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हर 3 में से 1 बेरोजगार, जनगणना ने खोली पाकिस्‍तान की पोल... महिलाओं की हालत बेहद खराब 

पाकिस्तान ऑब्जर्वर नाम के अखबार ने देश की इस दुखती नब्ज को टटोला है. ये रिपोर्ट बेबस पाकिस्तानियों और बेपरवाह हुक्मरानों की पोल खोलती है. सिस्टम को लचर बताते हुए कहती है कि ये बेरोजगारी दर उन पाकिस्तानियों की फिक्र नहीं करती जो NEET (एनईईटी) हैं.

हर 3 में से 1 बेरोजगार, जनगणना ने खोली पाकिस्‍तान की पोल... महिलाओं की हालत बेहद खराब 
  • पाकिस्तान की डिजिटल जनगणना में बेरोजगारी दर आठ प्रतिशत पहुंच गई है, जो देश के लिए चिंता का विषय है.
  • 15 से 35 वर्ष के युवाओं में लगभग एक तिहाई बेरोजगार हैं, जिससे सामाजिक और आर्थिक संकट गहरा रहा है.
  • महिला श्रम भागीदारी दर बहुत कम है, जिससे देश की आधी आबादी आर्थिक गतिविधियों से दूर है.
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इस्‍लामाबाद:

पाकिस्तान के हालात इन दिनों ठीक नहीं हैं. देश में पहली बार डिजिटल जनगणना हुई और इसके बाद जो नतीजे आए हैं, वो मुल्‍क के लिए थोड़ा हैरान करने वाले हो सकते हैं. इस जनणना में पता चला है कि यहां बेरोजगारी दर चरम पर है. 8 फीसदी युवाओं के पास नौकरी नहीं है यानी 24 करोड़ 15 लाख की आबादी वाले देश के करीब 1 करोड़ 87 लाख युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं. सिर्फ इतना ही नहीं रिपोर्ट का कहना है कि बेरोजगारी के शिकार ये युवा आतंकी संगठनों से भी जुड़ने में परहेज नहीं करते हैं.  

NEET की फिक्र नहीं 

पाकिस्तान ऑब्जर्वर नाम के अखबार ने देश की इस दुखती नब्ज को टटोला है. ये रिपोर्ट बेबस पाकिस्तानियों और बेपरवाह हुक्मरानों की पोल खोलती है. सिस्टम को लचर बताते हुए कहती है कि ये बेरोजगारी दर उन पाकिस्तानियों की फिक्र नहीं करती जो NEET (एनईईटी) हैं. नीट से मतलब पढ़ाई (एजुकेशन), रोजगार (एम्पलाईमेंट), और प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) से महरूम करना है. इस आर्टिकल में बताया गया है कि बेरोजगारी का संकट जितना दिखता है उससे कहीं अधिक गहरा है. 15 से 35 साल की उम्र के युवाओं में तीन में से एक के पास इस समय बेरोजगारी की मार झेल रहे हैं.

रिपोर्ट की माने तो 'वर्किंग एज पापुलेशन' यानी काम करने की उम्र वाली आबादी की संख्या भी कुछ कम नहीं है. 17.17 करोड़ लोग जो काम करने में सक्षम हैं उनमें से 11 फीसदी के पास कोई नौकरी नहीं है. आर्टिकल में कहा गया है कि 'नीट' ग्रुप में वे लोग शामिल हैं जिन्होंने पूरी तरह से काम ढूंढना बंद कर दिया है, जो बिना वेतन वाले या असंगठित उपक्रमों से जुड़े हैं, या ऐसे फैमिली बिजनेस में फंसे हैं जिसकी उत्पादन क्षमता कुछ खास नहीं है. 

