
- ईरान ने पिछले चार दशकों में कई छद्म बलों का गठबंधन बनाया है.
- लेबनान में हिजबुल्लाह, फिलिस्तीन में हमास, यमन में हूती और इराक के शिया मिलिशिया मदद के वक्त गायब दिख रहें.
- हमास का सैन्य ढांचा इजरायल के हमलों में नष्ट हुआ है.
पिछले चार दशकों से अधिक समय से, ईरान ने शक्ति का प्रदर्शन करने, अमेरिका और इजरायल के प्रभाव को पीछे हटाने और सीधे टकराव से खुद को बचाने के लिए मिडिल ईस्ट में हिजबुल्लाह से लेकर हमास तक, कई छद्म ताकतों (प्रॉक्सी फोर्सेज) का एक गठबंधन बनाया है. ये खुद को "प्रतिरोध की धुरी" बताते हैं. लेकिन अब जब ईरान अपनी धरती पर इजरायल की तरफ से ऐसे हमलों (Iran Israel War) का सामना कर रहा है, जैसा उसने आज तक नहीं देखे हैं, ईरान के ये यार परदे के पीछे स्पष्ट रूप से शांत दिख रहे हैं.
लेबनान में हिजबुल्लाह, फिलिस्तीन में हमास, यमन में हूती और इराक में ईरानी समर्थित शिया मिलिशिया मदद करने के वक्त में गायब दिख रहे हैं. इनमें से कई जंग लड़कर थके हुए हैं, कई आंतरिक रूप से विभाजित हैं, और अपनी कमजोरियों से जूझ रहे हैं. इससे सवाल उठता है: क्या ईरान दशकों में पहली बार अकेले जंग लड़ रहा है?
चलिए एक नजर डालते हैं.
हिजबुल्लाह
लेबनानी शिया अर्धसैनिक समूह और ईरान के सबसे दुर्जेय प्रतिनिधि हिजबुल्लाह ने ईरानी क्षेत्र पर इजरायल के हमलों के बाद से कोई बड़ी जवाबी कार्रवाई नहीं की है. एक साल पहले, यह सोचना भी मुश्किल होता. लेकिन 2023 के बाद से जारी इजरायली हमलों से इस समूह की क्षमताओं, मनोबल और नेतृत्व को गंभीर रूप से गिरावट आई है.
हाल ही में एक इंटरव्यू में, हिजबुल्लाह के वर्तमान नेता नईम कासिम एक ईरानी प्रतिनिधि के बजाय एक लेबनानी राजनेता के रूप में दिखाई दिए. वाशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, उनके ऑफिस पर कोई ईरानी प्रतीक चिन्ह नहीं था, और उनकी दीवारों पर अयातुल्ला खामेनेई का कोई चित्र नहीं लगा था. हिजबुल्लाह की सैन्य आपूर्ति और फंडिंग लाइनों पर भी जोर दिया गया है. 2024 के अंत में सीरिया में बशर अल-असद के शासन के पतन और सीरिया के माध्यम से तस्करी के मार्गों के बाधित होने के साथ, इस समूह का लॉजिस्टिक नेटवर्क सिकुड़ गया है.
हमास
गाजा में फिलिस्तीनी आतंकवादी समूह हमास, आज कमजोर हो चला है.इजरायल के साथ लगभग दो सालों के युद्ध के बाद, गाजा का अधिकांश भाग खंडहर हो गया है, और हमास के कई सीनियर लीडर मर चुके हैं. इसके दोनों सबसे सीनियर नेताओं इस्माइल हनियेह और याह्या सिनवार की हत्या के साथ, यह अज्ञात है कि हमास का जमीनी नेतृत्व कितना मजबूत है या ईरान को इजरायल के खिलाफ युद्ध छेड़ने में मदद करने के लिए वे कितने मजबूत हैं.
सुरंगों, कमांड सेंटरों और रॉकेट फैक्ट्री जैसे जिस सैन्य बुनियादी ढांचे पर समूह भरोसा करता था, लेकिन उसे इजरायल ने अपने हमले में व्यवस्थित रूप से नष्ट कर दिया है.
