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रूस में मोदी, टेंशन में क्यों अमेरिका? क्या भारत की विदेश नीति फेर रही उनके मंसूबों पर पानी

पीएम मोदी का रूस दौरा अमेरिका और पश्चिमी देशों को ये संदेश है कि यूक्रेन-रूस मुद्दे पर उसकी अपनी नीति और अप्रोच है, जो कि अमेरिका और पश्चिम के देशों के पदचिन्हों पर चलने जैसा नहीं है. भारत अपनी संतुलित नीति को मज़बूती से आगे बढ़ा रहा है.

रूस में मोदी, टेंशन में क्यों अमेरिका? क्या भारत की विदेश नीति फेर रही उनके मंसूबों पर पानी
नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूस दौरे पर पूरी दुनिया की निगाह थी, ख़ासतौर पर अमेरिका और पश्चिमी देशों की. अमेरिकी विदेश मंत्रालय की तरफ से तो बयान भी आया, जिसमें कहा गया कि भारत-अमेरिका का एक ऐसा रणनीतिक साझीदार है, जिससे हर मुद्दे पर खुलकर बात होती है, और इसमें रूस से भारत के संबंधों को लेकर अमेरिकी चिंता भी शामिल है. मैथ्यू मिलर ने ये भी कहा कि अमेरिका, भारत या किसी भी दूसरे देश जो रूस के साथ बातचीत कर रहा है, उससे आग्रह करता है कि वो रूस को ये साफ संदेश दे कि यूक्रेन को लेकर कोई भी शांति प्रस्ताव यूएन चार्टर के अनुसार हो, जो यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करता हो.

दरअसल भारत के प्रधानमंत्री के इस रूस दौरे ने एक बात फिर साबित कर दिया है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों की तमाम कोशिशों और प्रतिबंधों के बाद भी रूस अलग थलग नहीं पड़ा है. उसे एक तरफ़ चीन का तो दूसरी तरफ़ ब्राज़ील का और दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश भारत का साथ मिल रहा है.

ज़ाहिर सी बात है कि भारत एक संप्रभुत्व संपन्न देश है और इसे अपने हितों को देखते हुए किसी भी दूसरे देश के अपने संबंधों को आगे बढ़ाने की आज़ादी है. अमेरिका इसे रोकने के लिए दबाव नहीं डाल सकता.

भारत अपनी संतुलित नीति को मज़बूती से आगे बढ़ा रहा है
दूसरी तरफ़ पीएम मोदी का ये दौरा अमेरिका और पश्चिम के देशों को ये संदेश है कि यूक्रेन-रूस मुद्दे पर उसकी अपनी नीति और अप्रोच है जो कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के पदचिन्हों पर चलने जैसा नहीं है. पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन के साथ मुलाक़ात के दौरान जो बाते कहीं उससे साफ़ है कि भारत अपनी संतुलित नीति को मज़बूती से आगे बढ़ा रहा है. पीएम मोदी ने राष्ट्रपति पुतिन के सामने युद्ध में बच्चों की मौत पर चिंता जताई. बाद में विदेश सचिव ने साफ़ किया कि पीएम का बयान सोमवार को यूक्रेन में बच्चों के अस्पताल पर हुए हमले से था.

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युद्ध के मैदान से कोई समाधान नहीं निकलता- भारत
प्रधानमंत्री ने सीधे शब्दों में कहा कि युद्ध के मैदान से कोई समाधान नहीं निकलता, गोली-बंदूक से समाधान नहीं निकलता, बातचीत और कूटनीति से ही समाधान निकलता है. हालांकि इस मौक़े पर संप्रभुता और अखंडता का ज़िक्र नहीं किया गया, जो अमेरिका को फिर अखर सकता है, लेकिन संप्रभुता और अखंडता के सम्मान की बात भारत हमेशा से करता रहा है. ये अमेरिका के दिशा निर्देश देने जैसे बयान पर भारत करे ये ज़रूरी नहीं.

