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This Article is From Dec 21, 2015

नेपाल में मधेसियों की मांगों के आगे झुकी सरकार, संविधान में करेगी संशोधन

नेपाल में मधेसियों की मांगों के आगे झुकी सरकार, संविधान में करेगी संशोधन
नेपाल सीमा के बाहर खड़े ट्रकों की फाइल फोटो
काठमांडू: नेपाल सरकार ने आंदोलनरत मधेसियों की मांगों के आगे झुकते हुए अपने नए संविधान में संशोधन करने का फ़ैसला लिया है। सरकार के इस फैसले को अनुपातिक प्रतिनिधित्व एवं निर्वाचनक्षेत्र परिसीमन से जुड़े मधेसियों की दो अहम मांगों का समाधान करने के लिए उठाया गया कदम बताया जा रहा है। नेपाल सरकार के इस फैसले का भारत द्वारा स्वागत किए जाने की संभावना है।

नेपाली मंत्रिमंडल की रविवार रात सिंहदरबार में हुई आपात बैठक में यह फैसला किया गया। बैठक में एक राजनीतिक प्रणाली पर भी सहमति बनी जो अपने गठन के तीन महीने के अंदर प्रस्तावित प्रांतीय सीमाओं को लेकर विवाद के समाधान के लिए सुझाव देगा।

बैठक में नए संविधान में संशोधन से जुड़े उस विधेयक के साथ आगे बढ़ने का निर्णय किया गया जो संसद में पहले ही पेश किया जा चुका है। मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उद्योगमंत्री सोम प्रसाद पांडे ने संवाददाताओं से कहा, 'इस विधेयक से विभिन्न सरकारी संगठनों में अनुपातिक समग्र प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हुआ है, जिसकी आंदोलनकारी दलों ने मांग की थी। उसमें जनसंख्या के आधार पर निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन का भी प्रस्ताव भी रखा गया है।' राजनीतिक प्रणाली पर उन्होंने कहा कि यह 'यह अपने गठन के तीन माह के भीतर प्रस्तावित प्रांतीय सीमाओं को लेकर विवाद के समाधान का हल सुझाएगी।'

मधेसियों के आंदोलनरत राजनीतिक दल नए संविधान में प्रस्तावित सात प्रांतीय मॉडल का चार महीने से विरोध करते आ रहे हैं, क्योंकि इससे उनके पुरखों के होमलैंड का इस तरह विभाजन होगा कि वे अपने ही क्षेत्र में राजनीतिक रूप से हाशिये पर पहुंच जाएंगे। उन्होंने विरोध स्वरूप भारत के साथ लगती सीमा व्यापार मार्गों को बंद कर रखा है, जिससे देश में जरूरी वस्तुओं और दवाइयों की भारी किल्लत पैदा हो गई है।

भारतीय मूल के मधेसियों का आंदोलन अगस्त से ही जारी है, जिसमें कम से कम 50 लोगों की जान जा चुकी है। नेपाल की जनंसख्या में मधेसी 52 फीसदी हैं। नेपाल मंत्रिमंडल के इस फैसले का भारत द्वारा स्वागत किए जाने की संभावना है, क्योंकि भारत नेपाल सरकार से अपनी राजनीतिक समस्याओं का हल करने तथा 20 सितंबर को अंगीकृत संविधान की व्यापक स्वीकार्यर्ता का आह्वान करता रहा है।

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