पाकिस्तान की सियासत में तेजी से बदलाव हो रहे हैं. तोशखाना केस (Toshkhana Case) में पूर्व पीएम इमरान खान (Imran Khan) को तीन साल की सजा हुई और पांच साल तक चुनाव लड़ने पर बैन लगा. नवाज शरीफ पर चुनाव लड़ने का बैन हटाने के लिए संविधान में बड़ा बदलाव किया गया. अब मौजूदा प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Shehbaz Sharif) ने तय समय से पहले नेशनल असेंबली (पाकिस्तानी संसद) को भंग करने का ऐलान किया है. शरबाज शरीफ ने मंगलवार को कहा- बुधवार को मैं नेशनल असेंबली (National Assembly) भंग करने की सिफारिश और इसकी डिटेल राष्ट्रपति आरिफ अल्वी के पास भेज दूंगा." पाकिस्तानी संसद का कार्यकाल 12 अगस्त को खत्म हो रहा है. इसके 3 दिन पहले पीएम शहबाज शरीफ ने संसद को भंग करने की बात की है.
आइए समझते हैं कि पीएम शहबाज शरीफ ने क्या सियासी दांव चला है? इससे उनकी पार्टी को क्या फायदा होगा? एक सवाल ये भी है कि नेशनल असेंबली भंग होने की स्थिति में सरकार आखिर सत्ता का ट्रांसफर किसे करेगी?
सबसे पहले जानें शहबाज शरीफ कब बने पीएम?
पिछले साल अप्रैल महीने में प्रधानमंत्री पद से इमरान खान की रुखस्ती के बाद 342 सदस्यीय नेशनल असेंबली में विपक्ष को 174 सदस्यों का समर्थन मिला था. संयुक्त विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ पाकिस्तान के नए प्रधानमंत्री बनाए गए थे. लेकिन पाकिस्तान मुस्लिम लीग-एन (पीएमएल-एन) पार्टी के नेता शहबाज शरीफ के साथ कई और पार्टियां भी थी, जिन्होंने इमरान को सत्ता से बेदखल करने के लिए मोर्चा खोला था. इस संयुक्त गठबंधन में पीएमएल-एन के साथ पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी), मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट पाकिस्तान (एमक्यूएम-पाकिस्तान), जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ), पीएमएल-क्यू और कई छोटी-मोटी पार्टियां शामिल हैं.
नेशनल असेंबली जल्द भंग करने की वजह क्या है?
शहबाज शरीफ सरकार का मौजूदा कार्यकाल इस साल 12 अगस्त को खत्म हो रहा है. लेकिन इससे ठीक तीन दिन पहले 9 अगस्त को नेशनल असेंबली भंग करने का ऐलान किया गया है. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है टाइम लैग. पाकिस्तान के संविधान के तहत अगर नेशनल असेंबली अपना कार्यकाल पूरा कर लेती है, तो 60 दिनों के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य है.... लेकिन अगर नेशनल असेंबली को समय से पहले भंग कर दिया जाता है तो सरकार को चुनाव कराने के लिए पूरे 90 दिन का समय मिल जाएगा. इसका साफ मतलब है कि सरकार को अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए ज्यादा समय मिलेगा. वह मौजूदा आर्थिक संकट से जूझते हुए 90 दिनों तक कुछ बेहतर स्थिति तक पहुंच सकती है.
90 दिन मिलने पर और क्या फायदा है?
ऐसा करने से शहबाज सरकार को एक और फायदा है. 90 दिनों के भीतर पाकिस्तान सरकार को इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड (IMF) से बेलआउट पैकेज की रकम भी मिलनी शुरू हो जाएगी. एक तरह से शहबाज सरकार जनता के बीच अपनी इमेज बेहतर करने में कुछ हद तक कामयाब भी हो जाएगी.
पाकिस्तान में नेशनल असेंबली भंग करने का प्रोसेस क्या है?
पाकिस्तान के संविधान के आर्टिकल 52 के तहत सरकार के पांच साल पूरे होने पर नेशनल असेंबली को भंग करना होता है. इसे साधारण भाषा में चुनाव प्रक्रिया की शुरुआत मान सकते हैं. वहीं, आर्टिकल 58 के अनुसार, अगर राष्ट्रपति पीएम की सिफारिश पर 48 घंटों के भीतर असेंबली भंग नहीं करते, तो इसे अपने आप भंग मान लिया जाता है. भंग होने के बाद नेशनल असेंबली सचिवालय नोटिफिकेशन जारी करता है. इसके बाद मौजूदा सरकार की विदाई हो जाती है और एक केयरटेकर सरकार को सत्ता ट्रांसफर की जाती है.
केयरटेकर सरकार क्या करती है?
केयरटेकर सरकार का एक प्राथमिक काम देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए अनुकूल माहौल बनाना है. केयरटेकर सरकार पर जिम्मेदारी होती है कि नियमित काम होते रहें. ये सरकार सुनिश्चित करती है कि संसद के विघटन और नई सरकार के शपथ ग्रहण के बीच के समय में पाकिस्तान में गतिरोध न हो.
केयरटेकर सरकार के पीएम का चुनाव कैसे होता है?
केयरटेकर सरकार के लिए प्रधानमंत्री और नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता आम सहमति से केयरटेकर प्रधानमंत्री के नाम की सिफारिश करते हैं. राष्ट्रपति इस सिफारिश पर उनकी नियुक्ति करते हैं. इसके प्रधानमंत्री का नाम एक या दो दिन में सामने आ जाएगा. अगर पीएम और विपक्ष के नेता के बीच आम सहमति नहीं बन पाती. नेशनल असेंबली भंग होने के 3 दिनों के भीतर नाम नहीं सुझा पाते तो दोनों की तरफ से 2-2 नाम कमेटी को भेजे जाते हैं. ये कमेटी बनने के 3 दिनों के भीतर कार्यवाहक पीएम का नाम फाइनल करती है.
केयरटेकर पीएम के लिए चर्चा में इन नेताओं का नाम
पाकिस्तान के 'जियो टीवी' की रिपोर्ट के मुताबिक, केयरटेकर पीएम के पद के लिए निवर्तमान वित्त मंत्री इशाक डार का नाम चर्चा में सबसे ऊपर है. वहीं, आंतरिक मंत्री राणा सनाउल्लाह ने खुलासा किया कि पूर्व वित्त मंत्री हाफ़िज़ शेख केयरटेकर पीएम के उम्मीदवारों में शामिल हैं. केयरटेकर पीएम की रेस में पीएमएल-एन शाहिद खाकन अब्बासी और पंजाब के पूर्व गवर्नर मखदूम अहमद महमूद का नाम भी चर्चा में है. जबकि इस पद के लिए पूर्व विदेश सचिव और वॉशिंगटन में पाकिस्तान के दूत जलील अब्बास जिलानी के नाम की भी अटकलें लगाई जा रही हैं.
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