ख़ैर पीएम मोदी का पुतिन को दिया संदेश उसी तरह का संदेश है जैसा कि उन्होंने 2022 में समरकंध में राष्ट्रपति पुतिन से कहा था कि ये युद्ध का काल नहीं है. हालांकि युद्ध ढ़ाई साल लंबा खिंच चुका है और अभी भी इसके ख़त्म होने के आसार नज़र नहीं आ रहे.

पीएम मोदी ने शांति की दिशा में हर मदद का भरोसा दिया और हर तरह से खड़े रहने की बात दोहराई. पीएम मोदी ने ग्लोबल साउध की चिंताओं की बात कर, अपनी बात पर और ज़ोर दिया कि युद्ध कैसे सबके लिए संकट लेकर आता है. उन्होंने फ्यूल, फूड और फर्टिलाइज़र की अहमियत की बात की.

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चीन पर आश्रित हो रही रूस की अर्थव्यवस्था!
ग़ौरतलब है कि जहां यूक्रेन से अबाध अनाज निर्यात की ज़रूरत इसमें झलकती है, वहीं रूस के तेल और फर्टिलाइज़र की भी. रूसी हमलों की वजह से यूक्रेन से अनाज आपूर्ति पर जहां असर पड़ा है, वहीं प्रतिबंधों की वजह से रूस के अनाज के साथ-साथ तेल और फर्टिलाइज़र के निर्यात पर भी असर पड़ा है. इससे रूस की अर्थव्यवस्था पर भी ख़राब असर हुआ है और वह बहुत हद तक चीन पर आश्रित होता चला गया है. ये भी ठीक बात नहीं है.

तेल आपूर्ति के लिए भारत ने रूस को दिया धन्यवाद
पीएम मोदी ने रूसी तेल का ज़िक्र करते हुए राष्ट्रपति पुतिन का आभार भी व्यक्त किया. रूस के तेल से भारत में तेल की क़ीमतों को स्थिर रखने में तो मदद मिली ही है, दुनिया के कई देश भी रूसी तेल का फ़ायदा उठा रहे हैं. ऐसे भी देश जिसने रूसी तेल पर प्रतिबंध लगा रखा है, लेकिन कच्चे रूसी तेल से भारत में बनने वाले पेट्रोलियम प्रोडक्ट का वे भी लाभ उठा रहे हैं. पीएम मोदी ने इशारे-इशारे में इसका भी ज़िक्र कर दिया और कह दिया कि कैसे रूस के तेल ने कई देशों की अर्थव्यवस्था को सहारा दिया है.

भारत और रूस के बीच क़रीब आठ दशकों से मज़बूत आर्थिक और रक्षा सहयोग का सिलसिला रहा है. रूस पर सैन्य साजो सामान को लेकर भारत की निर्भरता कम ज़रूर हुई है, लेकिन इसकी अहमियत पहले की तरह बरकरार है. आर्थिक रिश्तों में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है.
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भारत-रूस के बीच व्यापार को 100 बिलियन का करने का लक्ष्य
विदेश सचिव ने कहा कि भारत और रूस के बीच जो 65 बिलियन डॉलर का व्यापार है उसे 100 बिलियन का करने का लक्ष्य रखा गया है. व्यापार के बास्केट को बढ़ाने और व्यापार के असंतुलन को कम करने की कोशिश भी हो रही है. रुपये-रूबल में व्यापार हो रहा है, बेशक रूस भारतीय रुपयों का अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इस्तेमाल न कर पा रहा हो और वो भारतीय बैंको में हो, लेकिन एक विकल्प है कि रूस इसे भारत में ही निवेश के काम ला सकता है.

कुल मिलाकर भारत-रूस अपने संबंधों को लेकर अपनी गति से आगे बढ़ रहे हैं. बेशक अमेरिका और पश्चिम के देश असहज हो रहे हों, लेकिन भारत सिर्फ़ किसी एक पक्ष के साथ न दिखा है न दिखेगा.

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