महिलाओं की स्थिति दयनीय 

आर्टिकल में पाकिस्तानी महिलाओं की दयनीय स्थिति का भी विवरण है. रिपोर्ट के अनुसार महिला श्रम बल भागीदारी दर भी काफी कम है. 'नीट' की समस्या तो है ही, इसके साथ ही देश की आधी आबादी की कम भागीदारी दर ने परिस्थिति को और भी सोचनीय बना दिया है. ये घटती दरें साफ इशारा करती हैं कि लेबर फोर्स का कौशल अर्थव्यवस्था से कदम ताल नहीं कर पा रहा और इसी वजह से स्ट्रक्चरल बेरोजगारी (संरचनात्मक बेरोजगारी जिसमें नियोक्ता और रोजगार की तलाश कर रहे शख्स का कौशल मेल नहीं खा पाता) बढ़ रही है. 

इसका जिम्मेदार भी पाकिस्तानी शैक्षिक व्यवस्था को बताया गया है जो पुराने ढर्रे पर चल रहा है. छात्रों को मांग के हिसाब से कुशल नहीं बना पा रहा. व्यावसायिक प्रशिक्षण भी सीमित है, तो दूसरी ओर पढ़े-लिखे युवाओं का झुकाव सरकारी नौकरियों की ओर ज्यादा है. सरकारी नौकरी आबादी के लिहाज से बहुत कम हैं और इसमें कम्पटीशन भी तगड़ा है. कुछ को नौकरी मिलती है तो कइयों के हाथ खाली रह जाते हैं और इस तरह पढ़े-लिखे बेरोजगारों की तादाद में भी इजाफा हो रहा है. 

मिल ही नहीं रही नौकरी 

साल 2025 में बेरोजगारी दर बढ़कर करीब 8 प्रतिशत हो गई है, जिसमें कुल लेबर फोर्स 8 करोड़ 51 लाख 80 हजार और बेरोजगारों की संख्या 68 लाख 10 हजार है. रिपोर्ट कहती है कि रोजगार दर करीब 52.2 प्रतिशत है, जो बताता है कि काम करने की उम्र वाली लगभग आधी आबादी या तो बेरोजगार है या अल्प-रोजगार (योग्यता के मुताबिक नौकरी न मिलना) की समस्या झेल रही है. 

महंगाई, विदेशी मुद्रा संकट, 2022 और हाल ही में 2025 की बाढ़ के असर ने छोटे बिजनेस और लोकल जॉब मार्केट को तबाह कर दिया है. विश्व बैंक के आपदा-पश्चात आवश्यकता आकलन (पोस्ट-डिजास्टर नीड्स असेस्मेंट) में अरबों डॉलर के नुकसान और लाखों लोगों के दोबारा गरीबी में चले जाने की बात सामने आई. रिपोर्ट सोच समझ कर नीति बनाने की सलाह देती है और आगाह करती है कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो ये युवाओं और मुल्क को लंबे समय तक आर्थिक नुकसान पहुंचा सकते हैं. 

आतंकी नेटवर्क का हिस्‍सा बन रहे 

आर्टिकल बेरोजगारी से सिर्फ आर्थिक तौर पर नुकसान की बात नहीं करता बल्कि इससे उभरने वाली बड़ी समस्याओं की ओर भी इशारा करता है. बेरोजगारी की मार और पैसों की कमी के चक्कर में हाशिये पर पड़े युवा जबरन पलायन को मजबूर होते हैं, फिर अपराधी बन जाते हैं या आतंकी नेटवर्क का हिस्सा बन देश की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा पैदा करते हैं. निराशा और हताशा के रूप में दिखने वाला मनोवैज्ञानिक असर बहुत गहरा और नुकसानदायक होता है. 

देश के कुछ पिछड़े इलाकों से युवाओं की तस्करी बंधुआ मजदूरी के लिए की जाती है. इतना ही नहीं, उन्हें भीख मांगने के लिए मजबूर किया जाता है या सेक्स ट्रेड में धकेल दिया जाता है. बलूचिस्तान की कोयला खदानें इस शोषण का भयानक प्रतीक बन गई हैं, जहां बुनियादी सुरक्षा उपकरणों की कमी के कारण मजदूर मर जाते हैं. ये दुखद घटनाएं कभी-कभार ही मीडिया में रिपोर्ट की जाती हैं और ये युवाओं को बचाने में सिस्टम की पूर्ण विफलता को दर्शाती हैं. 

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