पीएम नरेंद्र मोदी के साथ चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग (फाइल फोटो)
बीजिंग:
चीनी विदेश मंत्री वांग यी की भारत यात्रा से पहले चीन के सरकारी मीडिया ने शुक्रवार को कहा कि एनएसजी में भारत के प्रवेश के लिए दरवाजा ‘‘कस कर बंद नहीं’’ है और उसे दक्षिण चीन सागर पर चीन की चिंताओं को ‘‘पूरी तरह समझना चाहिए.’’
चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने अपनी समीक्षा (कमेंटरी) में भारत और चीन को प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि साझेदार करार देते हुए कहा कि ‘‘चूंकि बीजिंग और नई दिल्ली शीर्ष स्तरीय गहन कूटनीतिक संपर्कों के सीजन में जा रहे हैं जो उनकी साझेदारी को परिभाषित कर सकते हैं, दोनों को अपनी असहमतियों को नियंत्रण में रखने के लिए मिल कर काम करना चाहिए.’’
समीक्षा में कहा गया है, ‘‘और सभी से इतर यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि भारत ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में अपने प्रवेश पर रोक के लिए चीन पर गलत तौर पर आरोप लगाया है.’’ शिन्हुआ ने वस्तुत: चीन की इस अनवरत मांग की तरफ इशारा किया कि वैश्विक परमाणु वाणिज्य का नियंत्रण करने वाले 48 सदस्यीय निकाय में एनपीटी पर दस्तखत अनिवार्य है और कहा, ‘‘अभी तक, परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं करने वाले के एनएसजी सदस्य बनने की कोई मिसाल नहीं है.
एनएसजी का दरवाजा कस कर बंद नहीं है...
परमाणु पदार्थों के वैश्विक प्रवाह की निगरानी करने वाले निकाय के अंदर बहुत से सदस्य किसी गैर-संधि पक्ष को सदस्यता कार्ड थमाने में सावधानी बरतने पर जोर देते हैं.’’ शिन्हुआ ने अपनी समीक्षा में कहा, ‘‘बहरहाल, नई दिल्ली को अपना दिल छोटा नहीं करना चाहिए क्योंकि एनएसजी का दरवाजा कस कर बंद नहीं है.’’ जब से एनएसजी में भारत के प्रवेश के मुद्दे पर दोनों देशों ने मतभेद जताया है यह पहला मौका है जब चीन ने इस तरह का जिक्र किया है. समीक्षा में कहा गया है, ‘‘लेकिन किसी भावी चर्चा को एक अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार तंत्र की रक्षा पर आधारित होना चाहिए जिसमें खुद भारत का भी बड़ा हित जुड़ा हुआ है.’’
दक्षिण चीन सागर पर बचाव की मुद्रा में है चीन
बहरहाल, चीनी समाचार एजेंसी की समीक्षा में यह जिक्र नहीं है कि शुक्रवार से भारत की तीन दिन की यात्रा शुरू करने वाले वांग एनएसजी में बहुमत का समर्थन हासिल होने के बावजूद एनएसजी सदस्यता पाने में अपनी नाकामी पर भारत की निराशा दूर करने के लिए क्या कोई नए प्रस्ताव ला रहे हैं. समीक्षा में भारत से अपेक्षा की गई है कि वह दक्षिण चीन सागर पर चीन की चिंताओं को समझे जहां क्षेत्र पर विस्तारवादी दावे को खारिज करने वाले अंतरराष्ट्रीय अधिकरण के फैसले के बाद बीजिंग खास कर बचाव की मुद्रा में है.
फैसले में जीत हासिल करने वाले फिलीपीन के साथ ही अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने इस फैसले को बाध्यकारी बताते हुए चीन से उसे लागू करने को कहा है. अधिकरण की कार्यवाहियों का बहिष्कार करने वाले चीन ने इसके फैसले को अवैध और निष्प्रभावी करार दिया है. चीनी समाचार एजेंसी की समीक्षा में मास्को में रूस, भारत और चीन (आरआईसी) के विदेश मंत्रियों की हाल की बैठक में जारी संयुक्त बयान की चर्चा करते हुए कहा गया है, ‘‘भारत सहमत हुआ है कि दक्षिण चीन सागर के मुद्दे का समाधान संबंधित पक्षों के बीच बातचीत से होना चाहिए.’’
