बांग्लादेश में शेख हसीना के तख्तापलट के बाद गुरुवार को अंतरिम सरकार का गठन हो गया. नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के प्रमुख की शपथ ले ली. अंतरिम सरकार में 16 सदस्य शामिल किए गए हैं. इनमें से 13 सदस्यों को भी राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन ने शपथ दिलाई. अंतरिम सरकार बनने के बाद अब बांग्लादेश कौन सा रास्ता अख्तियार करेगा, भारत समेत पूरी दुनिया की निगाहें इस पर टिकी हैं. 'नोतून बांग्ला' को रिझाने में चीन, पाकिस्तान और अमेरिका भी जुट गए हैं. आइए समझते हैं तख्तापलट के बाद यूनुस की लीडरशिप में बांग्लादेश का रूख क्या होगा? भारत के लिए क्यों शेख हसीना और मोहम्मद यूनुस दोनों को खुश रखना जरूरी है:-
मोहम्मद यूनुस जाने-माने अर्थशास्री, बैंकर और सोशल वर्कर हैं. वो लोकतंत्र की राह पर चलते हुए विकास की अहमियत को समझते हैं. इस टारगेट को पूरा करने के लिए वो भारत के महत्व को भी बखूबी जानते हैं. उन्होंने भारत के साथ काम करने की इच्छा भी जताई है. अंतरिम सरकार के प्रमुख बनने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मोहम्मद यूनुस को बधाई देते हुए बांग्लादेश के साथ सहयोग की बात कह दी है.
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ऐसे में पीएम मोदी की पहल के बाद बदले हालात के बावजूद भारत-बांग्लादेश के रिश्तों की गरमाहट बने रहने की उम्मीदें बरकरार हैं. क्योंकि जिस तरह मोहम्मद यूनुस के समर्थन में खड़ीं बंगाल नेशनलिस्ट पार्टी (BNP) की मुखिया और पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र की बात कर रही हैं, उससे लगता है कि बांग्लादेश भटकाव का रास्ता इख्तियार नहीं करेगा.
'नोतून बांग्ला' से क्या कुछ बदलेगा?
बांग्लादेश की राजनीति पिछले तीन दशक से दो राजनीतिक धुरी पर घूम रही थी. एक तरफ बांग्लादेश आवामी लीग की शेख हसीना थीं. दूसरी तरफ बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की खालिदा जिया. चाहे पाकिस्तान हो या चीन, दोनों से शेख हसीना के अच्छे संबंध नहीं थे. लेकिन खालिदा जिया के इन दोनों देशों से अच्छे रिश्ते हैं. उसी तरह अमेरिका के साथ भी शेख हसीना के संबंधों में मिठास नहीं थी. हालांकि, खालिदा जिया भी बहुत करीबी नहीं रहीं. जबकि, बांग्लादेश में कट्टरपंथी ताकतों को शेख हसीना से नाराजगी थी, लेकिन खालिदा जिया के साथ उनके रिश्ते अच्छे हैं.
यूनुस की भारत से है नाराजगी
वैसे मोहम्मद यूनुस की भारत से एक नाराजगी भी है. ये नाराजगी शेख हसीना को लेकर है कि उन्हें पनाह क्यों दी गई. यूनुस ने एक इंटरव्यू में इसका जिक्र भी किया है. इंटरव्यू में मोहम्मद यूनुस ने कहा, "मैंने हमेशा कहा है कि भारत के पास बांग्लादेश का सर्वश्रेष्ठ मित्र बनने की पूरी-पूरी संभावनाएं हैं. लेकिन भारत, बांग्लादेश पर फोकस करने के बजाए सिर्फ एक शख्स पर फोकस कर रहा है. भारत का संबंध सिर्फ एक ही शख्स से है और वह शेख हसीना हैं. इस वजह से बांग्लादेश के लोग भारत से नाराज हैं, क्योंकि वह ऐसे शख्स का समर्थन कर रहा है, जिसने बांग्लादेश को बर्बाद कर दिया है."
यूनुस के साथ भारत को जोड़ने वाली 3 कड़ियां
मोहम्मद यूनुस के साथ भी भारत को जोड़ने वाली 3 अहम कड़ियां हैं. पहला- भारत का शेख मुजीबुर्रहमान के प्रति सम्मान और मुजीब के लिए वही सम्मान यूनुस के भी दिल में है.
दूसरा- भारत के साथ आर्थिक रिश्तों की अहमियत को मोहम्मद यूनुस एक जमीनी अर्थशास्त्री होने के नाते दूसरों की तुलना में बेहतर समझते हैं.
तीसरा- अमेरिका के साथ भारत और यूनुस दोनों के मजबूत रिश्ते हैं. मोहम्मद यूनुस को अमेरिका समर्थक माना जाता है.
इसीलिए बांग्लादेश में अंतरिम सरकार की बागडोर यूनुस के हाथों में आने के बाद ये माना जा रहा है कि इसमें अमेरिका का भी समर्थन है. यूनुस के जरिए परदे के पीछे से बांग्लादेश की पावर गैलरी में अमेरिका अपनी एंट्री करने में कामयाब हो गया है.
अतंरिम सरकार के चीफ को जानिए
चटगांव के एक जौहरी हाजी मोहम्मद सौदागर के घर पैदा हुए मोहम्मद यूनुस ने ढाका यूनिवर्सिटी से शुरुआती पढ़ाई की. फिर आगे की पढ़ाई के लिए वो अमेरिका चले गए. वहां से पीएचडी की और वहीं पढ़ाने लगे. बांग्लादेश बनने के बाद वो देश लौटे. कुछ समय बाद चिटगांव यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र विभाग के प्रमुख बन गए. देश की गरीबी देखकर वो व्यावहारिक अर्थशास्त्र में लग गए, जिसके तहत 1983 में ग्रामीण बैंक की स्थापना की.गरीबों के बैंकर वाली पहचान के कारण उन्हें 2006 में शांति का नोबेल पुरस्कार मिला.
