25 अप्रैल को नेपाल में आए विनाशकारी भूकंप में करीब 9000 लोगों की मौत हुई। हजारों लोग बेघर हुए और अब इस भूकंप का असर कहीं और भी नज़र आ रहा है। नेपाल के अंदरुनी इलाक़ों से हज़ारों नाबालिग लड़कियों को काम दिलाने के नाम पर लाया जाता है और फिर डांस बार में काम पर लगा दिया जाता है। एक अंदाज के मुताबिक, नेपाल में वयस्कों के मनोरंजन से जुड़े कारोबार में करीब 70 हजार महिलाएं काम करने को मजबूर हैं।
थामेल, जोकि सैलानियों की सबसे पसंदीदा जगह है, यहां होटलों, दुकानों और रेस्तरां से भरी गलियां काठमांडू का मुख्य आकर्षण हैं। पर शाम 8 बजे के बाद डांस बार और डिस्को के साथ ये जगह वयस्कों के मनोरंजन केंद्र में तब्दील हो जाती है। यहां 16 साल तक की कम उम्र की लड़कियां हिंदी फिल्मी गानों पर थिरकती दिखती हैं। यहां आने वाले नेपाली ग्राहकों से लेकर भारत और विदेशों से आए सैलानी तक होते हैं।
फ्री द स्लेव्स नाम के एक एनजीओ के मुताबिक, नेपाल के 25 हजार से ज्यादा बार और रेस्टोरेंट में 50 हजार से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं। ज्यादातर लड़कियों को दूसरे कामों का वादा कर लाया जाता है, लेकिन एक बार आने के बाद वापसी नामुमकिन हो जाती है।
दो महीने अनिता तमांग को एक एजेंट भीतरी नेपाल के गांव से काठमांडू ले आया। उसे ऑफिस में सहायक के काम का वादा किया गया था, लेकिन वो रोजाना काठमांडू के डांस बार में काम करने को मजबूर है। उसकी जिंदगी नर्क हो चुकी है। तमांग के पिता की मौत कुछ साल पहले हो चुकी थी और वो जिस छोटे से घर में अपनी मां और छोटे भाई के साथ रहती थी वो भी भूकंप में तबाह हो गया। उसके बाद तो जिंदगी ही बदल गई, बीते दो महीने से बिना आराम के वो लगातार काम कर रही है। तमांग के मुताबिक, वो महीने में आठ हजार रुपए कमा लेती है, जिसमें से ज्यादातर अपने घर भेजती है।
एक अंदाज के मुताबिक, नेपाल में वयस्कों के मनोरंजन से जुड़े कारोबार में करीब 70 हजार महिलाएं काम करने को मजबूर हैं, लेकिन जहां सरकार से मदद मिलनी थी, वहां इस धंधे से जुड़े लोग पीड़ितों की आवाज दबाने में कामयाब रहते हैं। तमांग उन चंद खुशनसीबों में से एक है, जब वो एक एनजीओ की मदद से किसी तरह बाहर निकल सकी। एनजीओ और नेपाल मानवाधिकार आयोग के मुताबिक, भूकंप के बाद मानव तस्करी में बढ़ोतरी आई है।
जमीनी हालात का पता लगाने जब हम अपनी पहचान छुपाकर एक एनजीओ के साथ सोनम भाई और विशाल से मिलने पहुंचे। ये दोनों ही मानव तस्करी का धंधा करते हैं। जब हमने कहा कि क्या लड़कियों को नेपाल से बाहर ले जा सकते हैं तो वे न सिर्फ राजी हो गए बल्कि उन्होंने कुछ लड़कियों को देखने का ऑफर भी दिया।
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक, सालाना 7 हजार से ज्यादा महिलाएं भारत लाई जाती है। हालांकि भूकंप के बाद इस संख्या में खासा इजाफा हुआ है।
मैती नेपाल की एंटी ट्रैफ़िकिंग ऑफ़िसर, कल्पना और उनकी टीम इसे रोकने की कोशिश में जुटी है, वो सुबह छह बजे से रात के 8 बजे तक अपनी सहयोगियों के साथ लापता लड़कियों की तलाश करती है और नेपाल से जाने वाली बसों की जांच करती है। कल्पना कहती हैं, मानव तस्करी को रोकने का यही तरीका है कि नेपाल से बाहर जाने वाली हरेक बस की जांच की जाए। एनजीओ और पुलिस के साझा ऑपरेशन में ये देखा जाता है कि कहीं तस्करी तो नहीं हो रही।