उम्मीद है कि भारत चीन की चिंताओं को समझेगा
समीक्षा में कहा गया है, ‘‘चूंकि दक्षिण चीन सागर का परस्पर संबंध चीन के अहम राष्ट्रीय हितों से है, उम्मीद की जाती है कि भारत बीजिंग की चिंताओं को पूरी तरह समझेगा, ओर एशिया-प्रशांत में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने में रचनात्मक भूमिका निभाना जारी रखेगा.’’ वांग की भारत यात्रा चीन के हांगझोउ शहर में समूह 20 के शिखर सम्मेलन से पहले हो रही है. शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हिस्सा लेने वाले हैं.
दक्षिण चीन सागर का जिक्र न करे जी 20
इससे पहले सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कहा गया था कि भारत को दक्षिण चीन सागर की बहस में ‘‘गैर जरूरी तौर पर उलझने’’ से बचना चाहिए ताकि इसे द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने वाला ‘‘एक और कारक’’ बनने से बचाया जा सके. चीन कह रहा है कि जी 20 को दक्षिण चीन सागर का कोई जिक्र करने से परहेज करना चाहिए और इसका समाधान बाहरी लोगों से नहीं बल्कि सीधे संबंधित पक्ष से होना चाहिए. फिलीपीन के अलावा वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान भी दक्षिण चीन सागर क्षेत्र पर अपना दावा पेश कर रहे हैं.
जहां मोदी समूह 20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले हैं, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग अक्टूबर में गोवा में होने वाले ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले हैं. शिन्हुआ की समीक्षा में कहा गया है, ‘‘अनेक मानते हैं कि (वांग की) यात्रा दुनिया के दो अग्रणी विकासशील देशों के बीच के रिश्तों के तल्ख बिंदुओं को दूर करने और आने वाले महीनों में होने वाले दो अहम शिखर सम्मेलनों, चीन में समूह 20 की बैठक और भारत में ब्रिक्स बैठक से पहले आम सहमति बनाने में मदद करने पर लक्षित है.’’
चीन और भारत प्रतिद्वंद्वी नहीं, साझेदार हैं
समीक्षा में कहा गया है, ‘‘चीन और भारत प्रतिद्वंद्वी नहीं, साझेदार हैं, और जब तक वे अपने मतभेदों को ईमानदारी तथा राजनीतिक दक्षता से उचित तरह से निबटाते रहेंगे, तब तक द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत होते रहेंगे जबकि दोनों देश दुनिया भर में अच्छाई की ताकत बनेंगे.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘इसके साथ ही, दुनिया की दो सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं को अपने द्विपक्षीय रिश्तों का सकारात्मक आवेग बरकरार रखना चाहिए जिसे हाल के वर्षों में बनाए रखा गया है. उन्हें खास तौर पर व्यापार और वाणिज्य में अपना सहयोग प्रगाढ़ करना चाहएि और निकटतर साझेदारी बनानी चाहिए.’’
समीक्षा में यह भी कहा गया है, ‘‘विश्व अर्थव्यवस्था की हालत में कमजोर सुधार के समय में दोनों देशों को कारोबारी संरक्षणवाद को रोकने के लिए और दुनिया की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए दो प्रमुख शिखर सम्मेलनों तथा उससे आगे भी एक साथ आना चाहिए.’’ समीक्षा में कहा गया है, ‘‘प्रमुख उभरते बाजार के रूप में दोनों देश हाथ में हाथ डाल कर साथ खड़े हो कर विकासशील देशों के लिए मजबूत आवाज बन सकते हैं और वैश्विक आर्थिक प्रशासनिक प्रणाली को ज्यादा ठीक और ज्यादा न्यायोचित बना सकते हैं.’’
