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This Article is From Nov 24, 2015

नासा की खोज से ब्लैक होल पर भारतीय सिद्धांत की पुष्टि

नासा की खोज से ब्लैक होल पर भारतीय सिद्धांत की पुष्टि
प्रतीकात्मक चित्र
बेंगलुरु: एक भारतीय खगोलविद ने दावा किया है कि अमेरिकी अंतरिक्ष अनुसंधान एजेंसी नासा द्वारा हाल ही में किए गए खोज से ब्लैक होल के उनके सिद्धांत की पुष्टि होती है।

भारतीय वैज्ञानिक का कहना है कि तथाकथित तौर पर ब्लैक होल कहे जाने वाले खगोल पिंड वास्तव में ब्लैक होल नहीं, बल्कि हमारे सूर्य की तरह दहकते आग के गोले होते हैं और हाल ही में नासा के वैज्ञानिकों ने एक ब्लैक होल से एक्स किरणों की विशाल लपटें देखी, जिससे उनके सिद्धांत की पुष्टि होती है।

खगोलविदों के अनुसार, अत्यंत विशाल खगोल पिंड भी बेहद सघन पिंड ब्लैक होल (कृष्ण विवर) में समा जाते हैं, क्योंकि ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण इतना अधिक होता है कि प्रकाश तक उसकी सीमा से बाहर नहीं निकल पाता। नासा द्वारा पिछले महीने यह खुलासा करना एक आश्चर्य की तरह देखा गया कि नासा के दो अंतरिक्ष दूरबीनों ने एक अत्यंत विशाल ब्लैक होल से एक्स किरणों की विशाल लपटें निकलती देखी।

ब्लैक होल से निकलने वाली एक्स किरणों की ये विशाल लपटें इस मायने में अलग थीं कि वे ब्लैक होल के कोरोना में हुए भीषण विस्फोट के कारण उत्सर्जित हुईं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि यदि ब्लैक होल से कुछ भी बाहर नहीं आ सकता तो कोरोना कैसे बाहर आया?

कुछ ही दिनों पहले तक मुंबई स्थित भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र में सैद्धांतिक खगोल विज्ञान के अध्यक्ष रहे और इस समय होमी भाभा राष्ट्रीय संस्थान में सहायक प्राध्यापक आभास मित्रा का कहना है कि नासा की इस नई खोज से उनके सिद्धांत की पुष्टि ही होती है कि ब्रह्मांड में कोई 'वास्तविक' ब्लैक होल मौजूद ही नहीं है और जिन्हें हम ब्लैक होल कहकर पुकारते हैं, वे खगोल पिंड वास्तव में चुंबकीय प्लाज्मा के भीषण रूप से गर्म गोले हैं।

मित्रा ने विस्तार से बताया कि जब कोई विशालकाय तारा किसी ब्लैक होल से टकराता है तो उस बेहद गर्म तारे में मौजूद विकिरण गुरुत्वाकर्षण के खिलाफ एक बाहर की ओर निकलने वाला बल निर्मित करती है, परिणामस्वरूप अत्यंत धीमी गति से संकुचन शुरू हो जाता है। इस तरह आइंस्टीन के सिद्धांत में जिसे ब्लैक होल कहा गया, उसे हम विशालकाय तारे के संकुचित होने से निर्मित बेहद गर्म आग का गोला या 'मैग्नेटोस्फेरिक इटर्नली कोलैप्सिंग ऑब्जेक्ट्स' (एमईसीओ) कह सकते हैं।

उन्होंने बताया कि इस नए सिद्धांत के समर्थन में ताजा सबूत 2000 के बाद से ही अग्रणी शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित किए गए हैं। उन्होंने कहा, "चुंबकीय गोले का हमारे पास सबसे अच्छा उदाहरण हमारे सौरमंडल का ही सूर्य तारा है, जिसके चारों ओर बेहद पतली प्लाज्मा की पर्त है जिसे कोरोना कहते हैं।"

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