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सोवियत संघ ने अमेरिका को घेरने के लिए कैसे क्यूबा में फिट किए थे हथियार, पढ़ें पीछे की पूरी कहानी

यूक्रेन की वजह से ऐसा लगता है कि एक बार फिर अमेरिका और रूस एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए हैं. इतिहास में ये दूसरा मौका है जब ऐसा हुआ है. इससे पहले 1962 में क्यूबा में एक ऐसा ही वाक्या सामने आया था.

सोवियत संघ ने अमेरिका को घेरने के लिए कैसे क्यूबा में फिट किए थे हथियार, पढ़ें पीछे की पूरी कहानी
रूस और अमेरिका के बीच यूक्रेन को लेकर जारी है खींचतान
नई दिल्ली:

रूस और यूक्रेन के बीच करीब तीन साल से युद्ध हो रहा है. इन दोनों देशों के बीच स्थिति इस कदर खराब हो चुकी है कि अब परमाणु हथियारों के इस्तेमाल का खतरा भी मंडराने भी लगा है. इन सब के बीच खबर आई की अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूक्रेन को अमेरिकी हथियारों से रूस के भीतर हमला करने की अनुमति दे दी है. इसके जवाब में अब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी अपनी परमाणु नीति में बदलाव किया है. 

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राष्ट्रपति पुतिन ने बदली परमाणु हथियारों के इस्तेमाल की नीति

राष्ट्रपति पुतिन ने मंगलवार यूक्रेन और पश्चिमी देशों को खुली चुनौती दी है. इस दौरान रूसी राष्ट्रपति ने एक डिक्री को भी साइ किया है. जिसमें बताया गया है कि रूस किन हालात में परमाणु हथियारों को इस्तेमाल कर सकता है. उन्होंने कहा कि अगर कोई देश जिसके पास परमाणु शक्ति नहीं है, अगर वो किसी न्यूक्लियर पावर वाले देश की मदद से रूस पर हमला करता है तो इसे रूस के खिलाफ जंग के तौर पर देखा जाएगा. पुति ने आगे कहा कि अगर रूस के खिलाफ बैलिस्टिक मिसाइल का इस्तेमाल हुआ तो जवाब में परमाणु हमला भी किया जा सकता है. पुतिन ने यह बदलाव अपने देश के न्यूक्लियर डॉक्ट्रीन में किया है. आपको बता दें कि  ये करने का मकसद सिर्फ इतना है कि यूक्रेन का समर्थन करने वाले देश उसपर हमला ना करें. 

यूक्रेन की वजह से ऐसा लगता है कि एक बार फिर अमेरिका और रूस एक दूसरे के आमने-सामने खड़े हो गए हैं. इतिहास में ये दूसरा मौका है जब ऐसा हुआ है. इससे पहले 1962 में क्यूबा में एक ऐसा ही वाक्या सामने आया था, जब दुनिया को लग रहा था कि दोनों ही देश आमने-सामने आ गए थे. चलिए हम आपको वो किस्सा भी विस्तार से बताते हैं...

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आखिर 1962 में हुआ क्या था

बात अक्टूबर 1962 की है. दुनिया उन दिनों परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ी थी. एक अमेरिकी जाससू विमान ने 14 अक्टूबर को पता लगा लिया था कि सोवियत संघ (जो अब रूस है) ने परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी है. आपको बता दें कि जिस जगह पर ये परमाणु मिसाइलें तैनात की गई थीं, वहां से फ्लोरिडा तट से महज कुछ सौ किलोमीटर ही दूर था. 

अमेरिका की नाक के नीचे सोवियत संघ ने परमाणु मिसाइलों का जखीरा जुटा लिया था औऱ यहां से अमेरिका के बड़े हिस्से पर हमला किया जा सकता था. इतिहास में इस घटना को शीत युद्ध के सबसे नाजुक लम्हों में से एक 'क्यूबा मिसाइल संकट'के रूप में याद किया जाता है. अमेरिकी इंटेलिजेंस एजेंसी ने राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी को कुछ तस्वीरों के साथ क्यूबा में मिसाइल तैना होने की जानकारी दी थी. कैनेडी को बताया जाता है कि हमारे पड़ोस में परमाणु मिसाइलें तैनात की गई हैं. कभी भी क्यूबा, रूस के साथ मिलकर अमेरिका पर परमाणु हमला कर सकता है. हालात, ऐसे हो चुके थे कि अमेरिका और क्यूबा आमने-सामने आ गए थे. 

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14 अक्टूबर को अमेरिकी जासूसी विमानों ने क्यूबा से लगने वाली सीमा से लगे इलाके में उड़ान भी और फिर वहां से कई तस्वीरें इकट्ठा कर ये पता लगाने की कोशिश कि की आखिर जिस तरह के इनपटु मिले हैं, वो कितने सही हैं. इस दौरान विमान ने 900 से ज्यादा तस्वीरें खींची गई जिससे ये साफ हो गया है कि क्यूबा में एक दो नहीं बल्कि परमाणु मिसाइलों का जखीरा मौजूद है. जासूसी एजेंसी को मिले इस इनपुट ने अमेरिकी सरकार की नींद उड़ा दी थी. यह शीत युद्ध का वह दौर था जब हालात बेहद नाजुक हो चुके थे. 

16 अक्टूबर को 1962 को सुबह कैनेडी को इसकी जानकारी दी गई थी. राष्ट्रपति कैनेडी के सामने सूबत के तौर पर कई तस्वीरें भी पेश की गई थी. इसके बाद कुछ दिनों तक अमेरिका और क्यूबा के बीच आपसी तनातनी रही थी. इसके बाद 26 अक्टूबर को राष्ट्रपति कैनेडी ने देशवासियों को संबोधित किया था. उस दौरान उन्होंने कहा था कि लग रहा है कि अगले कुछ दिनों में युद्ध शुरू हो सकता है. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद एक बार फिर परमाणु युद्ध जैसे हालात की बात सुनकर अमेरिका ही नहीं पूरी दुनिया हैरान थी. 

