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This Article is From May 11, 2016

26/11 मुंबई हमले में पाकिस्तान के रिटायर्ड सैन्य अधिकारी शामिल थे : हक्कानी

26/11 मुंबई हमले में पाकिस्तान के रिटायर्ड सैन्य अधिकारी शामिल थे : हक्कानी
पूर्व पाकिस्तानी राजदूत हुसैन हक्कानी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत रह चुके हुसैन हक्कानी ने कहा है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी इंटर-सर्विसिस इंटेलीजेंस (आईएसआई) के पूर्व प्रमुख ने स्वीकार किया है कि मुंबई में 26/11 को हुए आतंकी हमले में पाकिस्तानी सेना के कुछ सेवानिवृत्त अधिकारी शामिल थे। साल 2008 में हुए उस हमले में 116 लोगों की मौत हो गई थी और सैकड़ों लोग घायल हुए थे।

लेफ्टिनेंट जनरल शुजा पाशा तब पाकिस्तान की आईएसआई के प्रमुख थे। उन्होंने अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के अपने समकक्ष जनरल माइकल हेडन के साथ साल 2008 के दिसंबर में हुई बैठक में यह बात स्वीकार की थी।

हक्कानी ने अपनी नई पुस्तक 'इंडिया वर्सेज पाकिस्तान : ह्वाई कांट वी जस्ट बी फ्रेंड्स' में इसका उल्लेख किया है। पुस्तक के प्रकाशक 'जगरनॉट बुक्स' ने कहा है कि इसमें पाकिस्तानी सेना का विशेष संदर्भ है। भारत-पाकिस्तान के रिश्ते का विश्लेषण बिना लाग लपेट के किया गया है। हक्कानी बेनजीर भुट्टो सहित पाकिस्तान के चार प्रधानमंत्रियों के सलाहकार रह चुके हैं।

इस विश्लेषणात्मक पुस्तक में हक्कानी ने प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के अब तक अप्रकाशित एक गोपनीय पत्र का भी हवाला दिया है, जिसे उन्होंने अमेरिका के विदेशमंत्री को लिखा था। उन्होंने शिकायत की थी कि कश्मीर और पंजाब में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तान को आरोपी बनाने और 'भारत सरकार द्वारा कश्मीर में आतंकवाद चलाने' पर अमेरिका की चुप्पी को समझ पाना कठिन है।

पत्र में भारत पर पाकिस्तान के सिंध एवं पंजाब प्रांत में आतंक, विनाश और तोड़-फोड़ करने का आरोप लगाया गया है। यह पुस्तक खुलासों एवं छोटी-छोटी घटनाओं की चर्चा से भरी पड़ी है। हक्कानी इसका भी खुलासा करते हैं कि किस तरह से एक भारतीय की फोन पर गुप्त सूचना पकड़ी गई, जिससे तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ की जान बची।

इस हमले की साजिश 15 दिसंबर, 2003 को रची गई थी। उन्होंने उस गुप्त सूचना का आभार जताया है, जिससे आईएसआई उस साजिश का पर्दाफाश कर सकी और अपराधियों को पकड़ सकी।

हक्कानी कहते हैं कि पाकिस्तान का हर स्कूली बच्चा सीखता है कि कश्मीर पाकिस्तान के गर्दन की नस है। वह फिर सवाल करते हैं कि क्या वास्तव में ऐसा है? यदि ऐसा होता तो पाकिस्तान 69 सालों तक बिना गर्दन की नस के ही जिंदा कैसे रहा?

यह पुस्तक जगरनॉट ऐप पर भी उपलब्ध है।

(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)

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