"हम हमेशा भारत की सक्सेस के फेवर में": अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की कामयाबी की रूस ने की सराहना

चंद्रयान-3 की सफलता से लेकर महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन तक, रूस ने भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देना और अंतरिक्ष यान विकास में सहायता करना शामिल है.

रूस के मिशन के डिप्टी चीफ रोमन बाबुश्किन ने अंतरिक्ष अन्वेषण में भारत की खास उपलब्धियों की सराहना की. साथ ही भारत के अंतरिक्ष प्रयासों के लिए रूस के अटूट समर्थन का भी जिक्र किया. साल 1984 में सोवियत अंतरिक्ष यान सोयुज टी-11 पर सवार पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा की अंतरिक्ष उड़ान की 40वीं वर्षगांठ पर, बाबुश्किन ने अंतरिक्ष क्षेत्र में रूस और भारत के बीच की साझेदारी पर जोर दिया. बाबुश्किन ने कहा, "रूस हमेशा भारतीय सफलता का पक्षधर रहा है."

इस दौरान  विशेष रूप से, उन्होंने राकेश शर्मा की उपलब्धि का जश्न मनाया, जिन्होंने भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री के रूप में इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया. उन्होंने भारत के स्वतंत्र अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम की सराहना की, जिससे न केवल देश को लाभ होता है बल्कि उपग्रह प्रक्षेपण में अन्य देशों को भी सहायता मिलती है.  दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की 77वीं वर्षगांठ से पहले बोलते हुए, बाबुश्किन ने भारत के अंतरिक्ष प्रयासों के लिए रूस के अटूट समर्थन पर प्रकाश डाला.

चंद्रयान-3 की सफलता से लेकर महत्वाकांक्षी गगनयान मिशन तक, रूस ने भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसमें अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षण देना और अंतरिक्ष यान विकास में सहायता करना शामिल है. इस अवसर पर यहां रूसी दूतावास में सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने यह भी कहा, "अंतरिक्ष क्षेत्र हमारी विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी का एक प्रमाण है."

उन्होंने कहा, "रूस हमेशा भारतीय सफलता का पक्षधर रहा है, हमारी भागीदारी 1975 से चली आ रही है, जब सोवियत संघ ने भारत के पहले सेटेलाइट आर्यभट्ट को लॉन्च करने में मदद की थी, दूसरा उपग्रह, भास्कर, सोवियत संघ द्वारा 1979 में लॉन्च किया गया था. " सफल चंद्रयान-3 परियोजना एक बड़ा मील का पत्थर है." भारत-रूस अंतरिक्ष सहयोग पर आगे बोलते हुए, बाबुश्किन ने इसरो और रोस्कोस्मोस सहयोग को रेखांकित किया.

सोवियत रॉकेट सोयुज टी-11 में सवार होकर राकेश शर्मा अंतरिक्ष में पहुंचने वाले पहले भारतीय नागरिक बन थे. उन्होंने अंतरिक्ष में 7 दिन, 21 घंटे और 40 मिनट बिताए. राकेश शर्मा का काम मुख्य रूप से बायोमेडिसिन और रिमोट सेंसिंग के क्षेत्र में था. शर्मा ने रिमोट सेंसिंग और बायोमेडिसिन सहित कई वैज्ञानिक अध्ययन और प्रयोग किए. जब भारत की तत्कालीन प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने शर्मा से पूछा कि बाह्य अंतरिक्ष से भारत कैसा दिखता है, तो शर्मा ने कहा, "सारे जहां से अच्छा.

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