वाशिंगटन:
पाकिस्तान में सत्ता पर सेना के हावी होने की पुष्टि करते हुए विकीलीक्स ने खुलासा किया है कि पाक सेना प्रमुख जनरल अशफाक परवेज कयानी परमाणु हथियारों का पहले से इस्तेमाल नहीं करने की राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की नीति का समर्थन नहीं करते। विकीलीक्स ने अमेरिका के गोपनीय राजनयिक संदेशों के हवाले से कहा है हालांकि वह (कयानी) मुद्दे पर खामोश रहे हैं लेकिन जरदारी के उस बयान का समर्थन नहीं करते जिसमें उन्होंने पिछले साल भारतीय प्रेस से कहा था कि पाकिस्तान पहले से परमाणु हथियारों का इस्तेमाल नहीं करने की नीति पर चलेगा। पाकिस्तान में तत्कालीन अमेरिकी राजदूत एनी पैटरसन ने 2009 में कयानी की 20 से 27 फरवरी तक की अमेरिका यात्रा से पहले संदेश भेजकर कहा था हमारा मानना है कि वित्तीय बाधाएं बढ़ने के बावजूद सेना (पाक) सामरिक हथियारों और मिसाइल कार्यक्रम में वृद्धि कर दोनों मोचरें पर विस्तार कर रही है। हाल में जारी किए गए दस्तावेजों के अनुसार अमेरिका की बड़ी चिंता यह नहीं है कि कहीं कोई इस्लामी आतंकवादी परमाणु हथियार न चुरा ले बल्कि बड़ी चिंता यह है कि पाकिस्तान सरकार में काम कर रहा कोई व्यक्ति धीरे-धीरे इतनी मात्रा में विखंडनीय सामग्री की तस्करी कर सकता है कि आखिरकार इससे हथियार बनाए जा सकते हैं। संदेश में हालांकि यह भी कहा गया कि पाकिस्तान की सामरिक संपत्ति धर्म निरपेक्ष सेना के नियंत्रण में है जिसने व्यापक नियंत्रण मानक अपनाए हैं। मुम्बई हमलों के कुछ महीने बाद 19 फरवरी 2009 को भेजे गए संदेश में कहा गया कि पाकिस्तानी सेना और आईएसआई विदेश नीति के हथियार के रूप में लश्कर ए तैयबा जैसे आतंकी समूहों को समर्थन दे रही हैं। संदेश में आईएसआई और पाक सेना के बारे में कहा गया कि वे अब भी भारत को मुख्य खतरा और भारत के साथ संभावित संघर्ष के समय अफगानिस्तान को सामरिक रूप से काफी महत्वपूर्ण मानती हैं। वे परोक्ष बलों (हक्कानी नेटवर्क कमांउर नजीर गुलबद्दीन हिकमतयार और लश्कर ए तैयबा सहित) को समर्थन जारी रखे हुए हैं। राजनयिक संदेश में कहा गया कयानी को वाशिंगटन में सिर्फ यही संदेश मिलना चाहिए कि इस तरह का समर्थन बंद किया जाना चाहिए।
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