भारत (India) और मध्य-एशिया (Central Asia) के पांच गणतंत्र देशों के पहले शिखर सम्मेलन (Online Summit) में क्षेत्रीय सुरक्षा, आपसी सहयोग और समृद्धि के कई मुद्दों पर चर्चा हुई. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर हुए इस पहले शिखर सम्मेलन की मेज़बानी भारत ने की. इस दौरान अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान (Taliban) के कब्जे के बाद बनी सुरक्षा स्तिथी पर विशेष ध्यान दिया गया. इस शिखर सम्मेलन में कजाकिस्तान (Kazakhstan) के राष्ट्रपति कासिम जुमरात तोकायेव, उज्बेकिस्तान (Uzbekistan) के राष्ट्रपति शौकत मिर्जियोयेव, ताजकिस्तान (Tajikistan) के राष्ट्रपति इमामअली रहमान, तुर्कमेनिस्तान (Turkmenistan) के राष्ट्रपति गुरबांगुली बर्दीमुहम्मदेवो और किर्गिस्तान ( Kyrgyzstan) के राष्ट्रपति सद्र जापारोप ने भाग लिया.
प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) ने कहा कि भारत और मध्य एशिया के देशों के कूटनीतिक संबंधों ने 30 ‘‘सार्थक वर्ष'' पूरे कर लिए हैं और पिछले तीन दशकों में आपसी सहयोग ने कई सफलताएं भी हासिल की हैं. कजाकिस्तान जहां भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण साझेदार बन गया है, वहीं उज्बेकिस्तान के साथ उनके गृह राज्य गुजरात सहित भारत के विभिन्न राज्यों की सक्रिय भागीदारी भी है.
Addressing the India-Central Asia Summit. https://t.co/HMhScJGI15
— Narendra Modi (@narendramodi) January 27, 2022
जेएनयू में कूटनीति के प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, "यह जो पूरा मध्य-एशिया का इलाका है इसमें पांच गणतंत्र देश हैं. अफगानिस्तान में बढ़ते संकट को लेकर यह देश अहम हैं. क्योंकि इन पांच देशों में से तीन की सीधी सीमा अफगानिस्तान से लगती है. और बहुत से अफगान नागरिक इन देशों में रहते हैं. साथ ही भारत में भी बहुत से अफगान नागरिक रहते हैं, उनके लिए तालमेल बनाने को भी इन देशों की ज़रूरत होगी."
मध्य एशिया में चीन का निवेश और भारत
प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं कि मध्य-एशिया में चीन का करीब 136 बिलियन डॉलर का व्यापार है, 100 बिलियन डॉलर का निवेश है, जबकि इस बाजार में भारत का व्यापार 2 बिलियन डॉलर के आस-पास रहा है. तो क्या हम केवल निवेश के नज़रिए से इन रिश्तों को देखेंगे, शायद नहीं . क्योंकि मध्य-एशियाई देश भी चीन का इतनी तेजी से बढ़ते प्रभाव के बाद पूरी तरह से चीन पर निर्भर हो जाने को लेकर सर्तक हैं. मध्य-एशियाई देश भी देखना चाहते हैं कि क्या भारत के साथ भी नए आयाम बनाए जा सकते हैं? तकनीक, शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में खास तौर से ये देश भारत के साथ जुड़ना चाहते हैं. यह भारत और मध्य एशिया के लिए आपसी रुझान का नया दौर है.
भारत ने 1992 में दी थी पांच मध्य-एशियाई देशों को मान्यता
प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, "मध्य एशियाई देश ऊर्जा का बहुत बड़ा स्त्रोत हैं. विशेषज्ञ यह मानते हैं कि जितना भी अंतर्राष्ट्रीय बाजार में ऊर्जा निर्यात के लिए मुमकिन है, उसमें करीब आधा, करीब 50% केवल चीन और भारत आयात करेंगे. चीन तो पहले से ही इन देशों से अच्छे से जुड़ा हुआ है.चीन का मध्य एशिया में बहुत बड़ा व्यापार और निवेश है. यह भारत और मध्य-एशिया के इन पांच देशों के रिश्तों की 30वीं वर्षगांठ है. 1992 में भारत ने इन देशों को मान्यता दी थी और अपने राजदूतों को वहां भेजा था. लेकिन इसका तत्कालीन महत्व अफगान संकट के मद्देनज़र है."
26 Jan 2022: quoted in South China Morning post story: China's summit, meanwhile, might have been motivated at least in part by a leadership change in Kazakhstan.“Kazakhstan has seen the end of an of pro-Beijing Nazarbayev to Tokayev” Singh said.https://t.co/6pJTbaj3i7
— Swaran Singh (@SwaranSinghJNU) January 26, 2022
पिछले तीस सालों से भारत मध्य एशिया के साथ शिक्षा, स्वास्थ्य, फार्मा, स्पेस , इंफॉर्मेशन, साइबर तकनीक से लेकर, संस्कृति और पर्यटन जैसे बहुत से क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है. लेकिन बहुत तेजी से इन संबंधों को आगे नहीं बढ़ाया जा सका.
