इस्लामाबाद:
पाकिस्तान ने अफगान तालिबान के पूर्व उप प्रमुख मुल्ला अब्दुल घानी बरादर को शनिवार को रिहा कर दिया। पाकिस्तान ने ऐसा करके अफगानिस्तानी राष्ट्रपति हामिद करजई की पुरानी मांग को पूरा कर दिया, जो युद्ध प्रभावित अपने देश में शांति प्रयासों को आगे बढ़ाने के लिए यह मांग कर रहे थे।
बरादर को अन्य कैदियों की तरह किसी दूसरे देश को नहीं सौंपा जाएगा और उसे पाकिस्तान के भीतर रिहा किया गया है। मीडिया की खबरों में कहा गया है कि बरादर को सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी और उसे यह स्वतंत्रता होगी कि वह जिस किसी से चाहे मिल सकता है या बातचीत कर सकता है।
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने शुक्रवार को घोषित किया था कि अफगानिस्तान के साथ सुलह समझौते की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए उसे शनिवार को रिहा किया जाएगा। बरादर वर्ष 2010 में कराची में पकड़े जाने के बाद से ही पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों की हिरासत में था। वह अभी तक रिहा किया गया शीर्ष अफगान तालिबान कैदी है।
यद्यपि पाकिस्तान गत वर्ष से अभी तक 33 अफगान तालिबान कमांडरों को रिहा कर चुका है, लेकिन बरादर की रिहाई सबसे अधिक अपेक्षित थी। करजई ने गत महीने पाकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान उसकी रिहाई की निजी तौर पर अपील की थी। विश्लेषक इस संदेह में है कि बरादर शांति प्रक्रिया को प्रभावित करने में सक्षम होगा या नहीं, लेकिन अफगानिस्तानी सरकार का मानना है कि वह उच्च शांति परिषद के साथ वार्ता का नेतृत्व कर सकता है।
बरादर को अन्य कैदियों की तरह किसी दूसरे देश को नहीं सौंपा जाएगा और उसे पाकिस्तान के भीतर रिहा किया गया है। मीडिया की खबरों में कहा गया है कि बरादर को सुरक्षा मुहैया कराई जाएगी और उसे यह स्वतंत्रता होगी कि वह जिस किसी से चाहे मिल सकता है या बातचीत कर सकता है।
पाकिस्तान के विदेश कार्यालय ने शुक्रवार को घोषित किया था कि अफगानिस्तान के साथ सुलह समझौते की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए उसे शनिवार को रिहा किया जाएगा। बरादर वर्ष 2010 में कराची में पकड़े जाने के बाद से ही पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों की हिरासत में था। वह अभी तक रिहा किया गया शीर्ष अफगान तालिबान कैदी है।
यद्यपि पाकिस्तान गत वर्ष से अभी तक 33 अफगान तालिबान कमांडरों को रिहा कर चुका है, लेकिन बरादर की रिहाई सबसे अधिक अपेक्षित थी। करजई ने गत महीने पाकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान उसकी रिहाई की निजी तौर पर अपील की थी। विश्लेषक इस संदेह में है कि बरादर शांति प्रक्रिया को प्रभावित करने में सक्षम होगा या नहीं, लेकिन अफगानिस्तानी सरकार का मानना है कि वह उच्च शांति परिषद के साथ वार्ता का नेतृत्व कर सकता है।
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