थामेल, जोकि सैलानियों की सबसे पसंदीदा जगह है, यहां होटलों, दुकानों और रेस्तरां से भरी गलियां काठमांडू का मुख्य आकर्षण हैं। पर शाम 8 बजे के बाद डांस बार और डिस्को के साथ ये जगह वयस्कों के मनोरंजन केंद्र में तब्दील हो जाती है। यहां 16 साल तक की कम उम्र की लड़कियां हिंदी फिल्मी गानों पर थिरकती दिखती हैं। यहां आने वाले नेपाली ग्राहकों से लेकर भारत और विदेशों से आए सैलानी तक होते हैं।
फ्री द स्लेव्स नाम के एक एनजीओ के मुताबिक, नेपाल के 25 हजार से ज्यादा बार और रेस्टोरेंट में 50 हजार से ज्यादा महिलाएं काम कर रही हैं। ज्यादातर लड़कियों को दूसरे कामों का वादा कर लाया जाता है, लेकिन एक बार आने के बाद वापसी नामुमकिन हो जाती है।
दो महीने अनिता तमांग को एक एजेंट भीतरी नेपाल के गांव से काठमांडू ले आया। उसे ऑफिस में सहायक के काम का वादा किया गया था, लेकिन वो रोजाना काठमांडू के डांस बार में काम करने को मजबूर है। उसकी जिंदगी नर्क हो चुकी है। तमांग के पिता की मौत कुछ साल पहले हो चुकी थी और वो जिस छोटे से घर में अपनी मां और छोटे भाई के साथ रहती थी वो भी भूकंप में तबाह हो गया। उसके बाद तो जिंदगी ही बदल गई, बीते दो महीने से बिना आराम के वो लगातार काम कर रही है। तमांग के मुताबिक, वो महीने में आठ हजार रुपए कमा लेती है, जिसमें से ज्यादातर अपने घर भेजती है।
एक अंदाज के मुताबिक, नेपाल में वयस्कों के मनोरंजन से जुड़े कारोबार में करीब 70 हजार महिलाएं काम करने को मजबूर हैं, लेकिन जहां सरकार से मदद मिलनी थी, वहां इस धंधे से जुड़े लोग पीड़ितों की आवाज दबाने में कामयाब रहते हैं। तमांग उन चंद खुशनसीबों में से एक है, जब वो एक एनजीओ की मदद से किसी तरह बाहर निकल सकी। एनजीओ और नेपाल मानवाधिकार आयोग के मुताबिक, भूकंप के बाद मानव तस्करी में बढ़ोतरी आई है।
जमीनी हालात का पता लगाने जब हम अपनी पहचान छुपाकर एक एनजीओ के साथ सोनम भाई और विशाल से मिलने पहुंचे। ये दोनों ही मानव तस्करी का धंधा करते हैं। जब हमने कहा कि क्या लड़कियों को नेपाल से बाहर ले जा सकते हैं तो वे न सिर्फ राजी हो गए बल्कि उन्होंने कुछ लड़कियों को देखने का ऑफर भी दिया।
संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक, सालाना 7 हजार से ज्यादा महिलाएं भारत लाई जाती है। हालांकि भूकंप के बाद इस संख्या में खासा इजाफा हुआ है।
मैती नेपाल की एंटी ट्रैफ़िकिंग ऑफ़िसर, कल्पना और उनकी टीम इसे रोकने की कोशिश में जुटी है, वो सुबह छह बजे से रात के 8 बजे तक अपनी सहयोगियों के साथ लापता लड़कियों की तलाश करती है और नेपाल से जाने वाली बसों की जांच करती है। कल्पना कहती हैं, मानव तस्करी को रोकने का यही तरीका है कि नेपाल से बाहर जाने वाली हरेक बस की जांच की जाए। एनजीओ और पुलिस के साझा ऑपरेशन में ये देखा जाता है कि कहीं तस्करी तो नहीं हो रही।
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