काठमांडू:
नेपाल में रविवार को झलनाथ खनाल के नए प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के साथ ही पिछले सात महीनों से जारी राजनीतिक रिक्तता तो समाप्त हो गई लेकिन इसके साथ ही नए विवाद ने जन्म ले लिया। यहां तक कि शपथग्रहण समारोह खुद की पार्टी में असंतोष, पूर्व सहयोगी दलों में नाराजगी तथा सत्ता बंटवारे को लेकर विवाद की भेंट चढ़ गया। खनाल ने अपनी सत्ताधारी सहयोगी पार्टी, नेपाली कांग्रेस से नाता तोड़कर विपक्षी माओवादियों के साथ एक समझौता किया और इस तरह वह नेपाल के 34वें प्रधानमंत्री बन गए। लेकिन अब वह अपने नए सहयोगियों से मुश्किलों का सामना कर रहे हैं। यह मुश्किल उस समय प्रत्यक्ष रूप से सामने आ गई, जब उन्होंने माओवादियों के साथ सत्ता बंटवारे की बातचीत विफल रहने के बाद अकेले शपथ ग्रहण किया। राष्ट्रपति राम बरन यादव ने उन्हें पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। यद्यपि खनाल ने कहा कि वह सक्षम मंत्रियों वाली एक छोटी कैबिनेट के साथ तत्काल काम शुरू कर देंगे, लेकिन माओवादियों के कड़े विरोध के कारण वह अपनी कैबिनेट की भी घोषणा नहीं कर पाए हैं। खनाल की पार्टी के उस प्रस्ताव को माओवादियों के प्रमुख पुष्प कमल दहाल प्रचंड ने खारिज कर दिया, जिसमें गृह और वित्त जैसे प्रमुख मंत्रालयों को अपने पास रखने की बात शामिल थी। ज्ञात हो कि खनाल की जीत सुनिश्चित कराने के लिए प्रचंड ने गुरुवार के चुनाव में अचानक अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली थी। संसद में सबसे बड़ी पार्टी होने और खनाल के 109 सांसदों के साथ अपने 237 सांसदों को जोड़ने के नाते माओवादी अब कैबिनेट में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की मांग कर रहे हैं। इस मांग का सीधा अर्थ यह होता है कि 40 प्रतिशत मंत्रालय माओवादियों के पास होंगे। माओवादियों के साथ कठिन संतुलन स्थापित करने के साथ ही खनाल ने खुद अपनी पार्टी में तथा नेपाली कांग्रेस के साथ संकट मोल ले लिया है। शपथ ग्रहण के मौके पर एक शर्मनाक खुलासे में यह बात उजागर हुई कि खनाल ने माओवादियों का समर्थन हासिल करने के लिए प्रचंड के साथ एक गोपनीय समझौता किया। गोपनीय समझौते में खनाल ने माओवादियों की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) को लेकर, या पीएलए एवं सरकारी सुरक्षा बलों की समान संख्या वाले एक नए सुरक्षा बल का गठन करने हेतु राजी हो गए हैं। वह बारी-बारी से प्रधानमंत्री पद पर काबिज होने की व्यवस्था के साथ सरकार चलाने पर भी राजी हुए हैं। नेपाली कांग्रेस और उनकी पार्टी के असंतुष्टों ने इन दोनों शर्तो का जोरदार विरोध किया है। विरोधियों का कहना है कि यह समझौता 2006 के शांति समझौते का उल्लंघन होगा। इस समझौते का सेना द्वारा विरोध किया जाना भी तय है। सेना प्रमुख जनरल छत्रमान सिंह गुरंग ने कहा है कि पीएलए के लड़ाकों को सेना में केवल व्यक्तिगत तौर पर शामिल किया जा सकता है, वह भी तब जब वे पात्रता की शर्तें पूरा करेंगे। चूंकि नेपाली कांग्रेस ने विपक्ष में बैठने से इनकार कर दिया है, लिहाजा खनाल सरकार को नए संविधान में विवादास्पद मुद्दों को सुलझाने में कठिनाई का सामना करना होगा। खनाल के पास 28 मई तक नया संविधान तैयार करने के लिए चार महीने से कम समय बाकी बचा है।
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