आतंकवाद के विरुद्ध भारत-अमेरिकी सहयोग को और आगे बढ़ाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति बराक ओबामा लश्कर-ए- तय्यबा, जैश-ए-मोहम्मद, दाउद कंपनी, अल कायदा और हक्कानी नेटवर्क जैसे आतंकवादी समूहों और आपराधिक नेटवर्कों को ध्वस्त करने के लिए 'संयुक्त और सतत प्रयास' करने पर आज सहमत हुए।
मोदी और ओबामा ने यहां व्हाइट हाउस में दो घंटे से अधिक चली अपनी पहली शिखर बैठक में इस बात पर भी सहमति जतायी कि दोनों देश इन आतंकवादी समूहों के वित्तीय और उन्हें मिल रहे अन्य प्रकार के सहयोग को ध्वस्त करने की दिशा में कदम उठाएंगे।
डी कंपनी से अर्थ 1993 के मुंबई बम विस्फोटों के मुख्य साजिशकर्ता दाउद इब्राहिम से है, जिसके बारे में माना जाता है कि वह पाकिस्तान में शरण लिए हुए है। ऐसे संकेत थे कि भारत उसके प्रत्यार्पण के लिए अमेरिका की मदद मांगेगा। मोदी और ओबामा के बीच बैठक के बाद अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि भारत पश्चिम एशिया में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को लेकर बने 'किसी गठबंधन' में शामिल नहीं होगा।
इसी प्रकार, उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अफगानिस्तान में तय पायी त्रिपक्षीय साझेदारी सैन्य सहयोग के बजाय विकास के मुद्दे पर आधारित होगी।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि आतंकवादी समूहों और आपराधिक नेटवर्क की सुरक्षित पनाहगाहों को ध्वस्त करने में 'संयुक्त और सतत प्रयासों' का अर्थ यह नहीं है कि भारत और अमेरिका कोई अभियान चलाएंगे बल्कि संयुक्त राष्ट्र समर्थित अभियान में शामिल होंगे।
मोदी और ओबामा के बीच व्यापक मुद्दों पर चर्चा हुई जिनमें रक्षा, सुरक्षा, ऊर्जा, अर्थव्यवस्था और अंतरिक्ष क्षेत्र में सहयोग के बारे में चर्चा हुई और असैन्य परमाणु करार में आए गतिरोध को समाप्त करने के लिए महत्वपूर्ण फैसला किया गया।
मोदी ने कहा, 'हम असैन्य परमाणु उर्जा सहयोग में दोनों पक्षों से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के बारे में गंभीर हैं। यह भारत की उर्जा सुरक्षा की जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक है।'
असैन्य परमाणु संयंत्रों से जुडी जवाबदेही, प्रशासनिक और तकनीकी मुद्दों के समाधान के लिए एक अंतर एजेंसी संपर्क समूह का गठन किया जाएगा। भारत की ओर से इसमें परमाणु उर्जा विभाग (डीएई), विदेश मंत्रालय (एमईए) और वित्त मंत्रालय आदि शामिल होंगे।
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