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शेख हसीना के देश छोड़ने पर मोहम्मद यूनुस ने कहा, "यह एक ऐतिहासिक घटना है. एक नोबेल पुरस्कार विजेता पर हेराफेरी, धोखाधड़ी और मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया गया है. आरोप सिर्फ मुझ पर नहीं हैं. हममें से कुल सात लोगों को आरोपी बनाया गया. इन लोगों ने पूरी जिंदगी गरीब लोगों के लिए कड़ी मेहनत की है. वे सिर्फ कर्मचारी नहीं थे. उन्होंने इस उद्देश्य के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. इन लोगों पर भी यही आरोप लगाए गए."
शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद बांग्लादेश की बागडोर मोहम्मद युनूस को सौंपी गई है...लेकिन अहम बात ये है कि जिस सरकार की अगुवाई वो कर रहे हैं वो एक अंतरिम सरकार है...चुनाव के बाद निज़ाम फिर से बदल सकता है....क्या इसका कोई प्रभाव भारत-बांग्लादेश के रिश्तों पर पड़ेगा....अहम बात ये है कि भारत और बांग्लादेश के रिश्ते कई धागों से बंधे हुए हैं...इनमें एक डोर इतिहास की है...एक डोर व्यापार की है और एक डोर भूगोल की है....लिहाज़ा भारत की अनदेखी शायद ही बांग्लादेश की कोई सरकार करे...
बांग्लादेश के लिए भारत की अहमियत क्यों बनी रहेगी?
बांग्लादेश पर चीन और पाकिस्तान से लेकर अमेरिका तक की नजर है, लेकिन बांग्लादेश के लिए भारत की अहमियत क्यों बनी रहेगी.. इसको इन 6 पॉइंट से समझ सकते हैं:-
पहला पॉइंट- अगर बांग्लादेश का दुनिया के सामने स्वतंत्र वजूद है, तो इसके पीछे 1971 में भारत की दिल खोलकर की गई मदद है.
दूसरा पॉइंट- दोनों देशों के बेहद मजबूत आर्थिक संबंध हैं, क्योंकि इस भारतीय उप महाद्वीप में बांग्लादेश के साथ सबसे ज्यादा व्यापारिक संबंध भारत के ही हैं, जो सालाना करीब 1 लाख छह हजार करोड़ रुपये के हैं.
तीसरा पॉइंट- बांग्लादेश तीन तरफ से भारत से घिरा हुआ है. एक तरफ हिंद महासागर है. दोनों देशों की सीमाएं 4096 किलोमीटर तक मिलती हैं, जो दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी लैंड बॉर्डर है. ऐसे में बांग्लादेश भारत से दूर नहीं रह सकता.
चौथा पॉइंट- नदियों को लेकर भी दोनों देश विरासत साझा करते हैं. ऐसी 54 नदियां हैं, जो भारत और बांग्लादेश दोनों देशों में बहती हैं. हालांकि, दोनों देशों के बीच दो ही नदी संधि हो पाई है, जिसको आगे बढ़ाने की चुनौती और जरूरत से दोनों देश कन्नी नहीं काट सकते.
पांचवां पॉइंट- ऊर्जा के क्षेत्र में बांग्लादेश की भारत पर निर्भरता है, क्योंकि बांग्लादेश को भारत से 2000 मेगावाट बिजली सप्लाई होती है.
छठा पॉइंट- बांग्लादेश का पहला परमाणु ऊर्जा केंद्र है, जो रूपपुर में बन रहा है. भारत की मदद से बन रहा है.
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रिश्ते बिगड़ने पर भारत को होंगे ये नुकसान
बांग्लादेश के सामने दो महत्वपूर्ण पड़ोसी हैं. चीन और पाकिस्तान. ऐसे में चीन और पाकिस्तान जैसे देश अगर नई सरकार पर हावी हुए, तो भारत के साथ बांग्लादेश के संबंध भी दांव पर लग सकते हैं. अगर कारोबार की ही बात करें तो भारत और बांग्लादेश में भारत का निर्यात काफी बड़ा है. 2023-24 में भारत ने बांग्लादेश से आयात तो 15 हजार 268 करोड़ रुपये का किया, लेकिन निर्यात 91 हजार 614 करोड़ रुपये का हुआ. अगर रिश्ते बिगड़े, तो भारत को आर्थिक घाटा हो सकता है. भारत ने बांग्लादेश में करोड़ों डॉलर का निवेश कर रखा है. रिश्ते बिगड़े, तो वो निवेश डूब भी सकता है.
भारत और बांग्लादेश के संबंध 1971 से ही काफी प्रगाढ़ हैं. बाद में लोकतांत्रिक सरकारें बनीं, तो ये संबंध और मजबूत हुए. लेकिन मोहम्मद यूनुस के साथ दूसरे बांग्लादेशी नेताओं का रुख भारत विरोधी रहा, तो इनके संबंधों पर प्रश्नचिह्न लग सकता है.
शेख हसीना कांड के बाद भारत बेहद सतर्क है. उसकी पहली झलक तो 5 अगस्त को ही दिख गई, जब संसद में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हालात की विवेचना की. अब सबकी नजर मोहम्मद यूनुस पर है कि वो अपने अर्थशास्त्री वाले रूप में रहेंगे या खांटी राजनेता बनेंगे.
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