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This Article is From Aug 14, 2015

'रॉ की बात सुनी होती तो बच जाती बांग्लादेश के संस्थापक की जान'

'रॉ की बात सुनी होती तो बच जाती बांग्लादेश के संस्थापक की जान'
शेख मुजीबुर रहमान की फाइल फोटो
ढाका: बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की हत्या की 40वीं बरसी के एक दिन पहले मीडिया में नई रिपोर्ट्स प्रकाशित हुई हैं, जिनमें कहा गया है कि खूनी तख्तापलट की साजिश के संबंध में भारत द्वारा दो बार आगाह किए जाने के बाद भी उन्होंने अनदेखी की थी और कहा था कि साजिशकर्ता उनके 'अपने बच्चे' हैं, जो उन्हें नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।

दि डेली स्टार में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 15 अगस्त 1975 को बंगबंधु और उनके परिवार के अधिकतर सदस्यों की हत्या के सात महीने पहले रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के एक पूर्व प्रमुख अधिकारी ने उनसे मुलाकात की थी और उन्हें साजिशों को लेकर आगाह किया था।

भारत की बाह्य खुफिया एजेंसी रॉ के संस्थापक रामेश्वर नाथ काव ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की इजाजत से उनसे दिसंबर 1974 में मुलाकात की थी। तब बंगबंधु ने भारतीय अधिकारी से कहा था, 'ये सब मेरे अपने बच्चे हैं और वे मुझे नुकसान नहीं पहुंचाएंगे।'

अशोक रैना की किताब 'इन्साइड रॉ' का जिक्र करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि रहमान ने हाथ हिलाकर चिंताओं को खारिज कर दिया था। काव ने उनसे कोई बहस नहीं की लेकिन कहा कि भारतीय सूचना विश्वसनीय है और वह उन्हें साजिश के बारे में और ब्यौरा भेजेंगे।

उन्होंने बाद में रॉ के एक वरिष्ठ अधिकारी को मार्च 1975 में ढाका भेजा। उस अधिकारी ने रहमान को उन इकाइयों और मौजूदा तथा बर्खास्त कर दिए गए अधिकारियों की वास्तविक जानकारी दी जो उनकी सरकार के तख्तापलट की साजिश रचने में शामिल थे। इसमें कहा गया है, 'लेकिन एक बार फिर, बंगबंधु मानने को तैयार नहीं हुए।'

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