ढाका:
ईद-उल-अजहा के मौके पर बड़े पैमाने पर पशुओं की कुर्बानी के साथ हुई भारी बारिश के चलते बांग्लादेश की राजधानी ढाका की सड़कें खून से लाल हो गईं.
ढाका शहर के निकायों ने कुछ ऐसे स्थान तय किए थे, जिनमें पशुओं की बलि दी जा सकती थी, लेकिन भारी बारिश के चलते कुछ ही लोग उन स्थानों का उपयोग कर सके. मुस्लिम समुदाय के लोग पारंपरिक तरीके से किसी ज़िन्दा पशु की बलि देकर ईद-उल-अजहा या बकरीद का त्योहार मनाते हैं.
अल्लाह की राह में कुर्बानी को याद दिलाने के लिए सामान्य तौर पर बकरे, भेड़ या गाय की कुर्बानी दी जाती है. जिस पशु की कुर्बानी दी जाती है, उसके मांस को परिवार, मित्रों और ऐसे गरीब परिवारों, जो कुर्बानी देने के लिए जानवर का इंतज़ाम नहीं कर सकते, के बीच सामाजिक सौहार्द बढ़ाने के लिए साझा किया जाता है.
ढाका के लोगों ने पशुओं की कुर्बानी देने के लिए पार्किंग स्थलों, गैरेजों और संकरी गलियों का उपयोग किया. उन जानवरों का खून इन स्थानों से बहकर उफनती नालियों के ज़रिये सड़कों पर आ गया, जिससे सड़कें भी खून से सराबोर नजर आईं. एक करोड़ की आबादी वाले शहर में जलनिकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है, जिससे बाढ़ यहां की आम समस्या है.
ढाका शहर के निकायों ने कुछ ऐसे स्थान तय किए थे, जिनमें पशुओं की बलि दी जा सकती थी, लेकिन भारी बारिश के चलते कुछ ही लोग उन स्थानों का उपयोग कर सके. मुस्लिम समुदाय के लोग पारंपरिक तरीके से किसी ज़िन्दा पशु की बलि देकर ईद-उल-अजहा या बकरीद का त्योहार मनाते हैं.
अल्लाह की राह में कुर्बानी को याद दिलाने के लिए सामान्य तौर पर बकरे, भेड़ या गाय की कुर्बानी दी जाती है. जिस पशु की कुर्बानी दी जाती है, उसके मांस को परिवार, मित्रों और ऐसे गरीब परिवारों, जो कुर्बानी देने के लिए जानवर का इंतज़ाम नहीं कर सकते, के बीच सामाजिक सौहार्द बढ़ाने के लिए साझा किया जाता है.
ढाका के लोगों ने पशुओं की कुर्बानी देने के लिए पार्किंग स्थलों, गैरेजों और संकरी गलियों का उपयोग किया. उन जानवरों का खून इन स्थानों से बहकर उफनती नालियों के ज़रिये सड़कों पर आ गया, जिससे सड़कें भी खून से सराबोर नजर आईं. एक करोड़ की आबादी वाले शहर में जलनिकासी की समुचित व्यवस्था नहीं है, जिससे बाढ़ यहां की आम समस्या है.
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