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
चीनी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने अपनी समीक्षा (कमेंटरी) में भारत और चीन को प्रतिस्पर्धी नहीं बल्कि साझेदार करार देते हुए कहा कि ‘‘चूंकि बीजिंग और नई दिल्ली शीर्ष स्तरीय गहन कूटनीतिक संपर्कों के सीजन में जा रहे हैं जो उनकी साझेदारी को परिभाषित कर सकते हैं, दोनों को अपनी असहमतियों को नियंत्रण में रखने के लिए मिल कर काम करना चाहिए.’’
समीक्षा में कहा गया है, ‘‘और सभी से इतर यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि भारत ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में अपने प्रवेश पर रोक के लिए चीन पर गलत तौर पर आरोप लगाया है.’’ शिन्हुआ ने वस्तुत: चीन की इस अनवरत मांग की तरफ इशारा किया कि वैश्विक परमाणु वाणिज्य का नियंत्रण करने वाले 48 सदस्यीय निकाय में एनपीटी पर दस्तखत अनिवार्य है और कहा, ‘‘अभी तक, परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं करने वाले के एनएसजी सदस्य बनने की कोई मिसाल नहीं है.
एनएसजी का दरवाजा कस कर बंद नहीं है...
परमाणु पदार्थों के वैश्विक प्रवाह की निगरानी करने वाले निकाय के अंदर बहुत से सदस्य किसी गैर-संधि पक्ष को सदस्यता कार्ड थमाने में सावधानी बरतने पर जोर देते हैं.’’ शिन्हुआ ने अपनी समीक्षा में कहा, ‘‘बहरहाल, नई दिल्ली को अपना दिल छोटा नहीं करना चाहिए क्योंकि एनएसजी का दरवाजा कस कर बंद नहीं है.’’ जब से एनएसजी में भारत के प्रवेश के मुद्दे पर दोनों देशों ने मतभेद जताया है यह पहला मौका है जब चीन ने इस तरह का जिक्र किया है. समीक्षा में कहा गया है, ‘‘लेकिन किसी भावी चर्चा को एक अंतरराष्ट्रीय परमाणु अप्रसार तंत्र की रक्षा पर आधारित होना चाहिए जिसमें खुद भारत का भी बड़ा हित जुड़ा हुआ है.’’
दक्षिण चीन सागर पर बचाव की मुद्रा में है चीन
बहरहाल, चीनी समाचार एजेंसी की समीक्षा में यह जिक्र नहीं है कि शुक्रवार से भारत की तीन दिन की यात्रा शुरू करने वाले वांग एनएसजी में बहुमत का समर्थन हासिल होने के बावजूद एनएसजी सदस्यता पाने में अपनी नाकामी पर भारत की निराशा दूर करने के लिए क्या कोई नए प्रस्ताव ला रहे हैं. समीक्षा में भारत से अपेक्षा की गई है कि वह दक्षिण चीन सागर पर चीन की चिंताओं को समझे जहां क्षेत्र पर विस्तारवादी दावे को खारिज करने वाले अंतरराष्ट्रीय अधिकरण के फैसले के बाद बीजिंग खास कर बचाव की मुद्रा में है.
फैसले में जीत हासिल करने वाले फिलीपीन के साथ ही अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने इस फैसले को बाध्यकारी बताते हुए चीन से उसे लागू करने को कहा है. अधिकरण की कार्यवाहियों का बहिष्कार करने वाले चीन ने इसके फैसले को अवैध और निष्प्रभावी करार दिया है. चीनी समाचार एजेंसी की समीक्षा में मास्को में रूस, भारत और चीन (आरआईसी) के विदेश मंत्रियों की हाल की बैठक में जारी संयुक्त बयान की चर्चा करते हुए कहा गया है, ‘‘भारत सहमत हुआ है कि दक्षिण चीन सागर के मुद्दे का समाधान संबंधित पक्षों के बीच बातचीत से होना चाहिए.’’
