पीएम मोदी और जापान के प्रधानमंंत्री शिंजो आबे (फाइल फोटो)
बीजिंग:
चीन और भारत के विवादों को अपने हितों के लिए भुनाने का जापान पर आरोप लगाने के साथ ही चीन ने शनिवार को कहा कि भारत उस पर (चीन पर) लगाम लगाने के लिए जापान के हाथों का 'मोहरा' नहीं बनेगा.
'ग्लोबल टाइम्स' ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन-दिवसीय जापान यात्रा पर लिखे अपने संपादकीय में कहा है, 'जापान, भारत और चीन के बीच के विवादों का इस्तेमाल कर चीन पर लगाम लगाने के लिए भारत को राजी करना चाहता है. जापान, भारत से अपील करना चाहता है कि वह दक्षिणी चीन सागर मामले में टांग अड़ाए. जापान इसके लिए अपनी सालों पुरानी परमाणु इस्तेमाल को कम करने की स्थिति में भी बदलाव कर रहा है और उसने भारत को असैन्य परमाणु सहयोग के लाभों की पेशकश तक कर दी है.'
सरकार समर्थक दैनिक ने लिखा है, 'पिछले तीन सालों में जापान की राजनयिक नीतियों को देखें तो आबे प्रशासन चीन को घेरने के लिए क्षेत्रीय ताकतों को अपनी ओर करने के प्रयासों में लगा है.' इसमें कहा गया है कि भारत को जापान से परमाणु और सैन्य तकनीक तथा विनिर्माण उद्योग और हाई स्पीड रेलवे की तरह ढांचागत क्षेत्र में निवेश के लिए जापान की जरूरत है.
दैनिक ने हालांकि लिखा है कि भारत द्वारा जापान की इच्छाओं के अनुसार अपनी स्थिति बदले जाने की संभावना नहीं है. इसमें कहा गया है, 'भारत ने बहुपक्षीय कूटनीतिक अवधारणा और प्रमुख ताकत का रुख अख्तियार किया है. जापान की योजनाएं मनमुटाव की हैं, जो भारत की नीतियों के विपरीत हैं, इसलिए भारत, जापान के साथ अपने सहयोग का मामला दर मामला व्यावहारिक आकलन करेगा.'
संपादकीय में लिखा गया है, 'भारत, चीन को रोकने के लिए जापान के हाथों का मोहरा नहीं बनेगा, क्योंकि वह चीन और जापान के बराबर की ताकत बनना चाहता है और दोनों पक्षों से फायदा लेना चाहता है. भारत, जापान के करीब जाएगा, लेकिन भाईचारे के संबंधों में नहीं जाएगा.' भारत और जापान द्वारा शुक्रवार को संयुक्त बयान जारी किए जाने से पूर्व संभवत: लिखे गए इस संपादकीय में कहा गया है, 'दोनों पक्षों ने संकेत दिए कि वे अपने संयुक्त बयान में दक्षिण चीन सागर पंचाट को शामिल करेंगे.'
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
'ग्लोबल टाइम्स' ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीन-दिवसीय जापान यात्रा पर लिखे अपने संपादकीय में कहा है, 'जापान, भारत और चीन के बीच के विवादों का इस्तेमाल कर चीन पर लगाम लगाने के लिए भारत को राजी करना चाहता है. जापान, भारत से अपील करना चाहता है कि वह दक्षिणी चीन सागर मामले में टांग अड़ाए. जापान इसके लिए अपनी सालों पुरानी परमाणु इस्तेमाल को कम करने की स्थिति में भी बदलाव कर रहा है और उसने भारत को असैन्य परमाणु सहयोग के लाभों की पेशकश तक कर दी है.'
सरकार समर्थक दैनिक ने लिखा है, 'पिछले तीन सालों में जापान की राजनयिक नीतियों को देखें तो आबे प्रशासन चीन को घेरने के लिए क्षेत्रीय ताकतों को अपनी ओर करने के प्रयासों में लगा है.' इसमें कहा गया है कि भारत को जापान से परमाणु और सैन्य तकनीक तथा विनिर्माण उद्योग और हाई स्पीड रेलवे की तरह ढांचागत क्षेत्र में निवेश के लिए जापान की जरूरत है.
दैनिक ने हालांकि लिखा है कि भारत द्वारा जापान की इच्छाओं के अनुसार अपनी स्थिति बदले जाने की संभावना नहीं है. इसमें कहा गया है, 'भारत ने बहुपक्षीय कूटनीतिक अवधारणा और प्रमुख ताकत का रुख अख्तियार किया है. जापान की योजनाएं मनमुटाव की हैं, जो भारत की नीतियों के विपरीत हैं, इसलिए भारत, जापान के साथ अपने सहयोग का मामला दर मामला व्यावहारिक आकलन करेगा.'
संपादकीय में लिखा गया है, 'भारत, चीन को रोकने के लिए जापान के हाथों का मोहरा नहीं बनेगा, क्योंकि वह चीन और जापान के बराबर की ताकत बनना चाहता है और दोनों पक्षों से फायदा लेना चाहता है. भारत, जापान के करीब जाएगा, लेकिन भाईचारे के संबंधों में नहीं जाएगा.' भारत और जापान द्वारा शुक्रवार को संयुक्त बयान जारी किए जाने से पूर्व संभवत: लिखे गए इस संपादकीय में कहा गया है, 'दोनों पक्षों ने संकेत दिए कि वे अपने संयुक्त बयान में दक्षिण चीन सागर पंचाट को शामिल करेंगे.'
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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