जाडा कैम्प:
उन इराकी बच्चों के चेहरों पर खिली हुई मुस्कान दिखाई दे रही है, जो जाडा डिस्प्लेसमेंट कैम्प में हाल ही में खुले स्कूल के बाहर लाइन लगाए खड़े हैं, क्योंकि इनमें से बहुतों ने दो साल से स्कूल की शक्ल भी नहीं देखी है...
सरकार, संयुक्त राष्ट्र और उनके सहयोगी संगठन आईएसआईएस द्वारा किए गए नुकसान की धीरे-धीरे भरपाई करने की कोशिश में जुटे हुए हैं, क्योंकि आईएसआईएस के शासन ने खासतौर से नई पीढ़ी पर बेहद बुरा असर डाला है...
बहुत-से माता-पिता ने अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने से साफ इंकार कर दिया था, जो जून, 2014 में लगभग एक तिहाई इराक पर कब्ज़ा कर लेने वाले आईएसआईएस के 'ख़िलाफ़त' शासन के तहत चल रहे थे... दरअसल, आतंकवादी संगठन ने खुद का अलग पाठ्यक्रम लागू किया था, और अपनी ही पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित की थीं, जिनमें हथियारों के प्रति जुनून के साथ-साथ धर्म पर खासा ज़ोर दिया गया था...
जाडा कैम्प में पहले दिन स्कूल जाने की तैयारी कर रही एक बच्ची की मां सारा हसन ने कहा, "सब कुछ हथियारों, सैन्य प्रशिक्षण और कट्टरवादी विचारधारा के बारे में था..."
अध्यापिका खावला हसन का कहना है कि आतंकवादियों की दासता, जो अक्सर नृशंस हो जाया करती थी, के लंबे काल के बाद बच्चों को दोबारा स्कूल के माहौल में ढालना और भाईचारा पैदा करना बड़ी चुनौती है...
कैम्प में टैन्टों में स्थापित स्कूलों में से एक में पढ़ाने वाली 33-वर्षीय खावला हसन ने कहा, "वे बस दोबारा ध्यान देना शुरू कर रहे हैं, और क्लास में सही व्यवहार करना सीख रहे हैं..."
खावला हसन सबसे बड़े नज़दीकी कस्बे कयारा की रहने वाली हैं, जहां इराकी फौजें मोसुल के दक्षिण में जमी आईएस से लड़ रही हैं... हज़ारों इराकी फौजियों ने 17 अक्टूबर को मोसुल में आईएसआईएस पर बड़ा हमला बोला था, जो अब उनका आखिरी 'गढ़' बचा है...
यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रन्स फंड (UNICEF) के मुताबिक, स्कूल जाने की उम्र के लगभग 35 लाख इराकी बच्चे देशभर में शिक्षा से वंचित हैं, जबकि 600,000 से ज़्यादा विस्थापित बच्चों का पूरा शैक्षिक वर्ष खराब हो चुका है...
निनेवे प्रांत, जिसमें मोसुल और कयारा बसे हैं, की एमपी नूरा अल-बजरी ने कहा है कि आईएसआईएस के खत्म हो जाने के बाद इराक में पढ़ाई दोबारा शुरू करवाना काफी अहम काम होगा... उनका कहना था, "ये बच्चे सिर्फ खून-खराबे और लड़ाई की बातें करते हैं... उन्हें ऐसी क्लासों की ज़रूरत है, जिनमें मानवाधिकारों और सामुदायिक जीवन पर फोकस किया जाए..."
सरकार, संयुक्त राष्ट्र और उनके सहयोगी संगठन आईएसआईएस द्वारा किए गए नुकसान की धीरे-धीरे भरपाई करने की कोशिश में जुटे हुए हैं, क्योंकि आईएसआईएस के शासन ने खासतौर से नई पीढ़ी पर बेहद बुरा असर डाला है...
बहुत-से माता-पिता ने अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने से साफ इंकार कर दिया था, जो जून, 2014 में लगभग एक तिहाई इराक पर कब्ज़ा कर लेने वाले आईएसआईएस के 'ख़िलाफ़त' शासन के तहत चल रहे थे... दरअसल, आतंकवादी संगठन ने खुद का अलग पाठ्यक्रम लागू किया था, और अपनी ही पाठ्यपुस्तकें प्रकाशित की थीं, जिनमें हथियारों के प्रति जुनून के साथ-साथ धर्म पर खासा ज़ोर दिया गया था...
जाडा कैम्प में पहले दिन स्कूल जाने की तैयारी कर रही एक बच्ची की मां सारा हसन ने कहा, "सब कुछ हथियारों, सैन्य प्रशिक्षण और कट्टरवादी विचारधारा के बारे में था..."
अध्यापिका खावला हसन का कहना है कि आतंकवादियों की दासता, जो अक्सर नृशंस हो जाया करती थी, के लंबे काल के बाद बच्चों को दोबारा स्कूल के माहौल में ढालना और भाईचारा पैदा करना बड़ी चुनौती है...
कैम्प में टैन्टों में स्थापित स्कूलों में से एक में पढ़ाने वाली 33-वर्षीय खावला हसन ने कहा, "वे बस दोबारा ध्यान देना शुरू कर रहे हैं, और क्लास में सही व्यवहार करना सीख रहे हैं..."
खावला हसन सबसे बड़े नज़दीकी कस्बे कयारा की रहने वाली हैं, जहां इराकी फौजें मोसुल के दक्षिण में जमी आईएस से लड़ रही हैं... हज़ारों इराकी फौजियों ने 17 अक्टूबर को मोसुल में आईएसआईएस पर बड़ा हमला बोला था, जो अब उनका आखिरी 'गढ़' बचा है...
यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रन्स फंड (UNICEF) के मुताबिक, स्कूल जाने की उम्र के लगभग 35 लाख इराकी बच्चे देशभर में शिक्षा से वंचित हैं, जबकि 600,000 से ज़्यादा विस्थापित बच्चों का पूरा शैक्षिक वर्ष खराब हो चुका है...
निनेवे प्रांत, जिसमें मोसुल और कयारा बसे हैं, की एमपी नूरा अल-बजरी ने कहा है कि आईएसआईएस के खत्म हो जाने के बाद इराक में पढ़ाई दोबारा शुरू करवाना काफी अहम काम होगा... उनका कहना था, "ये बच्चे सिर्फ खून-खराबे और लड़ाई की बातें करते हैं... उन्हें ऐसी क्लासों की ज़रूरत है, जिनमें मानवाधिकारों और सामुदायिक जीवन पर फोकस किया जाए..."
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