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This Article is From Apr 27, 2015

नेपाल में भूकंप के बाद पसरा है मौत का मातम, अब तक 4,000 से ज़्यादा लोगों की मौत


काठमांडू : नेपाल के भयावह भूकंप के बाद अब यहां भोजन, पानी, बिजली एवं दवाओं की भारी किल्लत से संकट और गहरा गया है और मरने वालों की संख्या भी 4,000 को पार कर गई है।

यहां दहशत का आलम यह है कि हजारों लोग खुले में रहने को मजबूर हैं, जबकि विदेशी नागरिक अपने देश लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जिससे यहां के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अफरा-तफरी की स्थिति पैदा हो गई है।

शक्तिशाली भूकंप और इसके बाद आए कई झटकों से हुई तबाही के बाद से लोग दहशत के बीच खुले में रहे हैं। बीती रात हुई बारिश और ठंड से लोग खुद को बचाने के लिए प्लास्टिक के टेंट का सहारा ले रहे हैं।

ईंधन और दवाओं की आपूर्ति भी काफी कम है। कुछ ऐसे ही हालात काठमांडू के उपनगरीय और दूसरे ग्रामीण इलाकों में भी है। नेपाल के शीर्ष नौकरशाह लीला मणि पौडेल ने कहा कि तत्काल और बड़ी चुनौती राहत प्रदान करना है। उन्होंने कहा, 'हम दूसरे देशों से आग्रह करते हैं कि वे हमे विशेष राहत सामाग्री और चिकित्सा दल भेजें। हमें इस संकट से निपटने के लिए अधिक विदेशी विशेषज्ञता की जरूरत है।'

इस अधिकारी ने कहा, 'हमें टेंट, कंबल, गद्दे और 800 अलग अलग दवाओं की फिलहाल सख्त जरूरत है।' कई देशों के बचाव दल खोजी कुत्तों और आधुनिक उपकरणों की मदद से जीवित लोगों का पता लगाने के काम में लगे हुए हैं। भूकंप के बाद अभी भी सैकड़ों लोग लापता हैं। यहां बचाव एवं राहत कार्य में भारत अग्रणी भूमिका निभा रहा है।

अधिकारियों का कहना है कि भूकंप में मरने वालों की संख्या 4,000 को पार कर गई है। सिर्फ काठमांडो घाटी में 1,053 लोग और सिंधुपाल चौक में 875 लोगों के मारे जाने की खबर है। अधिकारियों ने कहा कि काठमांडो और भूकंप प्रभावित कुछ दूसरे इलाकों में मलबों में अभी भी बहुत सारे लोग दबे हुए हैं। ऐसे में यह आशंका है कि मृतकों की संख्या 5,000 के पार जा सकती है।

अधिकारियों और सहायता एजेंसियों ने सचेत किया है कि पश्चिमी नेपाल के दूर-दराज वाले पहाड़ी इलाकों में बचाव दलों के पहुंचने के बाद हताहतों की संख्या में और इजाफा दिख सकता है।

'वर्ल्ड विजन' सहायता एजेंसी के प्रवक्ता मैट डेरवैस ने बताया, 'लगातार हो रहे भूस्खलन के कारण गांव प्रभावित हुये हैं और यह असामान्य नहीं है कि पत्थरों के गिरने के कारण 200, 300 या एक 1000 तक की आबादी वाले पूरे के पूरे गांव पूरी तरफ से दफन हो गये हों।'

भूकंप आने के बाद आए ताजा झटकों, सड़कों के अवरुद्ध होने, बिजली गुल होने और अस्पतालों में भारी भीड़ के कारण जीवितों का पता लगाने के काम में बाधा आ रही है। इस भूकंप का असर बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और उत्तर पूर्वी भारत के कई शहरों में महसूस किया गया था।

एक उच्च स्तरीय अंतर-मंत्रालयी दल भारत से यहां इस बात का जायजा लेने के लिए पहुंचा है कि भारत राहत अभियानों में कैसे सहयोग कर सकता है। एम्स और सफदरजंग अस्पताल के स्वास्थ्य विशेषज्ञों के दलों को भी वहां तैनात किया जा रहा है।

नेपाल ने इस भीषण आपदा के चलते देश में आपातस्थिति की घोषणा कर दी है। देश के इतिहास में पिछले 80 वषरें में आया यह अब तक का सबसे भीषण भूकंप है। भारत ने बचाव और पुनर्वास के एक बड़े प्रयास के तहत 13 सैन्य विमान तैनात किए हैं, जो अस्थाई अस्पताल सुविधा, दवाएं, कंबल और 50 टन पानी एवं अन्य सामग्री लेकर गए हैं।

भूकंप के बाद यहां फंसे दूसरे देशों के लोग बाहर निकलने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं और नतीजा यह है कि यहां के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे पर अफरा-तफरी का आलम है। भारत और दूसरे देश अपने अपने नागरिकों को जल्द वापस ले जाने की कोशिश में हैं।

अब तक भारत के 2,500 लोगों को बाहर निकाला गया है और बड़ी संख्या में लोग त्रिभुवन अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जमा हैं ताकि वे व्यावसायिक और विशेष रक्षा विमानों से स्वदेश लौट सकें। इनमें भारतीय नागरिकों की तादाद सबसे अधिक है। भारी भीड़ को देखते हुए महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों और घायल हुए लोगों को प्राथमिका दी जा रही है।

लगातार आ रहे सहायता विमानों के कारण काठमांडु हवाई अड्डे पर पार्किंग के लिए स्थान नहीं बचा है। कई विमानों को उतरने के लिए इजाजत का इंतजार करना पड़ रहा है।

संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ने कहा है कि नेपाल में पानी और खाने की किल्लत हो गई है और करीब दस लाख कमजोर और कुपोषित बच्चों को तत्काल मानवीय सहायता की जरूरत है।

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