बीजिंग:
भारत-चीन सीमा पर 35 नई सीमा चौकियां बनाने की भारत की योजना से बीजिंग चिंतित है। यहां के एक प्रभावशाली थिंक टैंक में विशेषज्ञ ने इसे ‘उकसाने वाला’ कदम बताते हुए कहा है कि इससे तनाव का एक नया दौर शुरू हो सकता है।
सरकारी दैनिक में प्रकाशित लेख में शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (एसआईआईएस) में विशेषज्ञ लिउ जोंगई ने कहा कि नई सीमा चौकियां बनाना एक संवेदनशील मुद्दा है।
1962 में चीन-भारत सीमा युद्ध जवाहरलाल नेहरू सरकार द्वारा शुरू अग्रिम नीति के कारण हुआ। लेख में उन्होंने कहा, चीन और भारत के बीच अब एलएसी मैकमोहन रेखा के उत्तर में है और भारत द्वारा बनाई गई नई चौकियां रेखा का उल्लंघन कर सकती हैं, जिससे सीमाई इलाके में तनावपूर्ण स्थिति पैदा होगी और इससे अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय दोस्ताना सहयोग प्रभावित होगा। पिछले महीने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के निवर्तमान महानिदेशक अजय चड्ढा ने कहा था कि 35 नई सीमा चौकियां बनाई जाएंगी और चीन-भारत सीमा पर जहां हाल में चीन की ओर से कई बार अतिक्रमण हुआ सुरक्षा मजबूत करने के लिए चरणबद्ध तरीके से आईटीबीपी के अतिरिक्त जवान तैनात किए जाएंगे।
इस समय भारत सीमा पर 150 से अधिक चौकियां हैं और अर्धसैनिक बल 3488 किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा की रक्षा कर रहे हैं। लिउ ने चीनी सैनिकों द्वारा अतिक्रमण की खबरें वायुसेनाध्यक्ष ब्राउन की चीन यात्रा के बारे में अटकल के अलावा प्रस्तावित चौकियों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत सरकार और मीडिया ‘सीमा मुद्दों’ पर आवश्यकता से अधिक प्रतिक्रिया कर रहे हैं।
लेख में कहा गया है कि भारतीय मीडिया और सरकार हर बार सीमा मुद्दों पर जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया दिखाती रही है। हाल के दिनों में आलोचना का अन्य लक्ष्य म्यांमा रहा जिस पर मणिपुर में कथित अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है। इसमें कहा गया, भारत और कुछ देशों के बीच अपरिभाषित सीमाई इलाके हैं उनमें से कुछ की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) नहीं है। इस पर भी भारतीयों के दिमाग में सीमा को लेकर ‘अपना विचार’ है और सीमा को लांघने का मतलब होता है कि वे भारत के क्षेत्र में हमला कर रहे हैं। इसमें कहा गया है, सीमा पर चीन के ‘हमले ’ को लेकर भारत का होहल्ला उसकी विचलित होने और चिंताओं से है। सीमा मुद्दा काफी समय से है और इसका हल मुश्किल है। सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास और ताकत के मुकाबले में भारत का चीन से अंतर बढ़ता जा रहा है।
सरकारी दैनिक में प्रकाशित लेख में शंघाई इंस्टीट्यूट ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज (एसआईआईएस) में विशेषज्ञ लिउ जोंगई ने कहा कि नई सीमा चौकियां बनाना एक संवेदनशील मुद्दा है।
1962 में चीन-भारत सीमा युद्ध जवाहरलाल नेहरू सरकार द्वारा शुरू अग्रिम नीति के कारण हुआ। लेख में उन्होंने कहा, चीन और भारत के बीच अब एलएसी मैकमोहन रेखा के उत्तर में है और भारत द्वारा बनाई गई नई चौकियां रेखा का उल्लंघन कर सकती हैं, जिससे सीमाई इलाके में तनावपूर्ण स्थिति पैदा होगी और इससे अन्य क्षेत्रों में द्विपक्षीय दोस्ताना सहयोग प्रभावित होगा। पिछले महीने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के निवर्तमान महानिदेशक अजय चड्ढा ने कहा था कि 35 नई सीमा चौकियां बनाई जाएंगी और चीन-भारत सीमा पर जहां हाल में चीन की ओर से कई बार अतिक्रमण हुआ सुरक्षा मजबूत करने के लिए चरणबद्ध तरीके से आईटीबीपी के अतिरिक्त जवान तैनात किए जाएंगे।
इस समय भारत सीमा पर 150 से अधिक चौकियां हैं और अर्धसैनिक बल 3488 किलोमीटर वास्तविक नियंत्रण रेखा की रक्षा कर रहे हैं। लिउ ने चीनी सैनिकों द्वारा अतिक्रमण की खबरें वायुसेनाध्यक्ष ब्राउन की चीन यात्रा के बारे में अटकल के अलावा प्रस्तावित चौकियों का जिक्र करते हुए कहा कि भारत सरकार और मीडिया ‘सीमा मुद्दों’ पर आवश्यकता से अधिक प्रतिक्रिया कर रहे हैं।
लेख में कहा गया है कि भारतीय मीडिया और सरकार हर बार सीमा मुद्दों पर जरूरत से ज्यादा प्रतिक्रिया दिखाती रही है। हाल के दिनों में आलोचना का अन्य लक्ष्य म्यांमा रहा जिस पर मणिपुर में कथित अतिक्रमण का आरोप लगाया गया है। इसमें कहा गया, भारत और कुछ देशों के बीच अपरिभाषित सीमाई इलाके हैं उनमें से कुछ की वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) नहीं है। इस पर भी भारतीयों के दिमाग में सीमा को लेकर ‘अपना विचार’ है और सीमा को लांघने का मतलब होता है कि वे भारत के क्षेत्र में हमला कर रहे हैं। इसमें कहा गया है, सीमा पर चीन के ‘हमले ’ को लेकर भारत का होहल्ला उसकी विचलित होने और चिंताओं से है। सीमा मुद्दा काफी समय से है और इसका हल मुश्किल है। सीमा पर बुनियादी ढांचे के विकास और ताकत के मुकाबले में भारत का चीन से अंतर बढ़ता जा रहा है।