अमेरिका की तकनीक पर चीन ने बनाया सुपर-कैरियर; भारतीय नौसेना के लिए कितना बड़ा सिरदर्द?

Naval strength of India and China : केंद्र सरकार आईएनएस विक्रांत के समान आकार के एक छोटे विमानवाहक पोत को हरी झंडी देने पर विचार कर रही है. सरकार विक्रांत के लिए 26 राफेल-एम लड़ाकू विमान खरीदने के लिए फ्रांस के डसॉल्ट के साथ भी बातचीत कर रही है.

अमेरिका की तकनीक पर चीन ने बनाया सुपर-कैरियर; भारतीय नौसेना के लिए कितना बड़ा सिरदर्द?

Naval strength of India and China : फ़ुज़ियान चीन द्वारा निर्मित अपनी श्रेणी का सबसे उन्नत युद्धपोत है.

नई दिल्ली:

Naval strength of India and China : चीन का पहला सुपर-कैरियर फ़ुज़ियान (China's first super-carrier Fujian) 80,000 टन का युद्धपोत है. यह अपना समुद्री परीक्षण पूरा करने के बाद बंदरगाह पर लौट आया है. यह चीन द्वारा निर्मित अपनी श्रेणी का सबसे उन्नत युद्धपोत है. फ़ुज़ियान या टाइप 003 श्रेणी चीन का पहला स्वदेशी विमान वाहक डिजाइन है. यह इंटीग्रेटेड प्रपल्सन सिस्टम (integrated propulsion system) और इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापुल्ट (electromagnetic catapults) का उपयोग करने वाला चीन का पहला विमान वाहक पोत भी है. इलेक्ट्रोमैग्नेटिक कैटापोल्ट पारंपरिक तौर से भाप से चलने वाले कैटापोल्ट की जगह नई टेक्नोलॉजी है. इससे फ़ुज़ियान के डेक से विमान को सटीक रूप से लॉन्च करना आसान हो जाएगा. दुनिया में सिर्फ अमेरिकी नौसेना ही अभी इस तकनीक का इस्तेमाल करती है.

मई 2024 तक, नौ देश फ्रंटलाइन विमानवाहक पोत संचालित करते हैं. ये देश हैं संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, इटली, यूनाइटेड किंगडम, भारत, जापान, फ्रांस, स्पेन और रूस. संयुक्त राज्य अमेरिका 11 परिचालन वाहकों के साथ सबसे आगे है, जो किसी भी अन्य देश की तुलना में काफी अधिक है.
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फ़ुज़ियान पर चीन अब जल्द ही अपने विमानों का परीक्षण शुरू करेगा. इस परीक्षण को पूरा करने में करीब एक साल का समय लग सकता है. इसके बाद ही इस विमानवाहक पोत को ऑपरेशनल घोषित किया जा सकता है. इस विध्वंसक विमानवाहक पोत को विकसित कर चीन अपनी नौसैनिक क्षमताओं को बढ़ाकर भारत-प्रशांत क्षेत्र में प्रभुत्व बढ़ाना चाहता है. चीन का पहला विमानवाहक पोत लियाओनिंग (Liaoning) मूल रूप से सोवियत काल का जहाज था. 1998 में यूक्रेन से इसे चीन ने खरीदा था. उस समय यह विमानवाहक पोत बेकार पड़ा हुआ था. बाद में चीन ने इसे नये सिरे से काम करने लायक बनाया और 2012 में पीपुल्स लिबरेशन आर्मी नेवी (पीएलएएन) में शामिल किया. लियाओनिंग का उपयोग मुख्य रूप से प्रशिक्षण उद्देश्यों और चीन की बढ़ती सैन्य स्थिति के प्रतीक के रूप में किया जाता है.

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शेंडोंग (Shandong) चीन का दूसरा विमानवाहक पोत है. यह चीन में बनने वाला पहला विमानवाहक पोत था. इसे अप्रैल 2017 में लॉन्च किया गया था और दिसंबर 2019 में सेवा में शामिल किया गया. लियाओनिंग के एक आधुनिक संस्करण में शेनयांग जे-15 (Shenyang J-15) 'फ्लाइंग शार्क' फाइटर की तैनाती देखी गई है. 'फ्लाइंग शार्क' फाइटर रूसी-डिज़ाइन किए गए सुखोई 33 फाइटर जेट का नकल है. इसके अतिरिक्त समुंदर में चीन अपना वर्चस्व दिखाने के लिए J-35 विकसित कर रहा है. यह विमानवाहक पोत से उड़ान भरने वाल स्टील्थ लड़ाकू विमान होगा. J-35 को चीन के नवीनतम विमानवाहक पोत फ़ुज़ियान से संचालित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है. 

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भारतीय नौसेना में वर्तमान में दो विमानवाहक पोत हैं. वह आईएनएस विक्रमादित्य (INS Vikramaditya) और आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) का संचालन करती है. भारतीय नौसेना एक दशक से भी अधिक समय से एक बड़ा और अधिक सक्षम विमानवाहक पोत चाहती थी, लेकिन विकास, निर्माण और संचालन की अत्यधिक लागत के कारण अभी तक की सरकारों ने इस प्रोजेक्ट को अस्वीकार कर दिया. रिपोर्टों के मुताबिक, फ़ुज़ियान श्रेणी के एक विमानवाहक पोत को बनाने में भारत को 7 बिलियन डॉलर (56,000 करोड़ रुपये) की लागत आएगी. जहाज पर नए-निर्मित लड़ाकू विमानों की लागत कुल $8 बिलियन (65,920 करोड़ रुपये) हो सकती है. फिलहाल, केंद्र सरकार आईएनएस विक्रांत के समान आकार के एक छोटे विमानवाहक पोत को हरी झंडी देने पर विचार कर रही है. सरकार विक्रांत के लिए 8 बिलियन डॉलर (65,920 करोड़ रुपये) की अनुमानित लागत पर 26 राफेल-एम लड़ाकू विमान खरीदने के लिए फ्रांस के डसॉल्ट के साथ भी बातचीत कर रही है. राफेल-एम विक्रांत पर तैनात पुराने और कम विश्वसनीय रूसी निर्मित मिग-29K जेट की जगह लेगा.