यूक्रेन (Ukraine) को लेकर रूस (Russia) का लगातार आक्रामक रुख पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बना हुआ है. इस पूरे विवाद में दो बड़े पेंच हैं, एक यूक्रेन की नाटो (NATO) में शामिल होने की इच्छा और दूसरा यूरोपीय संघ (EU) में शामिल होने का यूक्रेन का सपना. पूर्व सोवियत संघ देश यूक्रेन पर रूस अपना प्रभुत्व अभी तक मानता है और रूस यूक्रेन के नाटो में शामिल होने के सख़्त खिलाफ़ है. अमेरिका (US) जहां आरोप लगाता है कि रूस किसी भी समय यूक्रेन पर आक्रमण कर सकता है तो वहीं रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) का कहना है कि अमेरिका इलाके में तनाव बढ़ा रहा है और यह रूस का अधिकार है कि वो अपनी संप्रभु सीमाओं के भीतर अपनी सेना को कहीं भी तैनात कर सकता है. उधर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की (Volodymyr Zelensky) भी मीडिया से कह चुके हैं कि रूस लंबे समय से यूक्रेन के लिए खतरा बना हुआ है और वो अब इस ख़तरे के साथ जीना सीख गए हैं.
रूस ने यूक्रेन की सीमा के पास एक लाख से अधिक सैनिक तैनात किए हैं, वहीं अमेरिका और नाटो ने भी पूर्वी यूरोप में अपने बलों की तैनाती बढ़ा दी है. अमेरिका ने ब्रिटेन और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सहयोगियों से भी पूर्वी यूरोप में हजारों सैनिक तैनात करने को कहा है.
रूस की तरफ से यूक्रेन पर बढ़ी आक्रामकता के पीछे बड़ी वजह है उसकी नाटो में शामिल होने की इच्छा. अमेरिका समेत पश्चिमी देशों का कहना है कि यूक्रेन का नाटो में शामिल होना ना होना रूस निर्धारित नहीं कर सकता. वहीं रूस ने शर्त रखी है कि अगर नाटो यूक्रेन को गठबंधन में शामिल करने से मना कर देता है तो वह पीछे हट जाएगा, लेकिन अमेरिका पहले ही उसकी यह मांग खारिज कर चुका है.
क्या है नाटो (NATO) ?
द कन्वरसेशन की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन और आठ अन्य यूरोपीय देशों ने मिलकर 1949 में एक सैन्य गठबंधन किया था. इस सैन्य गठबंधन को नाटो कहा जाता है. अब तक इस संगठन में 30 देश शामिल हो चुके हैं.
नाटो संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर काम करता है. नाटो और संयुक्त राष्ट्र के बीच कुछ बातें साझा हैं. ये दोनों ही अंतरराष्ट्रीय संगठन हैं, जो सदस्य देशों को आर्थिक मदद देते हैं. इन दोनों पर ही अमेरिका और पश्चिमी शक्तियों का राजनीतिक प्रभाव है. लेकिन दोनों संगठनों की प्रकृति अलग है. नाटो का काम ज़रूरत पड़ने पर सैन्य सहयोगियों की मदद से युद्ध लड़ना है, जबकि संयुक्त राष्ट्र शांति, रक्षा, राजनीतिक वार्ता और अन्य साधनों के जरिए युद्ध से बचने का काम करता है.
NATO में शामिल क्यों होना चाहता है यूक्रेन ?
यूक्रेन लंबे समय से नाटो का साझेदार है. साल 1992 से ही एक साझेदार के तौर पर नाटो से जुड़ा हुआ है. यूक्रेन को नाटो ने 1997 में यूक्रेन-नाटो आयोग की स्थापना से सुरक्षा चिंताओं पर चर्चा के लिए एक मंच दिया. इससे बिना औपचारिक सदस्यता समझौते के नाटो-यूक्रेन संबंध मजबूत हुए.
क्या यूक्रेन बन सकता है NATO का सदस्य ?
क्लार्कसन विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर एलेस्टेयर कोचो-विलियम्स बताते हैं, यूक्रेन नाटो देशों के समर्थन के करीब है लेकिन जल्द ही यूक्रेन के नाटो में शामिल होने संभावना दिख नहीं रही.
पहला, किसी भी नए देश को नाटो में शामिल करने के लिए सभी नाटो सदस्यों की समहति चाहिए होगी. नाटो सदस्यता के इच्छुक देशों को एक सदस्यता कार्य योजना का पालन करना होता है. इसके लिए देशों को अपनी सुरक्षा और राजनीतिक नीतियों की विस्तृत जानकारी देनी होती है. इस प्रक्रिया को पूरा होने में 20 साल तक लग सकते हैं.
यूक्रेन ने नाटो की सदस्यता कार्य योजना के लिए 2008 में आवेदन दिया था. इसे पुतिन के समर्थक और यूक्रेन के पूर्व राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच के कार्यकाल में 2010 में रोक दिया गया था. रूस के साथ बढ़ते तनाव के बीच यूक्रेन ने नाटो में शामिल होने की योजना को फिर से नई ऊर्जा के साथ आगे बढ़ाया है.
यदि यूक्रेन को नाटो की सदस्यता मिल जाती है, तो उसके और रूस के बीच संघर्ष का खतरा होने पर गठबंधन सदस्य रूस के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध होंगे.
NATO सदस्य बनने पर यूक्रेन का क्या फ़ायदा होगा?
नाटो का सदस्य बनने पर यूक्रेन के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सैन्य समर्थन बढ़ जाएगा, जो रूस की आक्रामकता को रोक सकता है.
हालांकि उसने मानवीय आपात स्थितियों के दौरान अफगानिस्तान जैसे गैर-सदस्य देशों का समर्थन किया है, नाटो किसी गैर-सदस्य देश में सैनिकों को तैनात करने के लिए प्रतिबद्ध नहीं है. नाटो में गैर-सदस्य देशों को समर्थन देने को लेकर स्पष्ट नियम हैं.
नाटो की सदस्यता से यूक्रेन के यूरोपीय संघ में शामिल होने की संभावना भी बढ़ जाएगी. यूक्रेन लंबे समय से यूरोपीय संघ में शामिल होना चाहता है. इससे यूक्रेन अमेरिका के और नज़दीक आएगा और वहां रूस का प्रभाव भी घट सकेगा. लेकिन रूस क्योंकि पूर्व सोवियत संघ के देश यूक्रेन पर अब तक अपना प्रभुत्व समझता है, ऐसे में यूक्रेन को नाटो की सदस्यता मिलने से इलाके में तनाव बढ़ सकता है. रूस ने कहा है कि वह यूक्रेन में नाटो गठबंधन के विस्तार को खतरे के तौर पर लेगा.
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