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उत्तरकाशी में सेना ने 'लाइफलाइन' को किया तैयार, बैली पुल को बनाते समय 3 बड़ी चुनौतियों का करना पड़ा था सामना

बादल फटने से प्रभावित क्षेत्रों में फंसे लोगों को हवाई मार्ग से निकालने के लिए दो चिनूक हेलीकॉप्टर, 2 एमआई-17, और वायुसेना के चार हेलीकॉप्टर लगाए गए हैं. भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र में, 274 लोगों को गंगोत्री से हर्षिल, 19 लोगों को गंगोत्री से नीलांग, 260 लोगों को हर्षिल से मातली, 112 लोगों को हर्षिल से जॉली ग्रांट हवाई पट्टी और 382 लोगों को हर्षिल से हवाई मार्ग से निकाला गया.

उत्तरकाशी में सेना ने 'लाइफलाइन' को किया तैयार, बैली पुल को बनाते समय 3 बड़ी चुनौतियों का करना पड़ा था सामना
ऑपरेशन धराली: राहत बचाव कार्य जारी
  • उत्तरकाशी जिले के धराली इलाके में हुए हादसे के बाद सेना, पुलिस और एसडीआरएफ राहत कार्य में जुटी हैं.
  • धराली से जुड़ी मुख्य सड़क टूटने के कारण गंगनानी के पास लिंचागाड़ पर बैली पुल का निर्माण किया गया है.
  • बैली पुल बनने के बाद आसानी से बड़ी मशीनें और ट्रक धराली पहुंच सकेंगे, जिससे रेस्क्यू ऑपरेशन में और तेजी आएगी.
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उत्तरकाशी:

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली इलाके में हुए हादसे के बाद भारतीय सेना, उत्तराखंड पुलिस और एसडीआरएफ की टीमें लगातार राहत और बचाव कार्य में लगी हुई हैं. हादसे में मलबे में दबे ध्वस्त भवनों और लापता व्यक्तियों के लिए सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है. इस आपदा में धराली से जोड़ने वाली मुख्‍य सड़क टूट गई थी. जिसके कारण धराली तक पहुंचने के लिए गंगनानी के पास लिंचागाड़ पर बैली पुल का निर्माण किया गया. बैली पुल बनाने का काम रविवार सुबह को पूरा हुआ है. पुल बनने से अब आसानी से बड़ी मशीनें और ट्रक दूसरी तरफ जा सकेंगे. हालांकि अभी पैदल यात्रियों के लिए इसे खोला गया है.

इस पुल को आर्मी, बीआरओ, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ ने मिलकर युद्ध स्‍तर पर काम करते हुए बनाया है. रात-दिन काम कर इसे तैयार किया गया. हालांकि पुल बनाने की बात सुनने में जितनी आसान लग रही है, उतनी आसान नहीं थी. लोहे के पुल बनाने में तीन सबसे बड़ी बाधाएं थे. इन बाधाओं को दूर कर तेजी के साथ इस पुल का निर्माण किया गया.

पुल बनाने में थी ये तीन सबसे बड़ी बाधाएं

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मनियारी से दो किलोमीटर दूर करीब 400 मीटर सड़क बह गई थी. इस सड़क के बहने से BRO के मनियारी डिपो में रखा बेली ब्रिज का सामान गंगनानी तक नहीं पहुंच पा रहा था. इसी तरह भराडी के पास करीब 400 मीटर का हिस्सा भी बह गया था. जिसपर अस्थाई सड़क बनाना बेहद मुश्किल भरा काम था. तीसरी और सबसे खतरनाक बाधा थी पापड़ गाड़ के पास लगातार हो रही लैंड स्लाइड. पापड़ गाड़ के पास करीब 700 मीटर का हिस्सा धंस गया था और यहां लगातार लैंड स्लाइड हो रहा था. जिससे काम करने में बाधा आ रही थी. 

दिन रात चला पुल बनाने का काम

BRO ने 7 अगस्त तक भराडी पर अस्थाई सड़क बना दी थी. जबकि मनियारी से दो किलोमीटर आगे और पापड़ गाड़ में 8 तारीख की सुबह तक अस्थाई सड़कें बनीं थी. यहां सड़क बनने के बाद ही बैली ब्रिज बना और भारी भरकम ट्रक और जेसीबी पहुंची. लेकिन 8 अगस्त की शाम फिर भारी बारिश होने लगी और सारे ट्रक फंस गए.

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9 तारीख़ से सेना ने बैली पुल बनाने की कमान अपने हाथ में ली. एक वक्त आधा पुल बनकर तैयार हो चुका था लगा कि 9 तारीख़ को ही पुल बन जाएगा. लेकिन पता चला कि जिस जेसीबी को बैली ब्रिज के आधार पर लगाया था. उसका भार नाकाफ़ी है. पुल के गिरने का ख़तरा है. अब समस्या थी बुलडोजर से बड़ी मशीन मंगाने की. खराब रास्तों से फिर मशीन किसी तरह पहुंची. दिन रात काम चला और 10 तारीख़ को सुबह 9 बजे पुल तैयार हुआ. ये पुल अभी पैदल यात्रा करने वालों के लिए ही खोला गया है. गाड़ी वालों को कुछ और इंतज़ार करना पड़ेगा.

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