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क्यूबा को चारों तरफ से घेर लिया गया था

जॉन एफ कैनेडी को ये बात खास तौर पर परेशान कर रही थी कि रूस ने उसके नाक के नीचे क्यूबा में इतने परमाणु हथियार तैनात कर दिया है. कैनेडी ने बीते दिनों जो भाषण दिया था उसमें रूस के प्रति उनका गुस्सा साफ तौर पर दिख रहा था. उन्होंने उस दौरान कहा था कि अमेरिका ये कभी बर्दाश्त नहीं करेगा कि रूस उसके बगल में इतने परमाणु हथियार लगा दे. उन्होंने इस लड़ाई को अंजाम तक पहुंचाने की बात कही थी. इसके बाद ही क्यूबा पर हमले की तैयारी तेज हो गई थी. अमेरिकी राष्ट्रपति ने क्यूबा को हर तरफ से घेरने का आदेश दे दिया था.  

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क्यूबा ने भी पटलवार की तैयारी की थी

अमेरिकी राष्ट्रपति के ऐलान के बाद क्यूबा ने भी अमेरिका पर पलटवार करने की तैयारी शुरू कर दी थी. कहा जाता है कि उस दौरान क्यूबा के पास तमाम तरह के अत्याधुनिक हथियारों का जखीरा मौजूद था. रूस उसके साथ था और उसे इसकी जानकारी थी. क्यूबा पर होने वाले हवाई हमलों का जवाब देने के लिए रूसी रडार और मिसाइल तैनात की गई थीं. रूसी सैनिक भी क्यूबा पहुंच गए थे, लेकिन क्यूबा की नौसेना ने ज्यादा तैयारी नहीं की थी. रूस ने उस दौरान 4 परमाणु सबमरीन की भी तैनाती की थी. 

एक महिला ने बचा टाल दिया था युद्ध

आज हम 21वीं सदी में बैठकर भले ये आम सी बात लगे लेकिन  अगर 1960 के दशक में किसी को परमाणु हमले की असलियत का कोई अहसास तक नहीं था. उस समय तक दुनिया सिर्फ एक ही परमाणु हमला देखा था. लोगों को लगता था कि अगर परमाणु हमला हुआ तो इसके असर से ज्यादा से ज्यादा एक शहर ही तो बर्बाद होगा. लेकिन उस समय तक अमेरिका ने इतने परमाणु बम या यूं कहें कि ऐसे हथियार बना लिए थे जिससे दुनिया में जीवन ही खत्म हो सकता था. अब ऐसे में हालात में अगर चीन और रूस के परमाणु हथियारों को मिला दिया जाए तो कैसे हालात बनेंगे उसकी आप और हम अब कल्पना कर सकते हैं. उस दौरान परमाणु हथियार से जुड़ी जानकारी एक टॉप सीक्रेट होता था. यही वजह थी कि उस दौरान आम जनता से ये बात छिपा कर रखी जाती थी. 

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हालांकि, उस दौर में भी एक इंसान था जो चाहता था कि सच निकलकर सामने आए. वो चाहता था कि जनता को हर बात का पता रहे. और इस शख्स का नाम था डेनियल एल्सबर्ग. डेनियल पेंटागन में बहुत ऊपर की पोस्ट पर थे. उनके पास हाई प्रोफाइल टॉप सीक्रेट दस्तावेजों को देखने का एक्सिस था. कहा जाता है कि डेनियल एल्सबर्ग ने ही पेंटागन पेपर्स लीक किया था. अगर आपको ना पता हो तो हम बता दें कि पेंटागन पेपर्स में अमेरिका के वियतनाम में किए गए गुनाहों का कच्चा-चिट्ठा था. डेनियल वियतनाम युद्ध के खिलाफ थे. इस महिला का नाम जूआनिटा मूडी था. 

यह महिला अमेरिकी खुफिया एजेंसी में एक क्रिप्टोग्राफर के तौर पर काम करती थीं. मतलब इन्क्रिप्टेड कोड्स या संदेशों को पढ़ने का काम था. इसी दौरान अमेरिकी इंटेलिजेंस को इनपुट मिला था कि क्यूबा किसी भी वक्त जल्द ही अमेरिका पर परमाणु मिसाइलें दाग सकता है. इसके जवाब में अमेरिका ने भी मिसाइलें दागने की तैयारी शुरू कर ली थी. लेकिन इससे पहले कि अमेरिका मिसाइल दागना शुरू करता जूआनिटा मूडी की नजर कैरेबियन सागर में रूसी जहाजों के मूवमेंट पर गई. उन्होंने अपने स्क्रीन में देखा कि रूसी जहाजों ने अपना रास्ता बदल लिया है. उन्होंने देखा कि वो जहाज अब रूस की तरफ जा रहे हैं. जूआनिटा को लगा कि यह सोवियत सेना का एक संकेत है और रूस, अमेरिका से टकराना नहीं चाहता. इसके बाद जूआनिटा ने रूसी जहाजों के जाने की जानकारी सबसे पहले संयुक्त राष्ट्र में अमेरिका के राजदूत एडलाई स्टीवेंसन को दी. क्योंकि वो किसी भी वक्त यूनाइटेड नेशन में जंग को लेकर बड़ी घोषणा करने वाले थे. और इस तरह से अमेरिका और रूस के बीच होने वाला एक बड़ा युद्ध टल गया था.

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