उम्मीद है कि भारत चीन की चिंताओं को समझेगा
समीक्षा में कहा गया है, ‘‘चूंकि दक्षिण चीन सागर का परस्पर संबंध चीन के अहम राष्ट्रीय हितों से है, उम्मीद की जाती है कि भारत बीजिंग की चिंताओं को पूरी तरह समझेगा, ओर एशिया-प्रशांत में शांति एवं स्थिरता बनाए रखने में रचनात्मक भूमिका निभाना जारी रखेगा.’’ वांग की भारत यात्रा चीन के हांगझोउ शहर में समूह 20 के शिखर सम्मेलन से पहले हो रही है. शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी हिस्सा लेने वाले हैं.
दक्षिण चीन सागर का जिक्र न करे जी 20
इससे पहले सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कहा गया था कि भारत को दक्षिण चीन सागर की बहस में ‘‘गैर जरूरी तौर पर उलझने’’ से बचना चाहिए ताकि इसे द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करने वाला ‘‘एक और कारक’’ बनने से बचाया जा सके. चीन कह रहा है कि जी 20 को दक्षिण चीन सागर का कोई जिक्र करने से परहेज करना चाहिए और इसका समाधान बाहरी लोगों से नहीं बल्कि सीधे संबंधित पक्ष से होना चाहिए. फिलीपीन के अलावा वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान भी दक्षिण चीन सागर क्षेत्र पर अपना दावा पेश कर रहे हैं.
जहां मोदी समूह 20 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले हैं, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग अक्टूबर में गोवा में होने वाले ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले हैं. शिन्हुआ की समीक्षा में कहा गया है, ‘‘अनेक मानते हैं कि (वांग की) यात्रा दुनिया के दो अग्रणी विकासशील देशों के बीच के रिश्तों के तल्ख बिंदुओं को दूर करने और आने वाले महीनों में होने वाले दो अहम शिखर सम्मेलनों, चीन में समूह 20 की बैठक और भारत में ब्रिक्स बैठक से पहले आम सहमति बनाने में मदद करने पर लक्षित है.’’
चीन और भारत प्रतिद्वंद्वी नहीं, साझेदार हैं
समीक्षा में कहा गया है, ‘‘चीन और भारत प्रतिद्वंद्वी नहीं, साझेदार हैं, और जब तक वे अपने मतभेदों को ईमानदारी तथा राजनीतिक दक्षता से उचित तरह से निबटाते रहेंगे, तब तक द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत होते रहेंगे जबकि दोनों देश दुनिया भर में अच्छाई की ताकत बनेंगे.’’ इसमें कहा गया है, ‘‘इसके साथ ही, दुनिया की दो सबसे तेज रफ्तार से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्थाओं को अपने द्विपक्षीय रिश्तों का सकारात्मक आवेग बरकरार रखना चाहिए जिसे हाल के वर्षों में बनाए रखा गया है. उन्हें खास तौर पर व्यापार और वाणिज्य में अपना सहयोग प्रगाढ़ करना चाहएि और निकटतर साझेदारी बनानी चाहिए.’’
समीक्षा में यह भी कहा गया है, ‘‘विश्व अर्थव्यवस्था की हालत में कमजोर सुधार के समय में दोनों देशों को कारोबारी संरक्षणवाद को रोकने के लिए और दुनिया की अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए दो प्रमुख शिखर सम्मेलनों तथा उससे आगे भी एक साथ आना चाहिए.’’ समीक्षा में कहा गया है, ‘‘प्रमुख उभरते बाजार के रूप में दोनों देश हाथ में हाथ डाल कर साथ खड़े हो कर विकासशील देशों के लिए मजबूत आवाज बन सकते हैं और वैश्विक आर्थिक प्रशासनिक प्रणाली को ज्यादा ठीक और ज्यादा न्यायोचित बना सकते हैं.’’
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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