30 सालों तक भारत और मध्य-एशिया के संबंध क्यों रहे सुस्त?
प्रोफेसर स्वर्ण सिंह ने इसका कारण बताया. वह कहते हैं, कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान इन मध्य-एशियाई देशों के साथ तेज़ी से भारत के संबंध ना बढ़ पाने की बड़ी भौगोलिक और कूटनीतिक वजहें रहीं.
वह कहते हैं, "पाकिस्तान और अफगानिस्तान से रास्ता होने के कारण भारत को इन देशों तक कनेक्टिविटी में परेशानी रही. दूसरा रास्ता सागर के ज़रिए ईरान से ढूंढने की कोशिश की तो उसमें अमेरिका और ईरान के रिश्तों के कारण अवरोध आ गया. ईरान के चाबाहार पोर्ट पर भारत के निवेश पर अमेरिकी अंकुश रहा. तो, 30 सालों में बहुत सी कोशिशें हुईं और कुछ सफलताएं भी मिलीं. "
मध्य एशिया के साथ रिश्तों में करीबी की अब फिर से कोशिशें की जा रही हैं. अफगानिस्तान भले ही एक तात्कालिक मुद्दा हो लेकर दोनों तरफ से लंबे समय के लिए संबंध बनाने पर ज़ोर है. फिलहाल मध्य-एशिया में रूस का अच्छा प्रभाव है खास तौर से रक्षा और सुरक्षा के क्षेत्र में. चीन का भी वहां अच्छा निवेश है.
प्रोफेसर स्वर्ण सिंह को लगता है कि शायद अब कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान, यह पांच मध्य-एशियाई देश भी चाहते हैं कि रूस और चीन के बीच से आगे निकल कर भारत जैसे दूसरे किसी बड़े देश के साथ रिश्ते बढ़ाए जाएं. वह कहते हैं, "इसी वजह से जितना भारत मध्य-एशिया की ओर हाथ बढ़ा रहा तो उतनी ही दिलचस्पी मध्य-एशियाई देशों की तरफ से भी दिखाई जा रही है."
चीन को मध्य-एशिया में भारत का प्रभाव बढ़ने का डर
भारत का मध्य-एशिया पर प्रभाव बढ़ने के डर से चीन ने भी अचानक मध्य-एशियाई देशों के राष्ट्रअध्यक्षयों साथ शिखर-सम्मेलन किया.
प्रोफेसर स्वर्ण सिंह ने बताया, "चीन ने भारत से दो दिन पहले आनन-फानन में मध्य-एशिया के पांच गणराज्यों के साथ शिखर सम्मेलन किया ताकि भारत के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सके. यह शिखर सम्मेलन पहले से तय नहीं था क्योंकि इन पांचों नेताओं को तो भारत में होना था जो कोरोना के कारण नहीं हो पाए. ऐसे में शायद चीन को लगता है कि भारत के इस सम्मेलन का काफी असर हो सकता है."
मध्य-एशिया में चीन का बड़ा निवेश है ऐसे में क्या भारत मध्य-एशिया में चीन के प्रभाव से आगे बढ़ पाएगा? यह पूछने पर प्रोफेसर स्वर्ण सिंह कहते हैं, "अंतर्राष्ट्रीय संबंधों को केवल निवेश और व्यापार के नज़रिए से ही नहीं देखा जाना चाहिए, इसमें बहुत सी चीजें मायने रखती हैं. चीन की परचेज़िंग पावर भले ही अधिक है लेकिन अतंर्राष्ट्रीय स्तर पर उसकी साख और दोस्ती उतनी बड़ी नहीं है. समाज और लोगों के आपसी रुझान और शंकाएं भी मायने रखती हैं. "
नवंबर 2021 में भारत के सुरक्षा सलाहकार ने अफगानिस्तान के पड़ौसी देशों के सुरक्षा सलाकारों के साथ बैठक की थी कि कैसे क्षेत्रीय सुरक्षा के मामले में एक सोच साझा की जाए. इसके बाद भारत के विदेश मंत्री ने इन पांचों देशों के विदेश मंत्रियों को भारत में बुलाया और एक भारत-सेंट्रल एशिया डायलॉग शुरू हुआ. इसमें 29 पेजों का एक बड़ा घोषणापत्र जारी किया और बताया गया कि मध्य-एशियाई देश और भारत के कितने क्षेत्रों में तालमेल हैं और कैसे दोनों पक्ष एक सी सोच रखते हैं. भारत के गणतंत्र दिवस समारोह पर इन देशों के राष्ट्राध्यक्षों को भारत आना था लेकिन कोरोना महामारी के कारण यह नहीं हो पाया और ये ऑनलाइन शिखर सम्मेलन हुआ.
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