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This Article is From Apr 14, 2022

Explainer: Ukraine War ने US की खामियां दुनिया के सामने कैसे उजागर कीं?

हाल में भी लोकतंत्र को बढ़ावा देने में अमेरिकी विदेश नीति टिकाऊ और सकारात्मक परिवर्तन लाने में नाकाम रही है. मिसाल के तौर, अमेरिका की अफगानिस्तान में दखल नाकाम रही.

Explainer: Ukraine War ने US की खामियां दुनिया के सामने कैसे उजागर कीं?
Ukraine War: Biden की नीतियों ने US और दुनिया में लोकतंत्र को पुनर्जीवन दिया है

इसमें कोई संदेह नहीं है कि यूक्रेन (Ukraine) पर रूसी (Russian) हमले का आने वाले सालों में अंतरराष्ट्रीय मामलों की स्थिति पर अपरिवर्तनीय प्रभाव पड़ेगा. इसने विश्व राजनीति में कुछ नकारात्मक प्रवृत्तियों को गति दी है -- पश्चिम और संशोधनवादी शक्तियों जैसे रूस (Russia) और चीन (China), और आर्थिक राष्ट्रवाद के बीच महान शक्ति प्रतिद्वंद्विता. समान रूप से, यह कुछ सबसे शक्तिशाली यूरोपीय देशों, खासकर जर्मनी (Germany) की विदेश नीति में व्यापक बदलाव लेकर आया है. हालांकि, अटलांटिक के दूसरी ओर, विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव लाने के बजाय, रूस की आक्रामकता ने अमेरिकी विदेश नीति में तनाव को उजागर किया है.

द कन्वरसेशन की रिपोर्ट की मुताबिक, राष्ट्रपति पद पर अपने कार्यकाल के शुरू से ही अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने उन नीतियों को बढ़ावा दिया है जिन्होंने अमेरिका और दुनिया भर में लोकतंत्र को पुनर्जीवन दिया है और यह उनके कार्यकाल का केंद्रीय सिद्धांत बन गया है.

वारसॉ में दिया गया उनका हालिया भाषण, लोकतंत्र के लिए लड़ाई की निरंतरता की ओर इशारा करता है जो शीत युद्ध की समाप्ति के बाद से शुरू हुआ था और आज भी जारी है.

लोकतंत्र को बढ़ावा 

जो लोग मानते हैं कि लोकतंत्र को बढ़ावा देने की शुरुआत अपने वतन से ही होनी चाहिए, उनके अनुसार, अमेरिका को अपने देश में लोकतंत्र की समस्या से संबंधित मुद्दों का निदान करना चाहिए जिसके बाद ही उसे अन्य देशों पर उंगली उठानी चाहिए.

आधुनिक अमेरिकी इतिहास में यह कोई नया तनाव नहीं है. शीत युद्ध के दौरान लोकतांत्रिक आदर्श की अमेरिकी विदेश नीति का रिकॉर्ड देश और विदेश दोनों ही जगह वास्तविक लक्ष्य को पूरा करने में विफल रहा.

फिर भी, 21वीं सदी के शुरुआती दशक इस मोर्चे पर और भी बड़ी चुनौती पेश करते हैं. हाल में भी लोकतंत्र को बढ़ावा देने में अमेरिकी विदेश नीति टिकाऊ और सकारात्मक परिवर्तन लाने में नाकाम रही है. मिसाल के तौर, अमेरिका की अफगानिस्तान में दखल नाकाम रही.

ट्रंप प्रशासन के देश में लोकतंत्र को कमतर करने के कार्यों से अमिट प्रभाव पड़ा है. दुनिया भर में अमेरिका की साख को बड़ा झटका लगा है. बाइडन प्रशासन को देश के प्रति सद्भावना बहाल करने के लिए मशक्कत जारी रखनी चाहिए.

