कोलम्बो:
श्रीलंका के सर्वोच्च न्यायालय ने देश की प्रथम महिला प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया को असंवैधानिक बताते हुए गुरुवार को इसे खारिज कर दिया। इससे श्रीलंका की संसद और न्यायपालिका के बीच टकराव गहरा गया है।
वकीलों के एक समूह ने त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए इस फैसले का स्वागत किया और सरकार तथा राजनीतिक दलों से कहा कि यदि वे श्रीलंका को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं तो सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना न करें।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की खबर के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया, उसे अपीलीय अदालत के अध्यक्ष ने पढ़कर सुनाया जिसमें कहा गया है कि सरकार द्वारा गठित संसदीय प्रवर समिति (पीएससी) को प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों की जांच की 'वैधानिक शक्ति या प्राधिकार' नहीं है।
अधिवक्ता देशमल वरनासुरिया ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की जो प्रक्रिया अपनाई गई, वह संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। न्यायालय के आदेश के बाद संसद की प्रवर समिति और महाभियोग की प्रक्रिया असंवैधानिक तथा गैर-कानूनी हो गई है।
गौरतलब है कि श्रीलंका की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिरानी भंडारनायके के खिलाफ वित्तीय अनियमितता को लेकर महाभियोग की प्रक्रिया नवंबर में शुरू हुई थी। उनके खिलाफ 14 आरोपों की जांच के लिए संसद की प्रवर समिति गठित की गई थी। समिति कुछ ही समय बाद हालांकि विवादों में घिर गई।
6 दिसंबर को न्यायमूर्ति भंडारनायके ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो रही है। इस तरह के अरोप भी लगे कि समिति ने उन्हें 'पागल महिला' कहा और अपमानित किया। उन्होंने समिति के खिलाफ अपीलीय अदालत में मामला दर्ज कराया, जिसके बाद यह फैसला आया।
वकीलों के समूह ने सभी संस्थानों, व्यक्तियोंऔर राजनीतिक दलों से सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को स्वीकार करने तथा वैधानिक व्यवस्था का सम्मान की अपील की।
वकीलों के एक समूह ने त्वरित प्रतिक्रिया देते हुए इस फैसले का स्वागत किया और सरकार तथा राजनीतिक दलों से कहा कि यदि वे श्रीलंका को एक लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में देखना चाहते हैं तो सर्वोच्च न्यायालय की अवहेलना न करें।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ की खबर के मुताबिक, सर्वोच्च न्यायालय ने जो फैसला दिया, उसे अपीलीय अदालत के अध्यक्ष ने पढ़कर सुनाया जिसमें कहा गया है कि सरकार द्वारा गठित संसदीय प्रवर समिति (पीएससी) को प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों की जांच की 'वैधानिक शक्ति या प्राधिकार' नहीं है।
अधिवक्ता देशमल वरनासुरिया ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की जो प्रक्रिया अपनाई गई, वह संविधान के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। न्यायालय के आदेश के बाद संसद की प्रवर समिति और महाभियोग की प्रक्रिया असंवैधानिक तथा गैर-कानूनी हो गई है।
गौरतलब है कि श्रीलंका की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति शिरानी भंडारनायके के खिलाफ वित्तीय अनियमितता को लेकर महाभियोग की प्रक्रिया नवंबर में शुरू हुई थी। उनके खिलाफ 14 आरोपों की जांच के लिए संसद की प्रवर समिति गठित की गई थी। समिति कुछ ही समय बाद हालांकि विवादों में घिर गई।
6 दिसंबर को न्यायमूर्ति भंडारनायके ने आरोप लगाया कि उनके खिलाफ निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो रही है। इस तरह के अरोप भी लगे कि समिति ने उन्हें 'पागल महिला' कहा और अपमानित किया। उन्होंने समिति के खिलाफ अपीलीय अदालत में मामला दर्ज कराया, जिसके बाद यह फैसला आया।
वकीलों के समूह ने सभी संस्थानों, व्यक्तियोंऔर राजनीतिक दलों से सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को स्वीकार करने तथा वैधानिक व्यवस्था का सम्मान की अपील की।
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