- पाकिस्तान ने असीम मुनीर को देश का पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएफ) नियुक्त किया है.
- संविधान के विवादास्पद 27वें संशोधन से सीडीएफ का पद बना और सीजेसीएससी का अध्यक्ष पद खत्म हो गया.
- सीडीएफ का तीनों सेनाओं और परमाणु हथियार प्रणाली का प्रभारी बनाया गया है. उनका इन पर पूरा नियंत्रण होगा.
पाकिस्तान में कुछ अलग ही गेम चल रहा है. एक तरफ जेल में बंद इमरान खान का कुछ भी अता पता नहीं है. उनकी स्थिति पर लगातार सस्पेंस बना हुआ है. सोशल मीडिया पर तो उनकी हत्या किए जाने की खबरें तेजी से फैल रही हैं. समर्थक बुरी तरह से रो रहे हैं. इस बीच आर्मी चीफ रहे आसिम मुनीर की ताकत और बढ़ गई है. आसिम मुनीर की ताकत का अंदाजा इसी बात से लगा लीजिए कि न सिर्फ देश की तीनों सेनाओं बल्कि परमाणु हथियारों पर भी उनका नियंत्रण होगा. आसिम मुनीर को ये बेसुमार पावर मिली कैसे, डिटेल में जानें.
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पाक सेना को मिल गई सर्वोच्च पावर
पाकिस्तानी सेना तख्तापलट कर सत्ता हथियाने में माहिर रही है. ये बात दुनिया में किसी से भी छिपी नहीं है. वह हमेशा यही चाहती है कि उनके पसंदीदा लोग सत्ता में बने रहें. इस बार बिना ये सब किए ही पाक सेना के हाथ में सर्वोच्च पावर आ गई है. असीम मुनीर अब पाकिस्तान के आर्मी चीफ से पहले CDF बन गए हैं. गुरुवार को उन्होंने पाकिस्तान के पहले चीफ ऑफ डिफेंस फोर्स सीडीएफ के रूप में कार्यभार संभाला. आसिम अब 5 साल के लिए जल, थल और वायु, तीनों सेनाओं के प्रमुख होंगे. सीडीएफ का पद पाकिस्तानी संविधान के विवादास्पद 27वें संशोधन के जरिए बना है.
खत्म हो गया CJCSC का अध्यक्ष पद
1 नवंबर को सीनेट की तरफ से पारित इन संशोधनों ने तीनों सेनाओं में सबसे वरिष्ठ पद, ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी (सीजेसीएससी) के अध्यक्ष पद को खत्म कर दिया. इस पद को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान की हार के बाद पूर्व पीएम जुल्फिकार अली भुट्टो ने 1976 में बनाया था. पाकिस्तान के वर्तमान सीजेसीएससी, जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा के रिटायर होते ही देश के रक्षा ढांचे में इस पद की दशकों पुरानी मौजूदगी खत्म हो गई.
पाकिस्तान की सत्ता पर सेना का गहरा प्रभाव
24 करोड़ की आबादी वाला पाकिस्तान 1947 में स्थापना के बाद से ही नागरिक और सैन्य शासन के बीच उतार-चढ़ाव से गुजरता रहा है. परवेज़ मुशर्रफ़ पाकिस्तान में खुले तौर पर शासन करने वाले अंतिम सैन्य नेता थे, उन्होंने 1999 में तख्तापलट के ज़रिए सत्ता हथियाई थी और 2008 तक राष्ट्रपति रहे. इसके बाद में पाकिस्तान में चुना हुआ नेता ही सत्ता पर काबिज रहा है.
ये कहना गलत नहीं होगा कि पाकिस्तान के राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों पर सेना का गहरा प्रभाव है. 27वें संशोधन ने बैलैंस को सेना की तरफ झुका दिया. अब आर्मी चीफ को अन्य दो सेनाओं के प्रमुखों से ऊपर उठाकर देश की परमाणु हथियार सिस्टम का इकलौता प्रभारी बना दिया गया है. तीनों सेनाओं का पूरा नियंत्रण अब राष्ट्रपति और कैबिनेट से सीडीएफ को सौंप दिया गया है.
असीम मुनीर की नई पावर के बारे में जानें
आसिम मुनीर को नया पद मिलते ही उनका कर्यकाल कम से कम 2030 तक बढ़ गया है. वैसे उनको गुरुवार को ही रिटायर होना था. लेकिन पिछले साल हुए एक संशोधन की वजह से सेना प्रमुखों का कार्यकाल तीन से बढ़ाकर पांच साल हो गया, जिससे उनकी नियमित रिटायरमेंट की तारीख 27 नवंबर 2027 हो गई. अब, वह नए पद पर 2030 तक रहेंगे, यानी कि पांच साल का नया कार्यकाल पूरा करेंगे.
इन बदलावों की वजह से आसिम मुनीर को देश के राष्ट्रपति के बराबर कानूनी सुरक्षा भी मिली है. राष्ट्रपति की तरह, फील्ड मार्शल को भी किसी भी कानूनी मुकदमे से आजीवन छूट दी जाएगी. यह सुरक्षा वायु सेना और नौसेना प्रमुखों को भी दी गई है. इस कार्यकाल को पूरा करने के बाद अगर मुनीर फिर से ये पद चाहते हैं, तो इसकी संभावना कम ही है कि उनसे मना कर दिया जाए. क्यों कि उनके पास शक्तियां तो पहले से ही हैं.
CDF मुनीर के पास होंगे ये भी अधिकार
इस संशोधन से सेना पर सरकार की निगरानी भी कम हो गई है. पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक, सीडीएफ के पास अब उप-सेना प्रमुख (वीसीओएएस) के पद पर नियुक्ति की सिफारिश करने का अधिकार होगा, बाद में जिसे संघीय सरकार द्वारा अधिकृत किया जाएगा.
सेना अब राष्ट्रीय सामरिक कमान (एनएससी) प्रमुख के चयन में भी अहम भूमिका निभाएगी. एनएससी इस्लामाबाद के परमाणु शस्त्रागार की देखरेख करती है. पता ये भी चला है कि कमांडर की नियुक्ति भी सीडीएफ की सलाह पर कार्यपालिका द्वारा सेना से की जाएगी.
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