सिद्धांतों में आर्थिक युद्ध और विदेश नीति में मूल्य एक बात है, लेकिन उनकी रक्षा के लिए देश जो कार्रवाई करने के लिए तैयार है वह बिल्कुल अलग है. अब तक, यह स्पष्ट हो चुका है कि बाइडन प्रशासन आदर्शवाद की तुलना में व्यावहारिकता की ओर अधिक झुका हुआ है. यह यूक्रेन में ‘नो-फ्लाई जोन' लागू करने को लेकर सबसे उल्लेखनीय रहा है.

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की और पूर्वी यूरोप में अमेरिका के सहयोगियों ने भी बाइडन प्रशासन से यूक्रेन पर ‘नो फ्लाई' जोन लागू करने का आग्रह किया। हालांकि कार्यकारी और विधायी शाखाओं, दोनों ने साफ किया कि वे ‘नो फ्लाई' ज़ोन तभी लागू कर पाएंगे जब नाटो सदस्य देश पर हमला हो.

सैन्य हस्तक्षेप को बढ़ाने की अनिच्छा इस चिंता को दर्शाती है कि इस तरह की कार्रवाई से रूस के साथ सशस्त्र संघर्ष का खतरा बढ़ सकता है, या विश्व युद्ध भी हो सकता है.

बाइडन ने सशस्त्र युद्ध की संभावना को कम करने की कोशिश करते हुए आर्थिक युद्ध का सहारा लिया है, यानी रूस पर आर्थिक पाबंदियां लगाईं. शीत युद्ध के बाद से ही अमेरिका के कई प्रशासनों ने लक्षित देशों की सरकारों के व्यवहार में बदलाव लाने की कोशिश करने के लिए आर्थिक पाबंदियों का सहारा लिया है.

हाइड्रोकार्बन के बड़े निर्यातक रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का दायरा और आकार उल्लेखनीय है, जिस पर अमेरिका के कुछ करीबी सहयोगी बेहद निर्भर हैं.

यह बदलते हुए अर्थशास्त्र का हिस्सा है जिसका इस्तेमाल विदेश संबंधों में किया जाता है.

बहु-क्षेत्रीय प्रतिबद्धताओं को संतुलित करना ::

रूस ने हमला तब किया जब बाइडन प्रशासन ने अपनी बहु प्रतीक्षित हिंद-प्रशांत रणनीति का अनावरण किया. इसका उद्देश्य 21वीं सदी के सबसे अहम रणनीतिक संबंधों का प्रबंधन करना है - जो अमेरिका और चीन के बीच हैं. दरअसल, यूक्रेन की जंग का लेना देना चीन के रूस के साथ रिश्तों से भी है और यह पश्चिम की प्रतिक्रिया से सबक ले सकता है.

भले ही​ अमेरिका, यूरोपीय संघ के साथ, रूस पर प्रतिबंध लगाने और यूक्रेन को सहायता और राहत प्रदान करने में महत्वपूर्ण समन्वय भूमिका निभा रहा है. मगर बाइडन प्रशासन ने संकेत दिया है कि अमेरिका के दीर्घकालिक रणनीतिक हित मुख्य रूप से यूरोप में नहीं हैं.

यही कारण है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सहयोगियों को आश्वस्त करने के साथ-साथ अमेरिका यूरोपीय रक्षा एकीकरण का समर्थन करता रहा है कि उसने अपनी दीर्घकालिक रणनीतिक दृष्टि नहीं खोई है.

शीत युद्ध के दौरान, जहां विरोधी संबंधों और महान शक्ति की राजनीति ने अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की प्रकृति को चिह्नित किया, वहीं अमेरिका को घरेलू आर्थिक सुरक्षा और लोकतांत्रिक नवीनीकरण के साथ अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को संतुलित करने का तरीका खोजना होगा.

शीत युद्ध के विपरीत, उसे जिस तरह के तत्वों और चुनौतियों की जटिलता का निदान करने की जरूत है, उसे देखते हुए यह कार्य बहुत कठिन होगा.

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