विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 17वीं सदी की महारानी केतेवन के अवशेष जॉर्जिया को सौंपे

विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर (Dr. S Jaishankar) ने 17वीं सदी की जॉर्जिया की महारानी संत केतेवन (St. Queen Ketevan) के अवशेष शुक्रवार को जॉर्जिया की सरकार को सौंप दिए.

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 17वीं सदी की महारानी केतेवन के अवशेष जॉर्जिया को सौंपे

विदेश मंत्री एस. जयशंकर जॉर्जिया के दो दिवसीय दौरे पर हैं.

खास बातें

  • 17वीं सदी की महारानी थीं संत केतेवन
  • एस जयशंकर ने सौंपे महारानी के अवशेष
  • विदेश मंत्री ने ट्वीट कर दी यह जानकारी
तिब्लिसी:

जॉर्जिया (Georgia) की पुरानी मांग पूरी करते हुए विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर (Dr. S Jaishankar) ने 17वीं सदी की जॉर्जिया की महारानी संत केतेवन (St. Queen Ketevan) के अवशेष शुक्रवार को जॉर्जिया की सरकार को सौंप दिए. उनके अवशेष करीब 16 साल पहले गोवा में मिले थे. जयशंकर दो दिन की जॉर्जिया की यात्रा पर हैं. जॉर्जिया पूर्वी यूरोप और पश्चिम एशिया के बीच स्थित रणनीतिक रूप से एक महत्वपूर्ण देश है.

विदेश मंत्री ने ट्वीट किया, ‘‘विदेश मंत्री डेविड ज़लकालियनी ने तिबलिसी में पूरी गरमजोशी से स्वागत किया. सेंट महारानी केतेवन के पवित्र अवशेष जॉर्जिया के लोगों को सौंप कर अच्छा लग रहा है. भावुक पल था...'' संत केतेवन 17वीं सदी में जॉर्जिया की महारानी थीं. उनके अवशेष 2005 में पुराने गोवा के संत ऑगस्टिन कांवेंट में मिले थे. ऐसा माना जाता है कि ये अवशेष 1627 में गोवा लाए गए थे.

वहीं दूसरी ओर एस जयशंकर ने शुक्रवार को अपने रूसी समकक्ष सर्गेई लावरोव के साथ “उपयोगी” बातचीत की और दोनों मित्र राष्ट्रों के बीच अंतरिक्ष, परमाणु, उर्जा और रक्षा सहयोग के क्षेत्र में प्रगति की समीक्षा की. दोनों नेताओं ने अफगानिस्तान, ईरान और सीरिया जैसे वैश्विक व क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा की.

तीन दिवसीय दौरे पर यहां पहुंचे जयशंकर ने कहा कि इस तथ्य के बावजूद की कोविड-19 महामारी के पहले और परिणामस्वरूप दुनिया में बहुत सी चीजें बदल रही हैं लेकिन रूस के साथ भारत का रिश्ता स्थिर बना हुआ है और वैश्विक शांति, सुरक्षा और स्थायित्व में उसने योगदान दिया है.

उन्होंने लावरोव के साथ एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में कहा, “मेरा मानना है कि बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था में हमारा विश्वास एक साथ हमारे काम करने को इतना स्वाभाविक व सुगम बनाता है. हम 21वीं सदी में इसे अंतर-राष्ट्रीय संबंधों के विकास की एक बेहद स्वाभाविक व अपरिहार्य प्रक्रिया का प्रतिबिंब मानते हैं.”

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(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)