड़ेगा ताकि हम देश की रक्षा कर सकें और नागरिक स्वतंत्रता तथा निजता की भी रक्षा कर सकें।’’
नेशनल इंटेलीजेंस के निदेशक जेम्स क्लैपर ने एनएसएनबीसी को बताया, ‘‘दूसरा उदाहरण, भारत में मुंबई विस्फोटों को अंजाम देने वालों में शामिल डेविड हेडली का है। हमने इसी प्रकार की सूचना के आधार पर डेनमार्क के एक समाचारपत्र के खिलाफ साजिश को विफल किया।’’
पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी 51 वर्षीय हेडली को अमेरिकी सुरक्षा एजेंसियों ने अक्तूबर 2009 में लश्कर ए तय्यबा आतंकवादी संगठन के लिए मुंबई हमले के लक्ष्यों की टोह लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था।
उसने अपना हाथ होने की बात स्वीकार कर ली थी और अमेरिकी प्रशासन के साथ वह एक सौदा करने में सफल रहा जिसके तहत उसे मौत की सजा से छूट मिल गई।
क्लैपर अमेरिकियों के फोन रिकॉर्ड तथा विदेशी नागरिकों के ईमेल पर निगरानी रखने के लिए खुफिया सरकारी कार्यक्रम के खुलासे को लेकर किए गए सवालों का जवाब दे रहे थे। उनका तर्क था कि इससे वास्तव में आतंकवादी साजिशों को नाकाम करने में मदद मिली।
शीर्ष खुफिया अधिकारी ने कहा, ‘‘यह केवल उस गंभीर बहस का प्रतीक मात्र है जो देश में सुरक्षा और नागरिक स्वतंत्रता तथा निजता के दो ध्रुवों को लेकर चल रही है। हमारे लिए इन दोनों ध्रुवों के बीच चलने की चुनौती है। यह कोई संतुलन नहीं है। लेकिन यह संतुलन करना पड़ेगा ताकि हम देश की रक्षा कर सकें और नागरिक स्वतंत्रता तथा निजता की भी रक्षा कर सकें।’’
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