इराक: मिलिशिया से बने बिजनेसमैन
इराक में, ईरानी-गठबंधन शिया लड़ाकों के एक समूह ने लंबे समय से अमेरिकी सैनिकों को परेशान किया है, ईरानी हितों की रक्षा की है और बगदाद में तेहरान के प्रभाव को बढ़ाया है. लेकिन अब और नहीं.
जनवरी से, ईरानी धरती पर हुए किसी भी इजरायली हमलों के बाद, शिया मिलिशिया ने केवल मौन निंदा की है. केवल कताएब हिजबुल्लाह ने अस्पष्ट धमकी दी कि वह कार्रवाई करेगा, लेकिन केवल उस स्थिति में जब जब अमेरिका ईरान पर हमला करने में इजराइल के साथ शामिल होगा.
तेहरान और वाशिंगटन दोनों के साथ संबंध रखने वाले उदारवादी इराकी प्रधान मंत्री मोहम्मद अल-सुदानी ने भी चुपचाप मिलिशिया कमांडरों से संघर्ष से दूर रहने का आग्रह किया है.
हूती: इंतजार कर रहे लड़ाके
यमन के हूती हाल के महीनों में सबसे सक्रिय ईरानी पार्टनर रहे हैं. उन्होंने इजरायल पर कई मिसाइलें दागी हैं और अपनी अमेरिकी और इजरायल विरोधी बयानबाजी जारी रखी है. लेकिन वे भी अब चुप से हो गए हैं.
मार्च और अप्रैल में अमेरिकी हवाई हमलों में उनकी कई मिसाइल बैटरियां नष्ट हो जाने के बाद, समूह सतर्क हो गया है. हूती नेतृत्व ने तेहरान के साथ कॉर्डिनेशन तो बनाए रखा है, लेकिन इसकी सार्वजनिक स्थिति विशेष रूप से अधिक स्वतंत्र है.
अमेरिका के विरोधी भी मदद नहीं कर रहे
मिडिल ईस्ट के बाहर, ईरान के सहयोगी न केवल शक्तिशाली हैं बल्कि "सत्तावादी" होने के लिए भी जाने जाते हैं. ईरान, रूस, चीन और नॉर्थ कोरिया के साथ मिलकर एक ऐसा समूह बनाता है जिसे विदेश नीति विशेषज्ञों ने उथल-पुथल की धुरी या अराजकता की चौकड़ी या क्रिंक धुरी जैसे शब्द दिए हैं.
रूस, भले ईरान का समर्थक है लेकिन वह इजरायल-ईरान जंग में सावधानी से आगे बढ़ रहा है. इसने इजरायली हमलों की "अकारण आक्रामकता" के रूप में निंदा की, लेकिन गहरी भागीदारी के लिए कोई भूख नहीं दिखाई है. पुतिन अधिक से अधिक दोनों के बीच मध्यस्थता करने की बात कह रहे हैं.
ऐतिहासिक रूप से अलग-थलग और घोर पश्चिम-विरोधी नॉर्थ कोरिया पर लंबे समय से ईरान के मिसाइल और परमाणु कार्यक्रमों को सहायता देने का संदेह रहा है. लेकिन वो भी कहीं नहीं दिखा है. वो केवल इजरायल को शांति के लिए कैंसर कह रहा है.
क्या भारत ईरान का सहयोगी है?
तेहरान और येरुशलम दोनों के साथ भारत के अच्छे संबंध हैं. भारत कई क्षेत्रों में इजरायल के साथ साझेदारी करता है और साथ ही, ईरान का रणनीतिक और क्षेत्रीय भागीदार बना हुआ है. 2024 में, भारत ने चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन के लिए ईरान के साथ 10 साल के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए.
यह भी पढ़ें: आखिर जंग में ईरान की मदद क्यों नहीं कर रहा रूस, आखिर क्या हैं पुतिन की मजबूरियां?
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं