
- कतर में हुए अरब और इस्लामी देशों के सम्मेलन में इजरायल के खिलाफ तीखी आवाज उठी लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई
- सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने सम्मेलन में मौजूद रहते हुए भी इजरायल के खिलाफ कोई भाषण नहीं दिया
- सऊदी ने दशकों से फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन किया है लेकिन इजरायल के साथ रिश्ते भी बनाए रखने की नीति अपनाई है
इजरायल ने कतर की राजधानी में हमास नेताओं को निशाना बनाते हुए जब हमला किया तब एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया. सवाल यह था कि क्या इजरायल मिडिल ईस्ट में अमेरिका के सहयोगी देशों को भी नहीं छोड़ेगा, क्या उसके मिसाइल के निशाने पर आसपास के हर मुस्लिम देश हैं? इस सवाल के जवाब से पहले इस हमले पर एकजुट आवाज उठाने की उम्मीद में कतर ने सोमवार, 15 सितंबर को अरब और इस्लामी देशों के एक शिखर सम्मेलन की मेजबानी की. यहां इजरायल के खिलाफ आवाज तो उठी लेकिन वो आवाज किसी कार्रवाई में बदलती नहीं दिखी. यहां तीखे शब्द तो थे लेकिन आर्थिक प्रतिबंध और राजनयिक संबंधों में कटौती का संकेत नहीं दिखा. हालांकि इस बीच सम्मेलन में एक ऐसी शख्सियत भी मौजूद थी जिसकी चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं, उसमें मैसेज खोजा जा रहा है. बात हो रही है सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) की.
सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) सम्मेलन में मौजूद रहे, लेकिन उन्होंने कोई यहां कोई भाषण नहीं दिया. इस चुप्पी ने कइयों को चौंका दिया, खासकर ऐसे समय में जब मुस्लिम दुनिया उनसे नेतृत्व की उम्मीद कर रही थी.
MBS की चुप्पी का मतलब क्या है?
MBS की चुप्पी को समझने के लिए हमें सऊदी अरब और इजरायल के बीच के संबंध को समझना पड़ेगा. इस्लाम के सबसे पवित्र स्थलों का घर, सऊदी अरब ने हमेशा खुद को फिलिस्तीनी मुद्दे के चैंपियन के रूप में प्रस्तुत किया है. लेकिन साथ ही उसने दशकों से इज़राइल के साथ भविष्य के संबंधों के लिए दरवाजा खुला रखा है.
2000 में, इसने अन्य अरब देशों को अरब शांति पहल पर सहमत होने के लिए मनाने का काम किया था. अरब शांति पहल में आजाद फिलिस्तीनी देश का निर्माण होता जिसकी राजधानी यरूशलेम होती. साथ ही फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी होती. इन सबके बदले इजरायल के साथ हर अरब देश अपने रिश्ते को नॉमलाइज करते यानी राजनयिक रिश्तों को बहाल करते.
हाल के सालों में ऐसा लगा कि सऊदी अरब भी संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन की तरह ही इजरायल के साथ राजनयिक रिश्तों को बहाल करने के लिए एक समझौते पर आगे बढ़ रहा है. लेकिन गाजा में युद्ध और अब खाड़ी सहयोगी कतर पर इजरायली हमलों ने उस संभावना को पहले से कहीं अधिक धूमिल कर दिया है.
सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस के रूप में MBS का सपना बड़ा साहसी है- वह मिडिल ईस्ट में शांति और समृद्धि लाने के लिए ईरान, इजरायल और अमेरिका सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं. टाइम की रिपोर्ट के अनुसार अभी जब हाल में इजरायल, अमेरिका और ईरान के बीच 12 दिनों का युद्ध हुआ तो सऊदी को खरोंच तक नहीं आई और इजरायल- अमेरिका के अलावा MBS एक स्पष्ट विजेता बनकर उभरे.
क्राउन प्रिंस ने इन तीन देशों की लड़ाई के बीच सार्वजनिक रूप से इजरायल के हमलों की निंदा की और चुपचाप राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से युद्ध से बाहर रहने का आग्रह किया. हालांकि उन्हें स्पष्ट रूप से पता था कि ईरान की परमाणु और क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाएं उनके देश के लिए खतरा है. रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने एक कुशल रक्षात्मक खेल खेला और एक बिना रिस्क लिए एक विजेता के रूप में सामने आए.
MBS को अमेरिका और इजरायल की भी जरूरत है
मिडिल ईस्ट में शांति की चाह सऊदी अरब से ज्यादा किसी और देश को नहीं है. क्राउन प्रिंस ने अपने देश की तेल व्यापार पर निर्भरता को खत्म करने के उद्देश्य से अपनी कई मेगा परियोजनाओं में खरबों डॉलर का निवेश किया है. उन निवेशों को ईरान या उसके प्रॉक्सी से बचाना भी उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता है. फिर भी उनमें से कई परियोजनाएं वित्तीय संकट में हैं क्योंकि क्षेत्र में इतनी उथल-पुथल की उनके लिए आवश्यक विदेशी निवेश को लाना मुश्किल हो गया है.
पश्चिमी सऊदी अरब में वह एक नई उच्च तकनीक वाली सिलिकॉन वैली बनाना चाहते हैं. लेकिन उस सपने को हासिल करने के लिए, क्राउन प्रिंस को पश्चिमी निवेश और विशेषज्ञता की आवश्यकता है. साथ ही उन्हें आदर्श रूप से, इजरायल की उच्च तकनीक क्षमताओं के साथ सहयोग की आवश्यकता है. इसलिए इजरायल के खिलाफ आवाज उठाने की उनकी एक सीमा है. एक हद से आगे जाकर इजरायल के खिलाफ आक्रामक होना उनके हित में नहीं है.
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